शबाहत हुसैन विजेता
हैदराबाद में डॉ. प्रियंका की गैंगरेप के बाद हत्या कर शव जला दिया गया। 27 साल की एक प्रतिभाशाली डॉक्टर के साथ वहशियाना हरकत हुई और सोशल मीडिया पर हिन्दू-मुसलमान का खेल फिर शुरू हो गया। गैंगरेप में शामिल 4 वहशियों में एक मुसलमान था। इस नाते धर्म की चौपाल से वतन जलाने वाले सक्रिय हो गए। एक बेटी के साथ जो हुआ वह सेकेंडरी हो गया। दिल्ली में चलती बस में जो निर्भया के साथ हुआ था बिल्कुल वही हैदराबाद में डॉ. प्रियंका के साथ भी हुआ। निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए पूरा देश सड़क पर उतर आया था। हालात इतना आक्रोश भरे थे कि सरकार को कानून बदलना पड़ा था लेकिन उसके बाद से आज तक के हालात पर निगाह दौड़ाएं तो कहां पहुंच गए हैं हम।
आक्रोश तो आज भी उमड़ता है लेकिन वह अपराधी का धर्म ढूंढता है। अपराधी मुसलमान हुआ तो ऐसे घिनौने लोगों की बांछें खिल जाती हैं। व्यभिचार की शिकार लड़की को इंसाफ दिलाने के बजाय समाज में बंटवारे का शोर तेज़ हो जाता है। इसी शोर में इंसाफ की आवाज़ कहीं दब जाती है।
सोशल मीडिया पर आज बीजिंग का एक घटनाक्रम भी कुछ समझदार लोगों ने लिखा। इस घटनाक्रम में बताया गया कि बीजिंग में एक युवती के साथ तीन लोगों ने गैंगरेप किया। गैंगरेप की खबर क्रांतिकारी माओ त्से तुंग तक भी पहुंची। माओ तत्काल पीड़िता के पास पहुंचे और उसके सर पर हाथ रखकर पूछा कि बेटी जब तुम्हारे साथ यह सब हुआ तो तुम मदद के लिए चिल्लाईं थीं। पीड़िता ने हां में सर हिलाया। माओ ने पूछा कि क्या तुम उसी अंदाज में एक बार फिर चिल्ला सकती हो। पीड़िता ने हामी भरी। माओ ने अपने सिपाहियों को 500 मीटर के दायरे में थोड़ी-थोड़ी दूर पर खड़ा कर दिया और फिर पीड़िता से चिल्लाने को कहा। पीड़िता की आवाज़ जहां तक पहुंची। उस दायरे में रहने वाले सभी मर्दों को पकड़कर एक लाइन में खड़ा कर दिया। पीड़िता से शिनाख्त करने को कहा। बीस मिनट में सारे अपराधियों का पता चल गया। माओ ने सिपाहियों को आदेश दिया कि इनके भेजे गोलियों से उड़ा दिए जाएं। गैंगरेप के तीन घण्टे के भीतर यह इंसाफ हो गया। न मुकदमा, न सुनवाई, न ट्रायल।
बात हिन्दुस्तानी कानून की करें तो मुकदमा इतना लंबा चलता है कि अधिकांश अभियुक्तों की मौत सुनवाई के दौरान ही हो जाती है। मुकदमा चलता रहता है और कुसूरवार जेलों में बैठकर सरकारी रोटी तोड़ते रहते हैं। सजाये मौत का कानून बन चुका है लेकिन फांसी के फंदे अपराधियों से कोसों दूर हैं।
