विवेक कुमार श्रीवास्तव
लखनऊ। अगर आप किसी भी सरकारी बैंक में अपना खाता खुलवाने के लिए जाते हैं तो आपको खाता खुलवाने के साथ 100, 200, 500 या 1000 रुपये की लागत वाली व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा करवाने का भी लालच दिया जाता है या फिर इसी तरह की दूसरी बीमा स्कीम लेने की सिफारिश की जाती है। अगर आप ये लेने से मना करते हैं तो आपको कुछ कारण बताया जाएगा कि आप खाता नहीं खोल सकते। अधिकांश ग्राहक किसी न किसी तरह अपना खाता खुलवाना चाहते हैं इसलिए वो इस शर्त को मान लेते हैं जो नहीं मानते उन्हें खाता खुलवाने में देरी का सामना करना पड़ता है। इसी को क्रॉस सेलिंग कहते हैं।
दरअसल क्रॉस सेलिंग करना उस बैंक के कर्मचारी या शाखा प्रबंधक की मजबूरी होती है, क्योंकि इसके लिए बैंक के उच्च अधिकारी दबाव बनाते हैं। इससे उन्हें इंसेटिव मिलता है। इस इंसेन्टिव के चक्कर में ग्राहकों को किस तरह लूटा जा रहा है ये तो महज इसकी बानगी भर है। क्या है ये क्रॉस सेलिंग आइये विस्तार से समझते हैं।
पहले बैंकों का मुख्य व्यवसाय पैसों को जमा करने, उन पैसों पर ब्याज देने, ग्राहकों को ऋण देने आदि था। वहीं जनता भी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने के उद्देश्य से बैंकों में जमा करती है। मगर जैसे-जैसे वक्त बदलता गया बैंकिंग की अवधारणा भी बदलती गयी। अब अन्य सभी व्यवसाय जैसे बीमा, म्युचुअल फण्ड, क्रेडिट कार्ड, सामान्य बीमा आदि भी बैंकिंग के अंतर्गत आ गये। समय की आवश्यकता भी थी कि ग्राहक एक ही छत के नीचे सभी प्रकार के वित्तीय उत्पादों का लाभ उठा सकें। यही क्रॉस सेलिंग की अवधारणा है।
शुरुआत में तो सब कुछ अच्छा और ग्राहकों के अनुकूल रहा क्योंकि उन्हें सब कुछ एक ही छत के नीचे उनकी मर्जी के हिसाब से मिल रहा था। मगर धीरे-धीरे ये मजबूरी बनने लगा और ग्राहकों के बजायबैंक की मर्जी चलने लगी।बैंक के उच्च अधिकारियों को बीमा के बेचे गये उत्पादों पर मिलने वाले प्रोत्साहनों, जिसमें एक बड़ी मात्रा नगद धनराशि ने, इसको ग्राहकों की मजबूरी बना दिया।
उदाहरण के लिए कोई कर्मचारी किसी शाखा में अगर 1 लाख रुपये में जीवन बीमा बेचता है तो वह करीब 1 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्राप्त करेगा, शाखा प्रबंधक 500 रुपये, क्षेत्रीय प्रबंधक को 250 रुपये, उपमहाप्रबंधक को 200 रुपये, महाप्रबंधक को 150 रुपये और आखिर में मुख्य महाप्रबंधक के हिस्से में 100 रुपये आते हैं। देखने में ये भले ही मामूली लग रहा है मगर आंकड़ों पर गौर करें तो ये लाखों में पहुंच जाता है।
इसे इस प्रकार समझें…
एक क्षेत्रीय प्रबंधक के तहत करीब 40-50 शाखाएं आती हैं। इसलिए अगर उन्हें हर शाखा से 250 रुपये मिलते हैं तो उनकी मासिक प्रोत्साहन राशि होती है 250*40(शाखा)*30(दिन) = 3,00,000 रुपये प्रति माह। इसी प्रकार उपमहाप्रबंधक के पास करीब 100 से 140 शाखाएं होती हैं। महाप्रबंधक के अंतर्गत करीब 300 से 400 शाखाएं आती हैं और मुख्य महाप्रबंधक के अंतर्गत 1000 से 1800 शाखाएं आती हैं। अब इनकी शाखाओं को इनकी प्रोत्साहन राशि से मल्टीप्लाई कर महीने के तीस दिन का हिसाब निकाल लीजिए। इस लिहाज से देखेंगे तो तो मुख्य महाप्रबंधक की आमदनी 30 लाख रुपये प्रतिमाह होती है। सैलरी अलग से।
