जुबिली न्यूज डेस्क
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने एक बार फिर अपने इस कदम से नेपाल को कई तरह के संवैधानिक संकट में डाल दिया है। उनके इस कदम की आलोचना हो रही है।
पीएम ओली ने पिछले रविवार को अचानक संसद भंग कर दिया था तो शुक्रवार को अचानक ही अपनी कैबिनेट में फेरबदल कर डाला। उनके इस कदम की आलोचना हो रही है। विशेषज्ञ का कहना है कि ओली ने संसद को भंग कर दिया है और अब वो एक कार्यवाहक प्रधानमंत्री हैं। ऐसे में वो कैबिनेट में फेरदबल नहीं कर सकते हैं।
नेपाल के अंग्रेजी अखबार काठमांडू पोस्ट से वहां के संविधान विशेषज्ञ और सीनियर वकील चंद्रकांता ज्ञवाली ने कहा, ”ओली अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री हैं। ऐसी स्थिति में उनके पास यह अधिकार नहीं है कि कैबिनेट में फेरबदल करें।”
सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंद्वी गुट की आलोचना को नजरअंदाज करते हुए ओली ने शुक्रवार को अपनी कैबिनेट में बदलाव किए।
यह भी पढ़ें : शिवराज की चेतावनी- मध्य प्रदेश छोड़ दो नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा, देखें VIDEO
यह भी पढ़ें : यूपी में ऐसे मिल रहा ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘ओडीओपी’ को बढ़ावा
जहां एक ओर नेपाल के से निर्वाचित संसद भंग करने को लेकर स्पष्टीकरण मांगा, वहीं कुछ ही घंटे बाद आठ नए मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह पूरा किया गया।
नए मंत्रियों में तोप बहादुर रायामाझी को उर्जा मंत्रालय, प्रभु साह को शहरी विकास मंत्रालय और प्रेम आले को वन एवं मृदा संरक्षण मंत्रालय दिया गया है।
प्रधानमंत्री ओली के इस कदम को अपने प्रतिद्वंद्वी प्रचंड की आलोचना के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। प्रचंड ने ही सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि नेपाल की संवैधानिक आत्मा को बनाए रखा जाए।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने ओली सरकार को नोटिस जारी किया और लोकसभा को भंग करने के फैसले को लेकर स्पष्टीकरण मांगा।
यह भी पढ़ें : बीजेपी के इस ‘गैर दोस्ताना’ कदम से क्या नीतीश सरकार पर पड़ेगा असर
यह भी पढ़ें : क्यों अहम हैं इस बार के पंचायत चुनाव
बीते रविवार को राष्ट्रपति बीडी भंडारी ने ओली के सुझाव पर संसद को भंग कर दिया था, जिसके बाद इसके खिलाफ कोर्ट में 12 रिट याचिकाएं डाली गईं।
बताया गया है कि संवैधानिक पीठ हर हफ्ते दो बार सुनवाई के लिए बैठेगी और लोकसभा भंग करने की वैधता पर फैसला देगी।
वहीं ओली गुट का कहना है कि भंग हो चुकी संसद को दोबारा बहाल नहीं किया जा सकता। फिलहाल नेपाल की शीर्ष अदालत ने पीएम और राष्ट्रपति दफ्तर से रविवार को हुए इस फैसले के असल दस्तावेज मांगे हैं।
यह भी पढ़ें : अकबर के दौर में थी क्रिसमस की धूम
यह भी पढ़ें : केरल की राजधानी ने चुना देश में सबसे युवा मेयर