कोरोना संकट से निपटने के लिए वित्त मंत्री की घोषणाओं के बाद भारतीय किसान यूनियन और किसान आंदोलनों के भारतीय समन्वय समिति के नेता युद्धवीर सिंह से जुबिली पोस्ट ने टेलीफोनिक इंटरव्यू किया । फिलहाल वे राजस्थान के एक गाँव में फंसे हुए हैं । किसानों के राहत पैकेज पर उनसे हुयी बातचीत के मुख्य अंश
लॉकडाउन के कारण किसानों कैसे प्रभावित हो रहे हैं?
युद्धवीर: किसान पर इस लॉकडाउन के चलते बहुत बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है। पूरा सिस्टम लड़खड़ा गया है। किसान जो उपज एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाके बेच पाते थे वो सप्लाई चैन पूरी तरह टूट चुका है। सप्लाई चैन के टूटने से किसानों के उपज को खरीदने वाला कोई बचा नहीं। साथ ही साथ लॉकडाउन के कारण मांग में भी कमी आ गयी। जिससे उपज की कीमते एकदम से जमीन पे आ गयी। महाराष्ट्र में प्याज के उत्पादक, उत्तर भारत में आम के उत्पादक किसान, दक्षिण भारत में केला, नारियल और अन्य फल के उत्पादक आज अपना सामान बेचने में विफल हो रहे है।
मंडियां बंद होने की वजह से किसानों को ना ही बाजार मिल पा रहा है और ना ही उत्पादों का उचित दाम। जो आधी अधूरी मंडियां खुली भी है उनमे ऐसा सिस्टम किया गया है की एक दिन में सिर्फ दस किसान ही अपनी फसल लेके आ सकेंगे। ऊपर से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का भी सिस्टम बना दिया गया है। अब इस सिस्टम के भरोसे आखिर किसान कब तक अपनी फसल रोक के रखेगा। मेरा ये कहना है कि लॉकडाउन की वजह से जो रबी की फसल आयी थी वो किसानों के लिए घाटे की रही। फल और सब्जी के किसान पूरी तरीके से बर्बाद हुए है।
इसकी वजह क्या देखते हैं आप ?
युद्धवीर सिंह : पिछले कई सालों से सरकार ने सिर्फ औद्योगीकरण पर फोकस किया है। एक लम्बे समय से कृषि क्षेत्र को जो अनदेखा किया गया है, उसका नतीजा ये है की किसान जो पहले से ही डगमगाया हुआ था इस लॉक डाउन की वजह से पूरी तरह से ख़त्म हो गया। शुरू से ही गलत नीतियों की वजह से, वह क्षेत्र जो देश के 60 फीसदी से ज्यादा जनसँख्या की रोजी – रोटी है उसको देश के विकास में गिना भी नहीं गया। इन सभी कारणों से आज किसानी पूरी तरह से बर्बाद है।
लॉक डाउन से खरीफ के फसल पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ेगा?
युद्धवीर : इस लॉकडाउन के कारण किसान ने अपनी सारी पूंजी खो दी है। आज के दिन में किसान इस हालत में नहीं है की वो खाद और बीज का प्रबंध कर पाए। मान लीजिये अगर किसान अपना और परिवार का श्रम लगा भी देता है अगले फसल में पर जो किसान को ट्रैक्टर की जरुरत होगी (जिसमे अधिकतर छोटे किसान है) का प्रबंध कहा से कर पायेगा? खाद – बीज खरीदने के लिए पैसे कहा से ला पायेगा? सरकार से हमारी माँगो के आधार पर हमने ये सोचा था की खरीफ की फसल को ध्यान में रखकर सरकार इसे संज्ञान में लेगी लेकिन सरकार ने इसे बिलकुल ही नकार दिया। जो पिछले दिनों आर्थिक पैकेज की बात की गयी उसमे किसानों की इस समस्या पर बात ही नहीं किया गया।
सरकार ने हाल के दिनों में कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर जो घोषणाऐं की है, उस पर आपका क्या विचार है?
युद्धवीर : जो पैकेज की घोषणा हो रही है अगर आप उसे ध्यान से देखे तो आज की स्थिति को देखते हुए सरकार ने उसको नहीं बनाया है। ये सारी योजनाएं पहले से चल रही है। किसान क्रेडिट कार्ड की बात करे तो वो पहले की ही योजनाएं है। 3 महीने का लोन ईएमआई में एक्सटेंशन की जो बात कही गयी है तो वो उस पर ब्याज लेंगे। उसमे आर्थिक सहायता क्या हुयी किसानों के लिए?
