जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. नरेन्द्र मोदी सरकार महिलाओं के विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल किये जाने को लेकर काफी गंभीर है. इस सम्बन्ध में संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक भी पेश किया गया था. यह विधेयक संसद में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लाया गया.
महिलाओं के विवाह की उम्र बढ़ाकर 18 से 21 किये जाने के लिए संसद ने 31 सदस्यीय समिति भी गठित कर दी है लेकिन इस क़ानून को लेकर सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं को लेकर बनाए जाने वाले क़ानून के लिए सलाह देने वाली 31 सदस्यीय समिति में सिर्फ एक महिला सांसद को शामिल किया गया है. यानि महिलाओं के विवाह योग्य आयु के बारे में 30 पुरुष और एक महिलाओं की समिति तय करेगी.
बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय समिति में तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव इकलौती महिला सदस्य हैं. समिति की सदस्य सुष्मिता देव का कहना है कि समिति में और महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए था लेकिन समिति पूरी कोशिश करेगी कि महिला हितों का पूरा ध्यान रखा जाए.
महिलाओं की विवाह योग्य आयु को 18 से बढ़ाकर 21 किये जाने सम्बन्धी क़ानून के लिए समिति बनाते वक्त महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से ज्यादा होनी चाहिए थी क्योंकि यह मुख्य रूप से महिला हित से जुड़ा मुद्दा है. इस क़ानून को सभी धर्मों पर बराबरी से लागू किया जाना है इसलिए इस विषय पर गंभीरता भी ज्यादा होनी चाहिए थी. एक बार क़ानून बन जाने के बाद यह मौजूदा क़ानून पर्सनल लॉ का हिस्सा भी बनेगा.
इस सम्बन्ध में क़ानून बनाने का फैसला अचानक से नहीं लिया गया है. जून 2020 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से गठित की गई जया जेटली की अध्यक्षता में गठित समिति ने केन्द्र सरकार से यह सिफारिश की थी कि महिलाओं के विवाह की उम्र बढ़ा दी जाए. जब यह विधेयक पेश किया गया था तब कुछ सदस्यों ने विरोध भी किया था. तब यह मांग की गई थी कि ज्यादा जांच और पड़ताल के लिए इसे संसदीय समिति के सामने भेजा जाना चाहिए. इसी वजह से संसदीय समिति के गठन का फैसला लेना पड़ा. 31 सदस्यीय समिति बनाई गई तो समिति में 30 पुरुष और एक महिला को सदस्य बनाया गया.
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