कृष्णमोहन झा
देश के अंदर अधिकांश राज्यों में इस समय प्याज की कीमतें आम आदमी की पहुंच के बाहर होती जा रही है। प्याज की कीमतों में आए इस उछाल ने केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों को भी चिंता में डाल दिया है। सबसे ज्यादा चिंता में वे राज्य सरकारें हैं, जहां अगले माह विधानसभा चुनाव होना है। कई राज्यों के विधानसभा उपचुनाव भी अगले होने जा रहे हैं।
महाराष्ट्र और हरियाणा में अगले माह होने वाले विधानसभा चुनाव में प्याज की बढ़ी हुई कीमतें मतदाताओं को नाराज कर सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों को नियंत्रित रखते के लिए कहीं प्रभावी कदम उठाए है, ताकि प्याज की कीमतों में उछाल का असर चुनाव पर ना पढ़ सकें।
केंद्र सरकार की यह चिंता इसलिए भी स्वाभाविक है कि अतीत में कई बार प्याज की कीमतों में उछाल को चुनावी मुद्दा बनाया जा चुका है। और उस समय हुए उछाल से चुनाव परिणाम भी प्रभावित हुए हैं। सरकार इस कड़वी हकीकत से भली-भांति वाकिफ है कि प्याज की कीमतों में उछाल से संपन्न वर्ग पर भले ही खास असर ना पड़े, परंतु उन लोगो की मुसीबतों में इजाफा जरूर होगा जो केवल ब्याज के साथ रोटी खाकर अपना पेट भर लेते है।
देश में दो साल पहले प्याज की पैदावार इतनी अधिक हुई थी कि प्याज बाजार में दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकने की स्थिति आ गया था, फिर भी उसे खरीदने वाला कोई नहीं था। आज वही प्याज 80 रुपये प्रति किलो से भी अधिक मूल्य पर कठिनाई से उपलब्ध हो पा रहा है। प्याज की कीमतों में आए उछाल से इसकी जमाखोरी शुरू हो गई है।
केंद्र सरकार ने जमाखोरों के विरूद्ध कठोर कदम उठाने के लिए राज्य सरकारों को ताकीद किया है। बाजार में प्याज की उपलब्धता को बरकरार रखने के लिए केंद्र सरकार ने और भी कई सख्त कदम उठाए, लेकिन यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकार ने अगर यही कदम समय रहते उठाए होते तो आज प्याज की कीमतों में तेजी से तेजी का रुख प्रारंभ नही हुआ होता और तो शायद प्याज की कीमते काफी हद तक नियंत्रित रहती। हालांकि सरकार द्वारा उठाए गए इन कठोर कदमों से देर आए दुरुस्त आए वाली कहावत ही तो चरितार्थ हो ही रही है।
केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों में उछाल को नियंत्रित करने के लिए जो कठोर कदम उठाए हैं, उनमें प्याज के निर्यात पर रोक तथा इसकी स्टाक सीमा कर तय करने जैसे कदम का कारगर साबित हो सकते हैं। इनका असर तभी दिखाई देगा जब प्याज की जमाखोरी करने वालों के विरुद्ध सख्त कदम उठाए जाए। यह कोई नई बात नहीं है कि जब जीवन उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में यकायक उछाल आता है तो उसकी जमाखोरी भी प्रारंभ हो जाती है। प्याज के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है तो आश्चर्य की बात नहीं है।
केंद्र सरकार ने सभी तरह के प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है। उपभोक्ता मंत्रालय ने बांग्लादेश और श्रीलंका को न्यूनतम निर्यात मूल्य से भी कम दाम पर कथित निर्यात को तत्काल रोकने संबंधी सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि सरकार के आदेश को न मानने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। प्याज का खुदरा कारोबार करने वाले व्यापारी अब 100 क्विंटल से अधिक बफर स्टॉक नहीं रख सकेंगे।
थोक व्यापारियों के यह सीमा 500 क्विंटल तय की गई है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने प्याज के कारोबारियों के लिए इसके बफर स्टॉक की सीमा तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को सौप रखे थे, लेकिन प्याज की कीमतों में निरंतर आ रहे उछाल से चिंतित केंद्र सरकार ने इसकी सीमा स्वयं ही तय कर दी है। केंद्र सरकार की चिंता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार ने पूरे देश में अपने बफर स्टॉक से 50 हजार टन करने का फैसला भी ले लिया है।
सरकार द्वारा मदर डेयरी और सहकारी संस्था के द्वारा जो प्याज बेची भी जा रही है उसका मूल्य 23 रुपये प्रति किलो तय किया गया है।सरकार प्याज के भाव लो नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है, लेकिन एक बात तो तय है कि निकट भविष्य में भाव के एकदम नीचे आने की उम्मीद कम ही दिखाई देती है।
प्याज की कीमतों में आए उछाल की मुख्य वजह कई राज्यों में लगातार भारी वर्षा को माना जा सकता है, जिसने आपूर्ति को भी प्रभावित किया है। पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र और कर्नाटक में हुई भारी वर्षा के कारण उत्पन्न बाढ़ की स्थिति ने प्याज की आपूर्ति को बाधित किया है। मालूम हो कि प्याज अधिकांश इन्हीं राज्यों में होता है। इधर बारिश के कारण नई प्याज के बाजार में आने में विलंब की आशंका भी व्यक्त की जा रही है।
केंद्र सरकार के द्वारा उठाए गए कठोर कदमों से स्थिति में सुधार की उम्मीद तो बनी है ,परंतु यह कहना मुश्किल है कि लोगों को निकट भविष्य में पहले जैसे कम दामों पर प्याज मिलने लगेगी। यदि भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार को प्याज की कीमतों में उछाल से होने वाले चुनावी नुकसान की आशंका सता रही है तो यह स्वाभाविक भी है।
अतीत में प्याज की कीमतों में हुई अंधाधुंध वृद्धि के कारण वह चुनाव में उसका खामियाजा भुगत चुकी है। इसलिए सरकार के ताजे कठोर कदमों से समस्या नहीं सुलझती है तो वह कुछ और सख्त कदम उठा सकती है।
सवाल बस यही उठता है कि स्थिति बिगड़ने के पहले ही उसका पूर्वानुमान लगाने में सरकार हमेशा चूक क्यों जाती है। इधर दिल्ली
में आम आदमी पार्टी की सरकार को भी आशंका सता रही है कि प्याज की कीमतों में उछाल से नाराज जनता उसे भी उसी तरह चुनाव में अपना कोप भोजन बना सकती है, जिस तरह अतीत में उसने भाजपा को बनाया था।
पार्टी की चुनावी संभावनाओं को लेकर पहले से ही चिंता में डूबे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा कर दी है कि उनकी सरकार बड़ी मात्रा में प्याज खरीद कर मोबाइल वैन के जरिए 24 प्रति किलो की दर से भेजने का फैसला कर चुकी है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव संपन्न होने के कुछ ही महीनों के अंदर झारखंड औऱ दिल्ली के विधानसभा चुनाव होना है। अब देखना है कि महाराष्ट्र और हरियाणा के सरकारें प्याज की बढ़ती कीमतों को चुनावी मुद्दा बनने से रोकने के लिए क्या प्रभावी कदम उठाती है।