स्पेशल डेस्क
लखनऊ । “आज भारत के स्वधर्म पर हमला हो रहा है | इतना बड़ा हमला जितना आज़ादी के बाद कभी नहीं देखा गया । ये देश की बुनियाद को हिलाकर ख़त्म कर सकता है । इस हमले से देश को हम सबको बचाना होगा। इसीलिए हमें एक लम्बी सांस्कृतिक और राजनैतिक लड़ाई लड़नी होगी” ये बातें स्वराज पार्टी प्रमुख व राजनैतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने आगामी चुनाव के मुद्दों पर साझी दुनिया द्वारा आयोजित वार्ता में कहीं। वार्ता कैफ़ी आज़मी प्रेक्षागृह में आयोजित की गयी ।
यादव ने आगे कहा कि आज सबसे पहला और आज का सबसे बड़ा फ़र्ज़ ये देखना है कि जो आग लगी है उसे कैसे बुझाया जाये। उनका कहना था कि ये कोई सामान्य चुनाव नहीं हैं जैसे 1977 के चुनाव में फैसला हुआ था कि भारत बचा रहेगा या नहीं उसी तरह 2019 के चुनाव में तय होगा कि भारत अपने मूल संवैधानिक रूप में बचा रहेगा या नहीं ।
मोदी को रोकने के लिए नहीं है मजबूत विपक्ष
आज भारत के स्वधर्म के तीनों बुनियादी सिद्धांतों – लोकतंत्र, विविधता और अंतिम व्यक्ति का विकास, पर आज संवैधानिक सत्ता पर काबिज़ लोगों द्वारा हमला हो रहा है। अफ़सोस की बात ये है कि इस हमले का विरोध करने की ज़िम्मेदारी जिन विपक्षी दलों और ताकतों पर है, वे इस ऐतिहासिक घड़ी में इस काम के लिए असमर्थ दिखाई देते हैं । योगेन्द्र के अनुसार इन दलों के पास न तो विचार हैं, न ही कोई योजना न ही कोई संकल्प और न ही कोई विश्वसनीय चेहरा। योगेन्द्र यादव ने आगे कहा कि इन स्थितियों में जो लोग भारत के स्वधर्म के प्रति समर्पित हैं उन्हें एक लम्बी लड़ाई की तैयारी करनी होगी।
चुनाव का जो भी परिणाम हो, हमें भारत के स्वधर्म को बचाने के लिए लम्बी सांस्कृतिक लड़ाई के लिए तैयार होना होगा। इस लड़ाई के लिए ज़रूरी होगा कि हम राष्ट्रवाद की सकारात्मक ऊर्जा को वापिस हासिल करें धार्मिक, परम्पराओं से सकारात्मक रिश्ता बनाएं और परंपरा के प्रति अज्ञान और तिरस्कार की भावना को छोडें।
यादव के अनुसार इस बड़े राजनैतिक और सांस्कृतिक काम के लिए आने वाली पीढ़ी को अपने आपको समर्पित करना होगा ।इसमें अनेक युवाओं को अपने करियर और सुख सुविधाओं का बलिदान करना होगा ।
आज राजनीति युगधर्म है और उसको अपनाकर ही भारत के स्वधर्म पर हो रहे इस हमले का मुकाबला किया जा सकता है। कार्यक्रम में प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, सलाम सिद्दीक़ी, अबीहा अनवर समेत अनेक बुद्धीजीवियों, युवाओं, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, लेखकों ने भागीदारी की। गायक कुलदीप सिंह ने नज्में व ग़ज़लें सुनायीं व तज़ीन खान ने संचालन किया।