न्यूज डेस्क
देश में चुनावी बॉन्ड को लेकर माहौल गरम है। विपक्ष मोदी सरकार से चुनावी बॉन्ड को लेकर सवाल कर रहा है। वहीं सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जरिए चुनावी बॉन्ड को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक 12 फेज में से 11 फेज के दौरान खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्ड में से 91 फीसदी एक करोड़ रुपये के थे। ये चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक के चुनिंदा शाखाओं से बेचे गए।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि पहले 11 फेज में कुल 5,896 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए और इसमें से 91 फीसदी से ज्यादा बॉन्ड एक करोड़ रुपये के थे।
वहीं एक मार्च 2018 से 24 जुलाई 2019 के बीच खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्ड में से 99.7 फीसदी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे।
मालूम होकि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री करता है। सबसे ज्यादा राशि के चुनावी बॉन्ड खरीदना ये दर्शाता है कि ये बॉन्ड समाज के बेहद धनी वर्ग के लोग खरीद रहे हैं।
इसके अलावा एक लाख और दस हजार रुपये के कुल 15.06 करोड़ रुपये के ही चुनावी बॉन्ड खरीदे गए।
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा जनवरी 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना लाई गई थी। इसके तहत दानकर्ता अधिकृत बैंकों से बॉन्ड खरीद कर राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है। चुनावी बॉन्ड के जरिए अब तक सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला है।
ये चुनावी बॉन्ड 15 दिन के लिए वैध होते हैं। राजनीतिक दल इस अवधि में किसी अधिकृत बैंक में बैंक खाते के जरिये इन्हें भुना सकते हैं। चुनावी बॉन्ड के जरिए पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्ति के बारे में पता नहीं चल पाता है।
आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक कुल 12 फेज के 83 फीसदी चुनावी बॉन्ड एसबीआई के चार शाखाओं क्रमश: मुंबई, कोलकाता, नई दिल्ली और हैदराबाद से खरीदे गए। इन चारों जगहों से कुल मिलाकर 5,085 करोड़ के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए।
अब तक 12 फेजों के दौरान कुल 6,128.72 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए हैं। इसमें से 6,108.47 करोड़ रुपये को भुनाया जा चुका है। करीब 80 फीसदी चुनावी बॉन्ड नई दिल्ली में भुनाए गए हैं।
गौरतलब है कि चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने हाल में चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। वहीं माकपा ने एक अलग याचिका में इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि सभी राजनीतिक दल 30 मई से पहले चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित सभी जानकारी एक सीलबंद लिफाफ में दें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विस्तृत सुनवाई के बाद इस मामले में आखिरी फैसला लिया जाएगा।
इलेक्टोरल बॉन्ड की चुनाव आयोग और कई पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कड़ी आलोचना की है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टियों को मिलने वाले चंदे की पारदर्शिता के लिए खतरनाक है।
इसके अलावा आरबीआई भी चुनावी बॉन्ड की आलोचना कर चुका है।
आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
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