शबाहत हुसैन विजेता
अरविन्द केजरीवाल की नयी सरकार का विकास माडल देखने के लिए विपक्ष भी बेचैन है और देश के तमाम राज्यों की नज़र भी उधर ही टिकी हुई है। दिल्ली के लोगों ने अरविन्द केजरीवाल को चुनाव परीक्षा में पूरे नम्बर देकर फिर से सरकार चलाने की ज़िम्मेदारी देकर पूरे देश की सियासत को यह स्पष्ट सन्देश दे दिया कि सरकार के क्रियाकलाप पर सिर्फ विपक्ष की ही नहीं बल्कि आम लोगों की भी नज़र रहती है।
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यह रिज़ल्ट यह बताने के लिए भी है कि सरकार पांच साल के लिए भले ही माननीय की भूमिका में हो लेकिन पांच साल के बाद वही जनता फिर से परीक्षक की भूमिका में होती है और सरकार के कामकाज की कापियां वही चेक करती है। तकनीकी रूप से अरविन्द केजरीवाल सरकार की यह तीसरी पारी है लेकिन कामकाज के नजरिये से यह सरकार का यह दूसरा कार्यकाल होगा।
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पांच साल में दिल्ली के छह सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों के सामने इस अंदाज़ में खड़ा कर दिया कि देखने वाला सरकारी और प्राइवेट स्कूल में फर्क नहीं कर पायेगा। शिक्षा व्यवस्था में सुधार के इस कदाम के साथ ही सरकारी अस्पतालों के हालात में बदलाव लाकर गरीब मरीजों के इलाज का जो ज़िम्मा सरकार ने उठाया उसने आम लोगों को सरकार के करीब कर दिया। इसके अलावा पानी और बिजली फ्री देकर सरकार ने लोगों के घरों के भीतर अपनी जगह बना ली।
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दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी चाहते हैं कि केजरीवाल सरकार यमुना को साफ़ करने का इंतजाम करें। मनोज तिवारी ने एक टीवी चैनल के ज़रिये सरकार के पास यह प्रस्ताव भेजा है कि यमुना की सफाई के काम में जहाँ उनकी ज़रुरत हो वहां वह खड़े होने को तैयार हैं। यमुना की गंदगी वास्तव में सियासत का नहीं दिल्ली वालों की ज़िन्दगी से जुड़ा मुद्दा है। नदियों को हर हाल में साफ़ किया जाना चाहिए क्योंकि नदियाँ ही वास्तविक लाइफलाइन होती हैं।
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यमुना को साफ़ करने के लिए इसमें जुड़े नालों को सबसे पहले नदी से दूर ले जाना होगा। यमुना की तरह ही गंगा, गोमती और घाघरा नदियों में भी रोजाना टनों कूड़ा गिरता है। फैक्ट्रियों का केमिकल नदियों को प्रदूषित करता है और इंसानों की बात तो दूर कई बार इन नदियों का पानी जानवरों के पीने लायक भी नहीं रह जाता। देश के कई राज्यों की सरकारों के सामने नदियों को प्रदूषण से बचाना एक बड़ी समस्या है।
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अरविन्द केजरीवाल भले ही इनकम टैक्स कमिश्नर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये हों लेकिन क्योंकि वह आन्दोलन की पृष्ठभूमि से जुड़े रहे हैं इसलिए वह पानी की कीमत और नदियों में बढ़ते प्रदूषण का मतलब अच्छी तरह से जानते हैं।
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केजरीवाल सरकार पर अपने इस तीसरे कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त रखने के साथ ही इस बार यमुना को साफ़ करना भी एक बड़ा ज़िम्मा होगा। दिल्ली क्योंकि देश की राजधानी है इस नाते वहां की सड़कों पर दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा गाड़ियाँ हैं। इन गाड़ियों की वजह से सड़कों पर बेहिसाब प्रदूषण बढ़ा है।
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हालांकि सरकार ने आड-इवेन का प्लान बनाकर सड़कों पर गाड़ियाँ कम की हैं लेकिन अभी और प्रयास करने की भी ज़रुरत है ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके। अरविन्द केजरीवाल सरकार दिल्ली के लोगों को दो सौ यूनिट तक फ्री बिजली और पानी की सुविधा दे रही है। चुनाव परिणाम आने के बाद दिल्ली के लोगों पर विपक्ष ने मुफ्तखोर होने का इल्जाम तक लगा दिया। किसी भी राज्य के लिए बिजली से मिलने वाला पैसा राजस्व का एक बड़ा हिस्सा होता है।
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सरकार अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए कौन से रास्ते अपनाएगी यह चुनौती भी नयी सरकार के सामने होगी। अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अन्ना हजारे के आन्दोलन से पनपी थी। उसी आन्दोलन में केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता हासिल कर लोगों को इन्साफ देने का एलान किया था। वह आन्दोलन लोकपाल बिल की मांग को लेकर था।
केजरीवाल सरकार ने हालांकि लोकपाल बिल अपनी सरकार के पहले कार्यकाल में ही पास करवाकर केन्द्र सरकार को भेज दिया था लेकिन तब यह बिल पास नहीं हो पाया क्योंकि इसे एलजी के माध्यम से केन्द्र को नहीं भेजा गया था। अपने दूसरे कार्यकाल में लोकपाल बिल दोबारा से एलजी के माध्यम से केन्द्र सरकार को गया लेकिन उस बिल में केन्द्र की तरफ से लगी कुछ आपत्तियों का निस्तारण केजरीवाल सरकार ने नहीं किया और यह बिल पास नहीं हो पाया।
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हालांकि अरविन्द केजरीवाल का दावा है कि उन्होंने सारी आपत्तियों का निराकरण कर दिया है। आपत्तियों का निराकरण अगर वास्तव में किया जा चुका है तो फिर लोकपाल बिल कहाँ अटका है उसे ढूंढ निकालना भी अरविन्द केजरीवाल की ही ज़िम्मेदारी होगी। अरविन्द केजरीवाल ने भले ही पांच साल शानदार सरकार चलाई और दिल्ली को विकास की राह पर ले गए लेकिन इन पांच सालों में अरविन्द केजरीवाल की गाड़ी से वह तमाम वफादार साथी उतर भी गए जिनकी मेहनत ने केजरीवाल को सीएम केजरीवाल बनाया था।
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भले ही जनता ने उन्हें अगले पांच साल की हुकूमत फिर से सौंप दी है और इतना बड़ा बहुमत दे दिया है कि सरकार को चाहकर भी कोई पांच साल तक हिला नहीं सकता है लेकिन इसके बावजूद केजरीवाल को अपने पुराने साथियों को दोबारा से अपने साथ जोड़ने का प्रयास करना होगा क्योंकि उन सबका सहयोग मिलेगा तो सरकार के साथ ही संगठन भी मज़बूत होगा।
जिस सरकार का संगठन मज़बूत होता है उसके सामने दिक्कतों की फेहरिस्त उतनी लम्बी नहीं हो पाती है। बेहतर होगा कि अपने इस तीसरे कार्यकाल में जनहितकारी योजनाओं को दुरुस्त करने के साथ ही संगठन में उन साथियों को वापस लायें जिनसे ठनी हुई है।