Saturday - 26 October 2024 - 9:16 AM

मोदी 2.0 : सफलताओं के साथ बढ़ गई हैं चुनौतियाँ

जुबिली डेस्क

मोदी 2.0 का एक साल आज पूरा हो रहा है । अपने पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की ब्रांड इतनी चमक भरी थी कि उसके आगे विपक्ष हवा के तिनके की तरह बिखर गया था और नरेंद्र मोदी दोबारा  एक बड़े बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने।

लेकिन दूसरे कार्यकाल का पहला साल खत्म होते होते ब्रांड मोदी को चुनौतियों का सामान्य करना पड़ रहा है । विपक्ष के हलमे तेज हो गए हैं और कोरोना ने संकट को और भी बढ़ा दिया है ।

नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उपलब्धियां भी हैं तो नाकामियां भी हैं. बात उपलब्धियों की करें तो तीन तलाक क़ानून को खत्म किया. जम्मू कश्मीर से धारा 35 ए को हटाया. तमाम विरोध के बावजूद नागरिकता संशोधन क़ानून पारित करवा लिया. मोदी सरकार ने बैंकों के विलय से जुड़े फैसले भी लिए.

इस सरकार की नाकामियों की बात करें तो नागरिकता संशोधन क़ानून पारित करा लेने के बावजूद सरकार देश के नागरिकों को इस क़ानून के सम्बन्ध में समझा नहीं पाई. दिल्ली के शाहीन बाग़ और लखनऊ के घंटाघर समेत देश के 400 स्थानों पर लाखों महिलाओं ने इस क़ानून को लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया.

लोकसभा चुनाव में जिस बीजेपी ने दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीत लीं थीं, विधानसभा चुनाव में उसे करारी हार झेलनी पड़ी. दिल्ली चुनाव के कुछ ही दिन बाद महाराष्ट्र भी उसके हाथ से फिसल गया.

नरेन्द्र मोदी 2.0 : शुरुआती सफलता कर बाद बढ़ गई हैं चुनौतियां

पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैली तो इस काल में मोदी सरकार ने जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन जैसे कड़े फैसले लिए और उन्हें प्रभावी तरीके से लागू करवाया. कोरोना के खिलाफ भारत की जंग को लेकर दुनिया के तमाम देशों ने मोदी सरकार की तारीफ़ की.

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नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के सेक्शन 35 ए को हटाकर उसका विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम से दो केन्द्र शासित राज्य गठित कर दिए. सरकार ने एक देश एक विधान के नारे पर जम्मू-कश्मीर में अपने फैसले को जिस अंदाज़ में लागू करवाया उसकी भी हर जगह तारीफ़ हुई.

नरेन्द्र मोदी सरकार ने तमाम विरोध को दरकिनार कर नागरिकता संशोधन क़ानून को संसद से पास करवा लिया. इस क़ानून को पास कर सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के प्रताड़ित हिन्दुओं, सिक्खों, बौद्धों और पारसियों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ़ कर लिया.

नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक क़ानून से छुटकारा दिलवाया. सरकार ने संसद में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2019 पास करवा लिया. इस क़ानून के पारित हो जाने के बाद तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ गया. तीन तलाक देने वाले पति को अब तीन साल की कैद या जुर्माना या फिर दोनों सज़ाएँ दी जा सकती हैं.

 

नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में आर्थिक सुधार के लिए दस सरकारी बैंकों का विलय करके चार बड़े बैंक बनाने का फैसला किया. इसके तहत ओरियंटल बैंक ऑफ़ कामर्स और यूनाईटेड बैंक को पंजाब नेशनल बैंक में समाहित कर दिया गया. इलाहाबाद बैंक को इन्डियन बैंक और सिंडिकेट बैंक को केनरा बैंक में मिला दिया गया. आंध्रा बैंक और कारपोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ़ इण्डिया में विलय कर दिया गया.

सरकार की नाकामियां

नरेन्द्र मोदी सरकार की नाकामियों पर बात करें तो दिल्ली और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के पीछे सरकार के दूसरे कार्यकाल की विफलताएं ही मुख्य कारण थीं.

सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लेकर आयी तो पूरे देश में विरोध के जो स्वर सुनाई दिए उसके पीछे सीएए नहीं बल्कि सीएए और एनआरसी का गठजोड़ था. दिल्ली के शाहीन बाग़ और लखनऊ के घंटाघर समेत 400 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन होने लगे लेकिन ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के विरोधाभासी बयान सामने आने से यह बात साफ़ हो गई कि सरकार में आपस में ही तालमेल नहीं है.

प्रधानमंत्री ने जिस दिन यह कहा कि अभी एनआरसी का ड्राफ्ट ही तैयार नहीं है ठीक उसी दिन गृहमंत्री ने कहा कि हम एनआरसी को देश भर में लागू करेंगे.असम में एनआरसी का नतीजा पूरा देश देख चुका था. असम में 19 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए थे. असम में हुए घटनाक्रम के बाद सीएए को पारित कराये जाने से मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा हुई.

बावजूद इसके इस ग़लतफ़हमी को दूर करने के बजाय गृहमंत्री ने दिल्ली चुनाव में शाहींबाग को चुनावी मुद्दा बना दिया और लोगों से वोटों के ज़रिये शाहीनबाग तक करेंट पहुंचाने का आह्वान कर दिया. गृहमंत्री के आह्वान के बाद बीजेपी दिल्ली हार गई.

आपसी तालमेल के अभाव में सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून को जिस राजनीतिक अंदाज़ में पेश किया उसकी वजह से कई प्रदेशों की सरकारों ने विधेयक पारित कर अपने प्रदेश में एनआरसी लागू करने से इनकार कर दिया. यही वजह रही कि देश में एनपीआर की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पाई. एनपीआर की प्रक्रिया हर दस साल में अपनाई जाती है लेकिन यह सरकार की नाकामी है कि आज़ादी के बाद पहली बार एनपीआर का काम शुरू नहीं हो पाया.

नरेन्द्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन के समय दिखाई दी. ट्रंप दिल्ली में थे और दिल्ली में दंगा हो गया. इस दंगे में 50 लोगों की जान चली गई. जिस देश को साम्प्रदायिक सद्भाव के नाम से पहचाना जाता है उस देश में मेहमान राष्ट्रपति की मौजूदगी में साम्प्रदायिक हिंसा हुई और देश का नाम दुनिया के सामने खराब हुआ.

नरेन्द्र मोदी सरकार की एक बड़ी नाकामी है देश में बढ़ती बेरोजगारी. कोरोना संकट के बाद पलायन के बाद देश में बेरोजगारी की जो नई इबारत लिख गई है उसे साफ़ करने में कई साल लग जायेंगे. प्रधानमंत्री ने देश में लॉक डाउन का फैसला करते वक्त अगर उन चार करोड़ मजदूरों के बारे में विचार विमर्श कर लिया होता तो शायद सरकारी फैसले का सड़कों पर मज़ाक न उड़ा होता और मजदूर भी काम छिन जाने के बाद अपने घरों पर पहुँच गए होते.

सरकार लॉक डाउन शुरू होने के बाद एक हफ्ते तक ट्रेनें चलाने का एलान कर देती तो मजदूर अपना टिकट खरीदकर अपने घरों को लौट गए होते. देश में आवाजाही थम जाने के बाद लॉक डाउन भी सफल होता और कोरोना की जाँच की रफ़्तार भी इससे बेहतर होती.

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