दूसरी बात अभी की घोषणाएं एग्री-बिज़नेस में जो लोग है उन्हें देख के किया गया है। ये घोषणाएं सप्लाई चैन और एग्री-बिज़नेस से जुड़े लोगों को लाभ देंगी, ना की किसानों को।
किसानों के आज की बीमारी के लिए भविष्य की दवाई तैयार करवाई जा रही है। साथ ही साथ कहा जा रहा है की आप भविष्य में बीमार नहीं पड़ेंगे। चलिए हम भविष्य के इन चीजों का स्वागत भी कर ले लेकिन आज के नुकसान की भरपाई का क्या? किसानों के नाम पर पूंजीपतियों को दिया जा रहा है पैकेज।
सरकार APMC अधिनियम और श्रम कानूनों को कम करने की कोशिश कर रही है। उस पर आपका क्या कहना है?
युद्धवीर: APMC अधिनियम (मंडी कानून) की जहां तक बात है तो ये हमारे बहुत सुलझे हुए नेताओं जैसे छोटूराम चौधरी, चौधरी चरण सिंह के अथक प्रयासों ने मंडी कानून को बनवाया था। मंडी कानून के माध्यम से किसानों का जो शोषण होता था उसको रोकने का प्रयास किया गया था।
पिछले बहुत दिन से जब से भारत विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ है, सरकार का यह प्रयास रहा है कि मंडी, सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म कर दिया जाए। मै आज के इन प्रयासों को उसी के कड़ी में जोड़ कर देख रहा हूँ। मंडी को सुचारू रूप से चलाने हेतु हम भी बहुत पहले से मंडी कानून में सुधार की मांग करते रहे है। किसानों के समस्याओं को समझते हुए हमने जो मंडी कानून में व्यावहारिक खामियां है, उनकी बातें भी हमने सरकार के सामने बहुत बार रखी है। इनको सुधारने की बजाय मंडी कानून को ही ख़त्म करने के प्रयास के प्रयास को मै गलत मानता हूँ।
किसानों से सीधी खरीद का जो प्रयास सरकार करवाने जा रही उसका एक सीधा सा उदहारण है: आज जब देश में मंडियां बंद थी तो किसानों से रबी फसल की सीधी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य से करीब 1000-1500 रुपये प्रति कुंटल के कम दामों पे खरीदा गया। लॉकडाउन के दौरान किसानों का पूरी तरह से शोषण किया गया क्योंकि मंडी ठीक तरीके से काम नहीं कर रही थी। मंडी किसान और मार्किट के बीच एक बैलेंस बनाती है। मंडी ख़त्म होने पर यह बैलेंस बिगड़ेगा और किसानों का शोषण बढ़ेगा।
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लाखों प्रवासी गांवों में वापस लौट रहे हैं, क्या आपको लगता है कि कृषि उन्हें काम दे सकती है?
युद्धवीर : देखिये, ये बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है! अगर खेती स्थायी रोजगार दे सकती तो लोग पलायन नहीं करते। सबकी जड़े गावों में है। खेती भले ही रोजगार नहीं दे सकती लेकिन रोटी जरूर दे सकती है। आज की स्थिति में जब लोग शहरों में भुखमरी के कगार पर थे तो उनको महसूस हुआ की अगर वो गावं में रहेंगे तो भूखे नही मरेंगे। लाखों की संख्या में आज होना वाला पलायन उसी को दर्शाता है। निश्चित रूप से गावं में जो भी जायेगा भूख से नहीं मरेगा।
बहुत जगहों से ये खबरें आ रही है की लाखों प्रवासी शहरों में भूखमरी के कारण पैदल चल के गावों की तरफ जा रहे है। जबकि भारत के गोदाम भरे हुए है और इस साल रबी की फसल अनुमान से कही ज्यादा हुयी है। आपको क्या लगता है की ये सिस्टम कहा विफल हो रहा है? ना ही किसानों को अधिक उपज का लाभ मिल पा रहा है, ना ही गरीब लोगों को भोजन।
युद्धवीर : ये बहुत ही बड़ा प्रश्न है! भारत का किसान देश की पूरी जनसँख्या को खिलाने में सक्षम है, उसके बाद भी बहुत लोग भूखे है। देखिये! भूख का सम्बन्ध उत्पादन से कभी नहीं रहा है। यह कही ना कही सिस्टम की खामी है। लोगो के पास पर्चेसिंग पावर नहीं है। जब तक लोगो के हाथ में पैसा नहीं होगा बाजार में क्या उपलब्ध है उससे कोई मतलब नहीं होगा। हम देश में आजतक आम आदमी में इतनी क्षमता नहीं पैदा कर पाए की वो खरीद के खा सके। लॉकडाउन के समय में तो करोड़ों लोगो के पास दो वक्त खाने की जरूरतों को पूरा करने की भी क्षमता नहीं बची है। सरकार को इस अंतर को देखना पड़ेगा। एक वर्ग ऐसा है जो रोजगार ना मिलने के कारण गावों से दूर शहरों में दयनीय स्थिति में है। आज उनके पास पर्चेसिंग पावर नहीं ये बहुत बड़ा कारण है भुखमरी का आज के समय में।
इस महामारी ने हमें दिखाया है कि खाद्य फसलें राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा और वाणिज्यिक फसलों की तुलना में पोषण के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं। आप इस संबंध में क्या कहना चाहेंगे?