सैलरी के मुकाबले कई गुना ज्यादा आमदनी
उच्च अधिकारियों की कमाई का अंदाजा इनके इनकम टैक्स रिटर्न से भी लगाया जा सकता है। एसबीआई के अध्यक्ष का वेतन करीब 25 लाख रुपये प्रतिवर्ष है। मगर पिछले दो वर्षों से उनके आयकर रिटर्न का साइज 20 करोड़ रुपये से अधिक है। वहीं किसी भी मुख्य महाप्रबंधक का वेतन करीब 15 लाख रुपये प्रतिवर्ष होता है मगर उनका आयकर रिटर्न करीब 60-70 लाख रुपये है। ये तो एक छोटा सा उदाहरण है। बैंक के उच्चाधिकारी इससे कहीं ज्यादा कमाते हैं क्योंकि क्रॉस सेलिंग पर कंपनियां उन्हें विदेश दौरों के साथ उच्च नगदी प्रोत्साहन भी देती हैं।
शाखा प्रबंधकों पर दबाव बनाते हैं उच्च अधिकारी
सभी अधिकारी इसे लेकर अपने शाखा प्रबंधकों पर भारी दबाव बनाते हैं। अब बैंक के शीर्ष अधिकारियों की रुचि बैंको को आगे ले जाने और बेसिक बैंकिंग में कम क्रॉस सेलिंग में ज्यादा है। बॉस के दबाव के चलते क्रॉस सेलिंग करना शाखा प्रबंधक की मजबूरी बनती जा रही है। इसके लिए शाखा प्रबंधक गलत तरीके से जीवन बीमा या स्वास्थ्य बीमा ग्राहकों के नाम कर देते हैं।
ग्रामीण इलाकों के कम पढ़े-लिखे लोग या किसान हो रहे शिकार
दबाव के चलते क्षेत्रीय अधिकारी किसान क्रेडिट कार्ड के खातों की लिस्ट देते हैं और शाखा प्रबंधक से जबरदस्ती किसानों के खातों के नाम कर अपनी जेबें भरते हैं।
बैंक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बैंकों के शीर्ष अधिकारियों द्वारा ग्राहकों की संगठित लूट की जा रही है। जिसे रोकने वाला कोई नहीं है। जिसका शिकार मुख्य रूप से गांवों के कम पढ़-लिखे लोग और किसान हो रहे हैं। इस थोड़े से कमीशन के चक्कर में एक तरफ जहां बैंक का बिजनेस डायवर्ट हो रहा है। वहीं इन बीमा कंपनियों के चक्कर में ग्राहकों का पैसा भी डूब जाता है जिसका ठीकरा ग्राहक बैंक के सिर फोड़ता है और उनका बैंक से भरोसा टूट रहा है।
हम बैंकर होने के कारण क्रॉस सेलिंग की अवधारणा के खिलाफ नहीं हैं। हमारा विरोध दबाव के साथ क्रॉस सेलिंग कराना या ग्राहकों की जानकारी के बिना उन्हें कोई भी उत्पाद बेचने को हम अपराध की श्रेणी में रखते हैं। हमारी मांग है कि क्रॉस सेलिंग पर मिलने वाला इंसेंटिव सिर्फ बैंक को मिलना चाहिए और बैंक अधिकारियों को किसी तरह का इंसेंटिव नहीं मिलना चाहिए।
पवन कुमार, महामंत्री, एसबीआई ऑफिसर्स स्टाफ एसोसिएशन
ट्रेड यूनियन के रूप में हम क्रॉस सेलिंग के सख्त खिलाफ हैं क्योंकि इससे बैंक का कोर बिजनेस बेहद प्रभावित हो रहा है। हम अपने ग्राहकों को गोपनियता का भरोसा देते हैं मगर क्रॉस सेलिंग के दौरान हमें उनका डाटा दूसरी कंपनियों को देना पड़ता है जो ग्राहकों के साथ धोखा है। भविष्य में अगर उस कंपनी से हमारा करार खत्म होता है तो उनके बैंक प्रतिनिधि जिनके पास ग्राहकों का सारा डाटा होता है वे उसे किसी और को भी दे सकते हैं। इससे साइबर क्राइम की संभावना बढ़ जाती है जिसका शिकार हमारे ग्राहक होते हैं।
रतन श्रीवास्तव, संगठन मंत्री, उत्तर प्रदेश बैंक कर्मचारी एसोसिएशन