जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: देश तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं देश की राजधानी की ही हालत खराब है तो देश का क्या हाल होगा. देश ने गरीबी को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इस प्रगति की गति असमान रही है. यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में काफी स्पष्ट रूप से दिखता है. दिल्ली में जहां कुछ जिलों में बहुआयामी गरीबी काफी कम हुई है, लेकिन अन्य जिलों में यह बढ़ी है.
दिल्ली की कुछ जिलों में बढ़ी गरीबी
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि दिल्ली के सभी जिलों में बहुआयामी गरीबी कम हुई है. शहर के 11 जिलों में से लगभग आधे में बहुआयामी गरीबी बढ़ रही है.राष्ट्रीय राजधानी के जिलों की अगर बात करे तो उत्तरी दिल्ली में बहुआयामी गरीबी में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है. 2016 में, उत्तरी दिल्ली की लगभग 2.41 प्रतिशत आबादी इसके तहत थी जो 2021 में बढ़कर 6.26 प्रतिशत हो गई.
दूसरे शब्दों में कहें तो, 2016 में उत्तरी दिल्ली के प्रत्येक 41 निवासियों में एक व्यक्ति बहुआयामी गरीबी का शिकार था, लेकिन पांच साल बाद यह आंकड़ा 16 निवासियों में से एक पर पहुंच गया.
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इसी प्रकार, पश्चिमी दिल्ली में बहुआयामी गरीबी 2.29 प्रतिशत से बढ़कर 4.68 प्रतिशत, दक्षिण पश्चिम दिल्ली में 2.16 प्रतिशत से बढ़कर 3.15 प्रतिशत, नई दिल्ली में 4.16 प्रतिशत से बढ़कर 4.83 प्रतिशत और मध्य दिल्ली में 3.84 प्रतिशत से बढ़कर 3.88 प्रतिशत हो गई. 2011 की जनगणना के अनुसार, इन पांच जिलों में कुल मिलाकर दिल्ली की 36 प्रतिशत आबादी निवास करती है. MPI में कुल 12 चीजों को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट तैयार किया जाता है.
‘स्कूल में उपस्थिति का अभाव’
भारत की बहुआयामी गरीबी में कमी मुख्य रूप से पानी, बिजली की उपलब्धता आदि जैसे जीवन स्तर के संकेतकों में सुधार का परिणाम है, दूसरी ओर, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विषय अभी भी चुनौती बने हुए हैं. दिल्ली के मामले में, बहुआयामी गरीबी में स्वास्थ्य और जीवन स्तर का योगदान कम हो गया है, जबकि शैक्षिक अभाव बढ़ गया है.
2016 में, दिल्ली में बहुआयामी गरीबी में स्वास्थ्य का योगदान लगभग 47 प्रतिशत था, लेकिन 2021 तक यह गिरकर 43 प्रतिशत हो गया. इसी तरह जीवन स्तर के बाकी संकेतक, जो 2016 में 22.02 प्रतिशत का योगदान करते थे, 2021 में गिरकर लगभग 19 प्रतिशत हो गए.
शैक्षिक अभावों का योगदान बढ़ा
इसके विपरीत, दिल्ली में शैक्षिक अभावों का योगदान बढ़ा है. 2016 में, यह बहुआयामी गरीबी का 31 प्रतिशत था, लेकिन 2021 तक यह बढ़कर 38 प्रतिशत हो गया जो लगभग 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी है.आंकड़ों को विस्तृत स्तर पर देखें तो, दिल्ली में छात्रों की स्कूल में उपस्थिति कमी है.नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, एक परिवार को स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में वंचित माना जाता है यदि “कोई भी स्कूल जाने वाला बच्चा उस उम्र तक स्कूल नहीं जाता है जिस उम्र में वह 8वीं कक्षा पूरी करेगा”. दिल्ली में, दो एनएफएचएस सर्वेक्षणों के बीच स्कूल में उपस्थिति की कमी में बढ़ोतरी देखी गई है.
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सीधे शब्दों में कहें तो, 2016 में आठवीं कक्षा के 1,000 बच्चों में से 263 बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे. यह संख्या 2021 तक बढ़कर 277 हो गई, जो दर्शाता है कि प्रति 1,000 अतिरिक्त 14 बच्चे उस उम्र में स्कूल नहीं जा रहे थे, जब उन्हें कक्षा 8 में पढ़ना चाहिए था.
गौरतलब है कि यह सिर्फ दिल्ली ही नहीं है जहां स्कूल में उपस्थिति में कमी बढ़ी है. कुल मिलाकर, भारत में स्कूल में उपस्थिति की कमी 5.04 प्रतिशत से बढ़कर 5.27 प्रतिशत हो गई है. इसलिए, दिल्ली में अभाव में वृद्धि राष्ट्रीय औसत से थोड़ी कम है. संक्षेप में, जबकि दिल्ली में 2016 की तुलना में 2021 में प्रति 1,000 पर 14 अधिक स्कूल न जाने वाले बच्चे थे, पूरे देश का का औसत 21 प्रतिशत था.दिल्ली के स्कूल में उपस्थिति की कमी में वृद्धि के बारे में निष्कर्ष निकालना मुश्किल है.