युद्धवीर : पहले तो सरकारों ने किसानों को हतोत्साहित किया। सरकारों ने कहा की इस सीजन में हम आपका गेहूं/धान खरीद लेंगे लेकिन अगले सीजन में हम नहीं खरीद सकते इसीलिए आप दूसरी फसलें उगाएं। खाद्यान फसलों के बजाय किसान अन्य फसलों पे जाए इसके लिए सरकारों ने किसानों पर दबाव डाला। इस महामारी के समय में निति – निर्धारकों और सरकार को समझ में आ गया होगा की खाद्य फसलें कितनी महत्वपूर्ण है। इन विकट परिस्थितियों में भी किसानों ने दिन -रात मेहनत कर के औसत से अधिक खाद्यान उगाया है। तो हमें ये समझना चाहिए की किसान इसका जिम्मेवार नहीं है। सरकार उन्हें फसलों के दाम कम करके और उपज को ना खरीद कर के दूसरी फसलों की तरफ ढकेल रही है। ये महामारी एक शिक्षा होनी चाहिए सरकार के लिए।
भारतीय किसान यूनियन जैसे किसान आंदोलन क्या कर रहे हैं और वे इस स्थिति पर कैसे प्रतिक्रिया दे रहे हैं?
युद्धवीर : एक किसान और किसान नेता होने के नाते हमने खाद्यान उत्पादन को कम नहीं होने दिया। सभी आंदोलनों को साथ लेकर हमने राष्ट्रीयता का परिचय दिया लेकिन सरकारों ने हमारे सुझावों की तरफ ध्यान नहीं दिया। हमने लॉकडाउन के दौरान सरकार से ये मांग की थी अगर मंडी में जाना खतरा बन सकता है तो किसानों के उपज की गाँव से खरीददारी हो। सरकार के लिए ये कोई मुश्किल काम नहीं था। मंडियों का ढांचा और गावों का सारा डिटेल है सरकार के पास, दस टीमों को लगाकर ये काम करवाया जा सकता था। जिस तरीके से बिना सोचे – समझे लॉकडाउन किया गया और सप्लाई चैन को तोडा गया और किसानों को व्यापारियों के भरोसे छोड़ा गया, इससे किसानों का बहुत शोषण हुआ। हमने इन सभी बातों को उठाया और हर लेवल पर सरकार के सामने किसानों की समस्याओं को रखा।
समय – समय पर हमने सरकार को लिखा और उसी का नतीजा है की कुछ जो छूटें मिली कृषि उपकरणों के आवजाही की, उससे पंजाब और हरियाणा के किसान गेहूं की फसल की कटाई और सप्लाई कर सके। हम किसानों के मुद्दों को राज्य और केंद्र सरकारों तक पहुँचाने में कोई कोताही नहीं बरत रहे है। और आगे भी किसानों के मुद्दों को बढ़ाते रहेंगे।
ला वाया कैंपसीना जैसे अंतर्राष्ट्रीय किसान आंदोलन क्यों महत्वपूर्ण हैं? और बीकेयू जैसे बड़े किसान आंदोलनों पर उनका क्या प्रभाव पड़ा है?
युद्धवीर : आज जब वैश्वीकरण का दौर चल रहा है। विश्व व्यापार संगठन के आने के बाद तो जो किसानों कि समस्याएं है उनका भी वैश्वीकरण हुआ है। पूरी दुनिया के किसान कम ज्यादा पर एक ही प्रकार की समस्याओं से परेशान है। पहले जो राज्य और राष्ट्रिय स्तर की नीतियां होती थी लेकिन आज हमें अंतर्राष्ट्रीय नीतियां भी प्रभावित करती है।
ला विआ कम्पेसिना से जुड़ने के बाद सबसे पहले हमें विश्व में क्या हो रहा है उसकी जानकारी मिली। और किस प्रकार से ये अंतर्राष्ट्रीय नीतियां हमें प्रभावित करेंगी उस पर एक समन्वय बना। भारतीय किसान यूनियन, किसान आंदोलनों के भारतीय समन्वय समिति जोकि की ला विआ कम्पेसिना के साथ जुड़ा हुआ है, हम हमेशा एक दूसरे के साथ रहते है और अपनी समस्याओं को साझा करते है। इससे क्या हुआ की देश के किसानों की आवाज विश्व भर तक पहुंचती है। इसका असर ये रहा की आज जो ‘कृषि पे समझौता’ (Agreement on Agriculture) है जो WTO में पिछले 20 सालों से लटका हुआ है इन्ही आंदोलनों के एकजुटता की ताकत है।