डॉ. प्रियंका के मामले को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा जा रहा है। यहां भी बरसों मुकदमा चलेगा। न कोई आज सड़क पर निकला है न कल निकलेगा। कानून अपनी रफ़्तार में पड़ताल करता रहेगा और किसी दूसरे शहर में कोई दूसरा वहशी किसी और बेटी की इज़्ज़त तार-तार करता रहेगा।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा गढ़ देने से या फिर सड़कों पर कैंडिल मार्च निकाल लेने भर से लड़कियों में सुरक्षा का भाव नहीं भरा जा सकेगा। हम विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे हैं और हमारे लोगों का चरित्र गंदे नाले की तरह ढलान पर है। कानून रोज़ नए-नए बन रहे हैं। ब्रिटिश कालीन कानूनों को खत्म करने का बड़बोलापन कर रही है सरकार लेकिन बेटियां सुरक्षित नहीं हैं।
आटा महंगा होता जा रहा है और डाटा सस्ता होता जा रहा है। सस्ते डाटा में युवा पीढ़ी क्या देख रही है इस पर किसी भी एजेंसी की कोई निगाह नहीं है। मुफ्त के डाटा से एक तरफ समाज में मज़हब को लेकर नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है तो दूसरी तरफ यही मुफ्त का डाटा युवा वर्ग की मानसिकता को सीवर जैसा गंदा बनाया जा रहा है।
मुफ्त के डाटा पर पोर्न स्टार सर्च किये जा रहे हैं। उनके वीडियो देखे जा रहे हैं। मानसिकता को गंदा और गंदा कर डालने की जैसे साज़िश रची जा रही है। ऊपर से कानून का डर किसी को है नहीं। जो पकड़ भी जाते हैं उनकी ज़िन्दगी का चिराग भी टिमटिमाता नहीं बल्कि पूरी रफ्तार से जलता रहता है।
गैंगरेप के मामलों में हाई प्रोफाइल लोग भी शामिल पाए गए हैं। जनप्रतिनिधि भी इसी घिनौने इल्ज़ाम में जेल काट रहे हैं। वह जेल से ही चुनाव लड़कर जीत रहे हैं। रेप पीड़िता की दशा दोषियों सरीखी होती है। उनकी आवाज़ दबने की कोशिश लगातार होती है। उनका मुंह पैसों से बंद नहीं होता तो उन्हें समझा दिया जाता है कि सड़कों पर एक्सीडेंट बहुत बढ़ गए हैं।
गैंगरेप पर बढ़ती मज़हब की सियासत वास्तव में देश में संस्कारों के साथ गैंगरेप है। इतने गंभीर मुद्दे पर सिर्फ विपक्ष बोलता है और सत्ता खामोश रहती है।
डॉ. प्रियंका अपनी ड्यूटी को खत्म कर घर लौट रही थी। स्कूटी खराब हो गई तो मदद के नाम पर उसके साथ वहशियाना हरकत हो गई। प्रियंका को टोल प्लाजा से गैंगरेप के लिए ले जाया गया। ज़ाहिर है कि इन वहशियों को सीसीटीवी के जरिये फंस जाने का डर भी नहीं था। शायद फंसने से बचने के लिए ही उन्होंने उसे मारकर जला दिया।
डॉ. प्रियंका के साथ सात घण्टे तक वहशियाना हरकत को अंजाम दिया गया और सोशल मीडिया पर जिस तरह से कुत्सित मानसिकता वालों ने अपराधियों को धर्म का चोला पहनाकर अपनी गंदी मानसिकता का प्रदर्शन किया, वह यह बात साफ करता है कि हम आज वहां खड़े हैं जहां से विश्वगुरू बनने का सपना टूटना शुरू होता है। हम वहां खड़े हैं जहां पर संस्कारों की मौत होती है। हम वहां खड़े हैं जहां मज़हब की चिता जलती है। हम वहां खड़े हैं जहां कानून का मखौल उड़ता है। हम उस दहलीज़ पर हैं जहां मदद के लिए कोई नहीं आता। यह दर्दनाक मौत उस डॉक्टर को दी गई है जिसने मौत से लड़ने की पढ़ाई की थी। वह ज़िन्दा रहती तो तमाम मरीजों को मरने से बचाती लेकिन कुछ बीमार लोगों ने ज़िन्दगी के दरवाज़े को जला दिया।