जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई का क्रेज बहुत बढ़ गया है। आलम तो यह है कि बच्चें अब अपने अभिभावकों से मोबाइल के बजाये लैपटॉप की डिमांड जरूर बढ़ गई है। हालांकि कोरोना काल में अनलॉक 4.0 में भले ही केंद्र सरकार की गाइडलाइन में कंटेनमेंट जोन के बाहर 21 सितंबर से कक्षा नौ से 12 तक के स्कूल खोलने की बात कही हो लेकिन यूपी में फिलहाल कोरोना को देखते हुए स्कूल नहीं खोला जाएगा। ऐसे में अब भी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी होगी।
ऑनलाइन पढ़ाई पर एक्सपर्ट की अलग-अलग राय है। कुछ कहना है कि हमारे एजुकेशन सिस्टम अभी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। हालांकि जिन स्कूलों में अभी ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है वो शायद आधी-अधूरी तैयारी कर पढ़ा रहे जिसकी वजह से न सिर्फ बच्चें बल्कि अभिभावकों को अच्छी खासी परेशानी उठानी पड़ रही है।
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इस समय कई स्कूलों में डिजिटल क्लास चल रही है लेकिन नेटवर्क ने ऑनलाइन पढ़ाई का बेड़ा गर्क कर दिया है। कई बच्चों को यूट्यूब वीडियो भी समझ में नहीं आ रहा है। इस वजह से बच्चों के अभिभावकों को ऑनलाइन पढ़ाई रास नहीं आ रही है। बच्चें व्हाट्सएप ग्रुप पर पढ़ाई के बजाये चाटिंग करनें लगे रहते हैं।
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इतना ही नहीं व्हाट्सएप ग्रुप गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके आलावा बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई की आड़ में गेमिंग खेलते नजर आ रहे हैं। शरारती बच्चें ऑनलाइन पढ़ाई के बजाये गेमिंग के साथ-साथ कार्टून देखते पकड़े गए है। कुछ बच्चें ऐसे है जो सुबह ऑनलाइन अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं फिर इसके बाद सो जाते हैं।
सेंट टेरेसा डे स्कूल मॉडल हाउस के शिक्षक यासिर नैय्यर बताते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चे सपोर्ट नहीं कर पाते हैं। उन्होंने बताया कि जो बच्चे पहले से कमजोर है उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई उतनी असरदार नहीं हो पा रही है। यासिर नैय्यर बताते हैं कि इंटरनेट की वजह से कई बार पढ़ाई बीच में रूक जाती है।
यासिर नैय्यरने बताया कि जब स्कूल चलते थे बच्चों को कम समय के लिए मोबाइल देते थे लेकिन अब हालात बदल गए है। ऑनलाइन क्लास की वजह से देर तक देना पड़ता है। इसका नतीजा यह हुआ कि ऑनलाइन क्लास के बजाये दूसरे कामों में लग जाता है। ऐसे में पढ़ाई के बहाने बच्चा किसी गलत वेबसाइट्स पर न चला जाएं इसका ध्यान पैरेंट्स को रखना होगा।
गेमिंग, सोशल मीडिया, पोर्न साइट्स आदि को लेकर भी पैरेंट्स को अलर्ट रहकर बच्चों को संभालना होगा। ये जरूरी है क्योंकि बच्चा अभी उतना मैच्योर नहीं है वेबसाइट्स हजारों हैं लेकिन उससे उसे कितना और क्या कन्ज्यूम करना उसको अभी इतनी समझ नहीं है। ऐसे में इंटरनेट पर टाइम कन्जयूमिंग जैसे इशू लिए बच्चों को फिक्स टाइम के लिए फोन-लैपटॉप दें।
आलम तो यह है कि व्यक्तिगत तौर पर उनका होमवर्क पूरा करना पड़ता है। परीक्षा लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन परीक्षा में चीटिंग भी खूब हो रही है क्योंकि इसकी देख-रेख कोई नहीं कर पा रहा है। दूसरी अभिभावक भी अपने बच्चे पर नजर नहीं रख पाते हैं। इसका नतीजा यह रहता है बच्चे पढ़ाई छोड़कर मोबाइल पर गेम को तर्जी देने लगते हैं।