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कथा, नाटक, आलोचना और उपन्यास रचने वाले पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार गिरिराज किशोर का रविवार सुबह निधन हो गया। मुजफ्फरनगर निवासी गिरिराज किशोर कानपूर के शूटरगंज में रहते थे। वह 83 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य जगत में दुःख की लहर है।
उनका निधन हृदय गति रुकने के कारण हो गया। उन्होंने अपना देह दान किया है इसलिए सोमवार को सुबह दस बजे उनका अंतिम संस्कार होगा। बताया जा रहा है कि तीन महीने पहले गिरने के कारण गिरिराज किशोर के कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया था। जिसके बाद से वह लगातार बीमार चल रहे थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी दो बेटियां और एक बेटा है।
प्रमुख साहित्यकार गिरिराज किशोर का जन्म आठ जुलाई 1937 को मुजफ़्फ़रनगर में हुआ था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में घर छोड़ दिया था। वह स्वतंत्र रूप से पत्रिकाओं और अख़बारों के लिए लिखने लगे थे और उसी से जीवनयापन चलाते थे। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी के तौर पर काम किया।
आईआईटी कानपुर में कुलसचिव बने
इसके बाद साल 1966 से 1975 तक वह कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुल सचिव के पद पर भी रहे। वर्ष 1975 से 1983 तक वे आईआईटी कानपुर में कुलसचिव बनाये गया। यही पर उन्होंने रचनात्मक लेखन केंद्र की स्थापना की और 1997 में रिटायर हो गए।
‘पहला गिरमिटिया’ ने दिलाई लोकप्रियता
गिरिराज किशोर को उनके उपन्यास ‘पहला गिरमिटिया’ बेहद लोकप्रिय हुआ। उनका यह उपन्यास महात्मा गांधी के अफ़्रीका प्रवास पर आधारित था। इसके अलावा उपन्यास ‘ढाई घर’ भी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था, इसी उपन्यास को सन् 1992 में साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया था।
पद्मश्री सहित मिले कई सम्मान
साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में गिरिराज को 25 मार्च 2007 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जा चुका है। इस अवार्ड के साथ भारतेंदु सम्मान, मध्यप्रदेश साहित्य कला परिषद् का वीरसिंह देवजू राष्ट्रिय सम्मान, पहला गिरमिटिया के लिए केके बिरला फाउंडेशन का व्यास सम्मान मिल चुका है।