Tuesday - 29 October 2024 - 12:19 PM

पाकिस्तान पेट्रोल की कीमत कम कर सकता है तो भारत क्यों नहीं?

न्यूज डेस्क

पाकिस्तान सरकार ने मई महीने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत कम कर दी है ताकि आम लोगों को इससे कुछ लाभ मिल सके।

सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के कुछ लोग सरकार के इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं। वो लिख रहे हैं कि ‘कोविड-19 महामारी की वजह से जो अतिरिक्त आर्थिक दबाव उन पर बना है, तेल की क़ीमतें कम होने से उसमें थोड़ी राहत मिलेगी। ‘

पाकिस्तान के ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार एक मई 2020 से देश में नई कीमतें लागू हो चुकी हैं जिसमें पेट्रोल पर 15 रुपए, हाई स्पीड डीजल पर 27.15 रुपए, मिट्टी के तेल पर 30 रुपए और लाइट डीजल ऑयल पर 15 रुपए कम किए गए हैं।

यह भी पढ़ें : कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों का आंकड़ा कितना सही?

मतलब जो एक लीटर पेट्रोल पहले 96 रुपए का मिल रहा था, अब 81 रुपए लीटर हो गया है। वहीं हाई स्पीड डीजल की कीमत पहले 107 रुपए लीटर थी, जो अब घटकर 80 रुपए प्रति लीटर हो गई है।

पाकिस्तान में तेल की कीमतें घटने की खबर आने के बाद भारत में भी सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि ‘पाकिस्तान सरकार ये कर सकती है तो भारत सरकार क्यों नहीं?’

इस सवाल पर नरेंद्र तनेजा, जो कि तेल मामलों पर भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, ने कहा कि ‘इस मामले में भारत और पाकिस्तान की तुलना करना बेमानी है। ‘

तनेजा तर्कदेते हुए कहते हैं, ” पाक एक बहुत छोटी और असंगठित अर्थव्यवस्था है, जिसका साइज 280 से 300 बिलियन डॉलर का है। यानी महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था से भी छोटा। वहां मध्यम वर्ग का आकार बहुत छोटा है, जबकि भारत में सबसे ज़्यादा और मध्यम वर्ग ही तेल उत्पादों का सबसे महत्वपूर्ण ग्राहक है। तो दोनों देशों में ऊर्जा की खपत का ट्रेंड काफी अलग है।”

यह भी पढ़ें :  कोरोना इफेक्ट : ऊर्जा की मांग में 6 फीसदी की आयेगी कमी

भारतीय तेल बाजार के अनुसार सामान्य दिनों में भारत में प्रतिदिन 46-50 लाख प्रति बैरल तेल की खपत होती है, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से भारत में तेल की खपत लगभग 30 प्रतिशत कम हो गई है।

पाक सरकार के फैसले पर दो तरह के विचार

इमरान सरकार के इस फैसले का जहां आम आदमी तारीफ कर रहा है तो वहीं जानकार इसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला बता रहे हैं।

सरकार के इस फैसले पर पाकिस्तान के नामी अर्थशास्त्री, डॉक्टर कैसर बंगाली ने लिखा है कि ‘हर बार तेल की कीमत कम होने के साथ महंगाई या सार्वजनिक परिवहन की कीमतों में कोई कमी नहीं आती। उपभोक्ताओं का मुनाफा एक झूठा प्रचार है जो तेल बेचने वाली कंपनियां अपनी सेल बढ़ाने के लिए करती हैं। ‘

डॉक्टर बंगाली बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं। ये सिंध सरकार के आर्थिक विकास सलाहकार भी रहे हैं।

ट्विटर पर उन्होंने लिखा है, “पेट्रोल के दाम कम करने से सिर्फ तेल बेचने वाली कंपनियों का मुनाफा होता है। तेल की कीमत कम नहीं होनी चाहिए, बल्कि सरकार अगर तेल को पुरानी दरों पर ही बेचे, तो उससे जो मुनाफा होगा,  सरकार उसे अपने कर्ज चुकाने, उत्पादों के जीएसटी रेट कम करने में लगाए जिससे उद्योगों और रोजगार को प्रोत्साहन मिले।”

