जुबिली न्यूज डेस्क
शादी से पहले सेक्स यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है। एक ऐसे फैसले ने इस विषय को चर्चा में ला दिया है. दरअसल इंडोनेशिया की संसद ने मंगलवार को एक नए आपराधिक कानून को मंजूरी दी. इस नए कानून के तहत शादी से बाहर सेक्स को अपराध के दायरे में लाया गया है. इसका उल्लंघन करने पर एक साल की सजा हो सकती है. इंडोनेशिया के इस कानून की चर्चा पूरी दुनिया में है. ये कानून वैसे केवल इंडोनेशिया में ही नहीं है बल्कि भारत में भी लंबे समय से है, जहां शादी से बाहर जाकर संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान है.
150 सालों से ज्यादा पुराना कानून
हमारे देश में एडल्ट्री कानून वैसे 150 सालों से ज्यादा पुराना है. बस इसमें पहले पति को ही ऐसे संबंधों को लेकर अपराधी माना जाता था लेकिन अब इसमें कानून में बदलाव करके महिलाओं को भी शामिल कर दिया गया है यानि कि अगर वो भी ऐसा करती हैं तो अपराधी मानी जाएंगी और पुरुषों की तरह सजा की भागीदार होंगी. बाद में इस कानून को कुछ साल पहले ही रद्द कर दिया गया
क्या है एडल्ट्री या धारा 497?
धारा 497 केवल उस व्यक्ति के संबंध को अपराध मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं. पत्नी को न तो व्यभिचारी और न ही कानून में अपराध माना जाता है, जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता था.जबकि महिला के खिलाफ न तो कोई केस दर्ज होता था और न ही उसे किसी प्रकार की कोई सजा मिलती थी. इस कानून के तहत पति, पत्नी से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता था, लेकिन वह पत्नी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करा पाता था.
क्यों इस कानून को रद्द कर दिया गया
2018 में सर्वोच्च न्यायालय में एडल्ट्री (व्याभिचार) कानून को रद्द कर दिया गया था. हालांकि 2018 से पहले यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत दंडनीय अपराध था. इस जुर्म में पाच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान भी था. 27 सितंबर 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था, “एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है और इसे जुर्म होना भी नहीं चाहिए.” ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका पर सुनाया था जिसमें विवाहेत्तर संबंध बनाने को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराया गया था.
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भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को मनमाना और अप्रासंगिक घोषित करते हुए जस्टिस मिश्रा ने जोड़ा, “अब यह कहने का वक़्त आ गया है कि शादी में पति, पत्नी का मालिक नहीं होता है. स्त्री या पुरुष में से किसी भी एक की दूसरे पर क़ानूनी सम्प्रभुता सिरे से ग़लत है.”साथ ही संविधान पीठ ने यह भी जोड़ा कि व्यभिचार आज भी तलाक़ का एक मज़बूत आधार है, पर आपराधिक जुर्म नहीं. हालांकि इस कानून के बनने के बाद भी इस पर विवाद बना रहा. आखिरकार जब इसे कोर्ट में चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार किया. फिर इसे रद्द कर दिया गया. अब ये एडल्ट्री कानून इतिहास बन चुका है.
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