शबाहत हुसैन विजेता
पत्रकारों की एक पुरानी मांग है कि उनके लिए टोल प्लाज़ा फ्री कर दिया जाए. राज्य सरकार के माध्यम से केन्द्र सरकार को कई बार प्रत्यावेदन भेजा गया. जिसमें यह कहा गया कि पत्रकारों को कवरेज के लिए कई शहरों में जाना पड़ता है. सरकार अगर उनके लिए टोल फ्री कर दे तो उन्हें काफी सुविधा मिल जायेगी. राज्य सरकार के ज़रिये केन्द्र के पास चिट्ठियां जाती हैं और खो जाती हैं कभी उस पर फैसला नहीं हो पाता. दो दिन पहले एक प्रेस कांफ्रेंस में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के सामने एक पत्रकार ने सीधे ही यह मसला उठा दिया.
पत्रकारों के लिए टोल फ्री करने की मांग पर गडकरी तमतमा गए. बोले फोकट में किसी को अच्छी सड़क पर चलने को नहीं मिलेगा. अच्छी सड़क पर चलना है तो टोल तो देना ही पड़ेगा.
टोल किसी की लिए भी फ्री नहीं होता तो गडकरी की बात में दम होता. विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज तथा राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति के लिए टोल प्लाज़ा फ्री है. जिस जमात के लिए टोल फ्री किया गया है वह जमात बहुत गरीब है या फिर अच्छी सड़कें बनाने के लिए इन्होंने अपनी सम्पत्ति दान कर दी है?
टोल प्लाज़ा से जो खुद फोकट में गुज़रता है वह दूसरों को नियम क़ानून सिखा रहा है. जिस पत्रकार ने यह सवाल उठाया था उसे केन्द्रीय मंत्री से तत्काल पूछना चाहिए था कि अच्छी सड़क का क्या मतलब होता है? सरकार जो रोड टैक्स जमा करवाती है वह क्या खराब सड़कों के लिए होता है? सरकार जो महंगा पेट्रोल और डीज़ल बेचती है क्या उससे आने वाला राजस्व सड़कें बनाने में नहीं खर्च होता है?
आप चुनाव लड़ते हैं तो आपको फोकट का वोट चाहिए. जीतने के बाद आपको फोकट का मकान चाहिए. मंत्री बन जाते हैं तो फोकट की गाड़ी, फोकट का ड्राइवर और फोकट का तेल चाहिए. आपको फोकट की सुरक्षा भी चाहिए. आपको अपने पीछे फोकट की गाड़ियों का काफिला भी चाहिए. जिस शहर में भी आप जाएं वहां आपको फोकट में रुकने की व्यवस्था भी चाहिए. मंत्री जी आपकी तो पूरी जीवनशैली ही फोकट से जुड़ी है.
सरकार का यह अकेला मंत्री नहीं है जो बेअंदाज़ हो. महंगाई की मार से जब प्याज दो सौ रुपये किलो में बिक रही थी तो किसी ने केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से कहा कि प्याज़ दो सौ रुपये में बिक रही है क्या आदमी खाना भी छोड़ दे तो वित्तमंत्री मुस्कुराते हुए बोलीं कि मैं तो प्याज खाती ही नहीं.
पेट्रोल और डीज़ल के दाम आसमान छू रहे हैं. आम आदमी चीख-चीख कर थक गया मगर सरकार तक आवाज़ ही नहीं पहुंची. कोर्ट के निर्देश पर जीएसटी काउंसिल की लखनऊ में बैठक बुलाई गई. इस बैठक में पेट्रोल-डीज़ल के दामों को जीएसटी के दायरे में लाने पर चर्चा होनी थी. कयास लगाए जा रहे थे कि पेट्रोल पर 25 रुपये और डीज़ल पर 28 रुपये कम हो जायेंगे लेकिन पूरी बैठक में पेट्रोल-डीज़ल पर चर्चा तक नहीं हुई. बैठक के अंत में वित्त मंत्री ने जीएसटी काउंसिल को बताया कि कोर्ट ने इस बात पर विचार करने को कहा है कि पेट्रोल और डीज़ल को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए. आप लोगों को क्या लगता है कि ऐसा होना चाहिए. सदस्यों ने कहा कि नहीं इसकी ज़रूरत नहीं है. वित्त मंत्री ने कहा कि ठीक है यही बात कोर्ट को बता देंगे कि जीएसटी काउंसिल नहीं चाहती कि पेट्रोल-डीज़ल के दाम घटें.
अभी कुछ दिन पहले केन्द्रीय वित्त मंत्री ने कहा था कि यूपीए सरकार की गलत नीतियों की वजह से पेट्रोल-डीज़ल महंगा मिल रहा है. साल 2026 तक इसके दामों में कमी नहीं की जा सकती.