कांग्रेस ने मोदी से पूछा था सवाल

मार्च महीने में कांग्रेस पार्टी ने पीएम मोदी को इस दलील के साथ घेरने की कोशिश की थी कि ‘अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें करीब 35 प्रतिशत घट चुकी हैं तो भारत की आम जनता को तेल की घटी हुई कीमतों का मुनाफा कब मिलने वाला है? भारत सरकार कब पेट्रोल की कीमत 60 रुपये प्रति लीटर से नीचे लाएगी?’

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि ‘कच्चे तेल की जो कीमत नवंबर 2004 में थी, अंतरराष्ट्रीय बाजार में वही कीमत अब है। तो मोदी सरकार भारत में तेल की कीमतों को 2004 वाले रेट पर क्यों नहीं ला रही। ‘

21 अप्रैल को भी कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि “दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें अप्रत्याशित आंकड़ों पर आ गिरी हैं, फिर भी हमारे देश में पेट्रोल 69 रुपये और डीज़ल 62 रुपये प्रति लीटर क्यों? इस विपदा में जो दाम घटें, वो उतना अच्छा। कब सुनेगी ये सरकार?”

अंतरराष्ट्रीय बाजार में मचा है गदर

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर के देशों में हुए लॉकडाउन की वजह से अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार गर्त में चला गया है। तेल की कीमतें निगेटिव में चली गई हैं।

वैैश्विक तेल उद्योग जगत का अनुमान है कि कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया में तेल की खपत में 35 प्रतिशत से ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई है। सबसे पहले चीन और फिर कई यूरोपीय देशों के एक साथ लॉकडाउन में चले जाने से तेल की खपत पर सबसे ज़्यादा असर देखने को मिला।

अंतरराष्ट्रीय  तेल बाजार की इस हालत के लिए जानकार कोरोना वायरस महामारी के साथ कुछ देशों की आपसी होड़ को इसका जिम्मेदार मानते हैं।

यह भी पढ़ें :   कोविड-19 और पानी के बोझ में पुरुषों की जिम्मेदारी 

जानकारों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार की मुसीबत का ट्रिगर जरूर है, लेकिन स्थिति को ज़्यादा पेचीदा बनाया है अमरीका, रूस और सऊदी अरब समेत तेल उत्पादक खाड़ी देशों की आपसी होड़ ने जो तेल बाजार पर अपनी बादशाहत साबित करने में तुले हैं।

जानकारों के अनुसार जब तक ओपेक प्लस देशों में 1 मई का समझौता नहीं हुआ, तब तक ये देश दबाकर उत्पादन करते रहे और लॉकडाउन की वजह से जो मांग घटती चली गई, उसके बारे में एक आम राय बनने में बहुत देर हो गई। अब इन देशों ने तय किया है कि ये रोजाना 97 लाख बैरल का उत्पादन घटाएंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की मांग के अनुसार तेल के उत्पादन में जितनी कमी की जानी चाहिए, यह उसका एक तिहाई ही है।

बाजार का अनुमान है कि रोजाना तीन करोड़ बैरल कम उत्पादन हो, तब जाकर मांग और आपूर्ति का सही बैलेंस बनेगा और बाजार में तेल की कीमतें सामान्य स्थिति में आ सकेंगी।

भारत के परिप्रेक्ष्य में जानकारों का कहना है कि कच्चे तेल के दाम भारत के लिए एक सौगात की तरह हैं, लेकिन भंडारण की क्षमता ना होने से इसका अधिक लाभ भारत नहीं ले सकता क्योंकि भारत में केवल नौ दिन के सामरिक तेल भंडारण की ही क्षमता है।

यह भी पढ़ें :  20 दिनों बाद नजर आए किम जोंग उन

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com