प्रमुख संवाददाता
नई दिल्ली. कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार से आरपार की लड़ाई के लिए दिल्ली बार्डर पर जमा हुए किसानों को खुले आसमान के नीचे एक महीना बीत चुका है. इस एक महीने में सरकार और किसानों में छह दौर की बेनतीजा बातचीत हो चुकी है. एक महीना बीत जाने के बाद भी हालात यह हैं कि हालात जहाँ के तहां हैं. सरकार क़ानून वापस लेने को तैयार नहीं है और किसान बगैर मांग पूरी हुए अपने कदम वापस लेने को तैयार नहीं हैं.
एक महीना पहले किसान जब दिल्ली बार्डर पर जमा हुए थे उसी समय उन्होंने यह एलान कर दिया था कि कृषि कानूनों की वापसी से पहले वह वापस लौटने वाले नहीं हैं, भले ही कितना भी समय आन्दोलन करना पड़े. किसानों ने उसी समय यह भी बता दिया था कि वह अपने साथ छह महीने का राशन लेकर आये हैं, कम पड़ेगा और तो और मंगाएंगे.
किसानों को दिल्ली बार्डर पर जमे हुए एक महीना गुज़र गया. सरकार को उम्मीद थी कि मौसम बदलेगा तो कृषि कानूनों में एक-दो संशोधन के वादे पर किसान मान जायेंगे. किसानों और सरकार के बीच हुई छह दौर की बातचीत में सरकार ने किसानों के सामने खुद यह माना कि 15 में से 12 मुद्दे ऐसे हैं जिनमें किसान सही हैं इसके बावजूद सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है.
दिल्ली के विज्ञान भवन में किसानों के 40 संगठनों के साथ केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की पांच दौर की बेनतीजा बातचीत के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने 13 किसान संगठन के नेताओं को बातचीत के लिए अपने घर बुलाया. 40 में से 13 संगठनों को बुलाकर सरकार ने आंदोलित किसानों के दो फाड़ करने की कोशिश की लेकिन इससे आन्दोलन में कोई फर्क नहीं पड़ा और बातचीत बेनतीजा खत्म हो गई.
कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार एक महीने से दिल्ली बार्डर पर जमा किसान कमज़ोर नहीं हो रहे बल्कि उनकी ताकत लगातार बढ़ती जा रही है. जैसे-जैसे सर्दी का सितम बढ़ रहा है वैसे-वैसे अनशन स्थल पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान राशन और बिस्तर के साथ बढ़ते जा रहे हैं.
किसान आन्दोलन की जो सबसे बड़ी ताकत है वह किसी भी विपक्षी दल का सहयोग न लेना है. किसानों ने अपने आन्दोलन को अभी तक राजनीतिक नहीं बनने दिया है. एक महीना गुज़र जाने के बाद भी हालात यह है कि किसानों से भरी ट्रालियों को लेकर ट्रैक्टर रोजाना दिल्ली की तरफ बढ़ते नज़र आ रहे हैं. दिल्ली सीमा पर लगातार किसानों की संख्या बढ़ रही है मगर किसान अभी तक पूरी तरह से शांत हैं. जिन पुलिसकर्मियों ने उन पर लाठियां चलाई थीं और वाटर कैनन से उन पर पानी की बरसात की थी उन्हें भी किसान दोनों वक्त का खाना खिला रहे हैं.
आंदोलित किसानों ने एक तरफ अपनी मांगें मनवाने के लिए शान्ति और अहिंसा का रास्ता पकड़कर पूरे देश में अपने लिए जनसमर्थन जुटाया है तो दूसरी तरफ जियो फोन और रिलायंस के अन्य उत्पादों का बहिष्कार कर मुकेश अम्बानी के समूह की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं.
किसान आन्दोलन के दौर में हरियाणा में अडानी का वह निर्माण भी सामने आ गया है जिसे कृषि कानूनों से पहले अनाज को जमा करने के लिए बनाया गया है. किसान संगठन एक तरफ दिल्ली बार्डर पर जमा होकर अनशन कर रहे हैं वहीं सरकार के साथ लगातार बातचीत का रास्ता खोले रखकर बाल सरकार के ही पाले में रख रहे हैं. दूसरी और किसानों की टोलियाँ गाँव-गाँव में घूमकर उन किसान परिवारों को कृषि कानूनों के बारे में जानकारी दे रही हैं जो अशिक्षित हैं और कानूनों की समझ नहीं रखते हैं. किसान देश के हर किसान परिवार से एक व्यक्ति को इस आन्दोलन का हिस्सा बनाते जा रहे हैं जो आने वाले दिनों में सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनेगा.
ग्रामीण इलाकों में अभी भी बड़ी संख्या में किसान परिवार इस आन्दोलन से कोसों दूर हैं. आन्दोलन से दूर यही किसान सरकार की ताकत हैं. आन्दोलन में शामिल किसानों की टोलियाँ ऐसे गाँव में घूम-घूमकर ऐसे किसानों के बीच जो जागरूकता फैला रहे हैं और उससे जो लोग निकलकर आन्दोलन का हिस्सा बनते जा रहे हैं. वह सरकार के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है.
किसान आन्दोलन से न जुड़ने वाले किसानों की सबसे ज्यादा संख्या हरियाणा में है. सरकार ने भी हरियाणा के 18 लाख किसानों के खातों में 360 करोड़ रुपये की राशि भेजकर उन्हें यह अहसास कराने की कोशिश की है कि सरकार उनके साथ है और उनका नुक्सान नहीं होने देगी.
हरियाणा के किसानों के खाते में धनराशि जमा होने के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त कर यह सन्देश देने की कोशिश की है कि यहाँ सब कुछ ठीक है लेकिन सच बात यह है कि जिस तरह से किसानों की टोलियाँ रोजाना बड़ी संख्या में हरियाणा के किसानों को आन्दोलन से जोड़ती जा रही हैं वह आने वाले दिनों में सरकार की मुश्किलें और भी बढ़ाने वाली साबित होंगी.
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किसान आन्दोलन के दौरान कई किसानों की मौत और एक संत द्वारा किये गए सुसाइड की वजह से आंदोलित किसानों की यह जिद और भी बढ़ गई है कि बगैर मांगें पूरी हुए वह हटेंगे नहीं. सरकार लगातार यह बताने की कोशिश कर रही है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है और किसान लगातार राजनीतिक दलों को अपने आन्दोलन से दूर रखकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें किसी भी राजनीतिक दल की ज़रूरत नहीं है.