खुद फोकट का पेट्रोल-डीज़ल फूंकने वाली निर्मला सीतारमण को फ़िक्र नहीं है कि आम आदमी कैसे इतना महंगा पेट्रोल-डीज़ल खरीद रहा है. मंत्री फोकट का तेल गाड़ी में डलवा रहा है. ड्राइवर गाड़ी में से निकालकर तेल बेच रहा है. कोई पूछने वाला ही नहीं है.
जनता के वोटों पर चुनाव जीतने वाले जनता को जानवर से ज्यादा नहीं समझते हैं. अपने लिए वीआईपी ट्रीटमेंट और जनता के लिए सुविधाओं का अभाव. इन्हें फोकट में इतना ज्यादा मिलता है कि इनके भीतर की संवेदनाएं भी मर जाती हैं.
हर सरकार में 75 से ज्यादा मंत्री होते हैं. सभी मंत्रियों को एक जैसी सुविधाएं मिलती हैं मगर सम्मान सबका अलग-अलग होता है. सुषमा स्वराज आज जीवित नहीं हैं मगर लोगों के दिलों में आज भी धड़कती हैं मगर ऐसे मंत्रियों की तादाद बहुत बड़ी है जिन्हें कुर्सी से उतरने के बाद सलाम करने वाले भी गिने-चुने रह जाते हैं.
हेमवती नन्दन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. एक कार्यक्रम में रवीन्द्रालय में पुराने लखनऊ के शीशमहल में रहने वाले एक बुज़ुर्ग अपनी समस्या लेकर मुख्यमंत्री के पास पहुंचे. तब मुख्यमंत्री तक पहुंचना इतना मुश्किल नहीं होता था. बहुगुणा जी के पास वक्त कम था, उन्होंने कहा कि कल शाम को फोन पर बात करियेगा. बुज़ुर्ग रुआंसे हो गए. अरे साहब मेरे जैसे आदमी के पास कहाँ फोन? बहुगुणा जी ने कहा कि कल शाम को आपसे फोन पर बात करुंगा. एक अधिकारी ने बुज़ुर्ग का नाम-पता नोट कर लिया. निराश बुज़ुर्ग घर लौट गए.
दूसरे दिन सुबह ही शीशमहल में टेलीफोन की लाइन खिंचने लगी. बुज़ुर्ग के घर में दोपहर तक टेलीफोन लग गया. शाम को बताये वक्त पर उनके घर में घंटी बजी. उधर से आवाज़ आई कि मुख्यमंत्री जी बात करेंगे. घबराए हुए बुज़ुर्ग ने कहा कि अरे सरकार पहले ही क्या कम दिक्कतें थीं, अब टेलीफोन का किराया भी देना पड़ेगा. बहुगुणा जी ने पूछा कि पहले अपनी वह समस्या बताइये जो आप कल बताने वाले थे. बुज़ुर्ग ने बताया कि कोई उनकी जान का दुश्मन बना हुआ है. सम्पत्ति का मामला है. रोज़ धमकी आती है.
बहुगुणा जी ने उसी वक्त तीन आदेश किये. पहला लखनऊ के एसपी से कहा कि बुज़ुर्ग से उनके घर जाकर मिलें और उनकी समस्या का स्थायी समाधान करें. दूसरा आदेश किया कि बुज़ुर्ग जब तक जिन्दा रहें उनसे टेलीफोन का किराया न लिया जाए. उनका बिल सरकार भरेगी. अपने स्टाफ को उन्होंने आदेश दिया कि बुज़ुर्ग को जब भी दिक्कत हो और वह उनसे बात करना चाहें तो तत्काल उनसे बात कराई जाए. यह फोन इसी काम के लिए लगाया गया है.
गडकरी जी सुषमा स्वराज और बहुगुणा जी जैसे लोग कभी मरते नहीं हैं. वह हमेशा लोगों की यादों में जिन्दा रहते हैं. आपको तो अपनी ही सरकार में राज्यमंत्री कौशल किशोर से सीखना चाहिए जिनका जवान बेटा शराब पीने की वजह से मर गया तो उन्होंने नौजवानों की शराब छुड़ाने की मुहिम छेड़ दी.
पत्रकारों के पास कोई मज़बूत संगठन नहीं है वर्ना आपको फोकट की परिभाषा अच्छे से समझाई जा सकती थी. आपके कार्यक्रमों की कवरेज तो होती लेकिन आपका नाम और तस्वीर का प्रकाशन और प्रसारण बंद कर दिया जाता. आपको यह बताना ज़रूरी है कि फोकट में आपकी तस्वीर और नाम क्यों छापा जाए? आपको क्यों टेलीविज़न स्क्रीन पर दिखाया जाए? सरकारें आती हैं चली जाती हैं. जाना तो आपको भी होगा मगर फोकट की पेंशन लेते हुए कभी शर्म आये तो बताइयेगा.
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