जुबिली न्यूज डेस्क
कृषि कानून के खिलाफ पंजाब से उठा किसान आंदोलन हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान समेत अन्य राज्यों में पहुंच चुका है। देशभर के किसान दिल्ली की सीमा पर लाखों की संख्या में बैठ गए हैं। किसान मोदी सरकार पर अंहकारी होने का आरोप लगा रहे है और केंद्र सरकार किसानों से जिद्द छोड़ आंदोलन खत्म करने की अपील कर रहे हैं।
केंद्र सरकार और किसानों के बीच कौन अंहकारी है और कौन जिद्द इसका फैसला कर पाना अभी कठिन है लेकिन दोनों के बीच की जंग में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी खतरे में पड़ गई है। दरसअल, केंद्र सरकार के लिए जहां किसान आंदोलन मुसीबत बन गया है वहीं हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के सामने भी ख़तरा उत्पन्न हो गया है।
बता दें कि हरियाणा में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत तो नहीं पा सकी लेकिन उसने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी यानी जजपा के 10 विधायकों के समर्थन से हरियाणा में सरकार बना ली। मनोहर लाल खट्टर जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर सरकार भी अच्छी चला रहे थे। लेकिन करीब एक साल से कुछ अधिक समय के बाद एक बार फिर से राज्य की सियासत नाटकीय मोड़ लेती दिख रही है।
किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा में राजनीतिक उलटफेर की स्थिति बनती नजर आ रही है। बीजेपी की सहयोगी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) में भी कृषि कानूनों को लेकर हरियाणा में सरकार से अलग होने की मांग तेज होने लगी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डेप्युटी सीएम दुष्यंत चौटाला ने हाल ही में इस मुद्दे पर विधायकों के साथ बैठक की। सूत्रों का कहना है कि जजपा के 10 में से सात विधायकों ने कृषि कानून का विरोध किया है।
दुष्यंत चौटाला के ताजा बयान ने हरियाणा के सीएम की दिल की धड़कनें बढ़ा दी हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पहले ही साफ कर दिया था कि किसानों को एमएसपी मिलना ही चाहिए। केंद्र सरकार ने कल जो लिखित प्रस्तारव दिए, उनमें भी एमएसपी शामिल है। मैं जब तक डेप्युएटी सीएम हूं तब तक किसानों को एमएसपी दिलाने के लिए काम करूंगा। अगर नहीं दिला पाया तो इस्तीफा दे दूंगा।
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सूत्रों की माने तो दुष्यंत चौटाला पर दबाव बढ़ता जा रहा है। बैठक में पार्टी विधायकों से किसान आंदोलन का उनके क्षेत्र में असर, राज्यों को लोगों के रुख आदि के बारे में फीडबैक लिया गया। खास बात है कि दुष्यंत की पार्टी के पास केवल 10 विधायक ही हैं। लेकिन फिर भी हरियाणा की सत्ता को बनाने-बिगाड़ने की स्थिति में हैं।
आपको बता दें कि जजपा को ग्रामीण इलाक़ों में वोट मिला था जो किसान मज़दूरों का वर्ग माना जा रहा है। किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं।
इसको लेकर सबसे ज़्यादा ख़तरा दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा पर उत्पन्न हुआ। दुष्यंत चौधरी ख़ुद को चौधरी देवीलाल के असली वारिस बताते हुए किसान नेता के तौर पर हरियाणा में आगे बढ़ने लगे थे लेकिन अब किसान आंदोलन में जजपा का मौन धारण करना कहीं ना कहीं किसानों में ग़ुस्से का कारण बन गया है।
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उधर पंजाब से आए किसानों पर सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले और ठंडे पानी की बौछार की गई जिसको देखकर हरियाणा का किसान वर्ग ख़ासकर ग्रामीण इलाक़ों में खट्टर सरकार को लेकर नाराज़गी देखने को मिल रही है। हरियाणा के किसान संगठनों ने सरकार को धमकी दी है कि अगर कानून को वापस नहीं लिया गया तो किसी भी नेता को गांव में घुसने नहीं दिया जाएगा।
जींद ज़िला में जजपा का गठन हुआ था, वहां की खापों ने एक मीटिंग करके जजपा विधायकों से मिलकर बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का प्रेशर बनाने की बात कही है। खाप की मीटिंग में फ़सल और नस्ल बचाने की मुहीम में पंजाब के किसानों का साथ देने की अपील के साथ बीजेपी को सबक़ सीखने की बात पर भी फ़ैसला हुआ।
दरअसल, हरियाणा में 2019 में विधानसभा चुनाव में वोटरों ने किसी भी दल को बहुमत नहीं दिया। बीजेपी बहुमत से कुछ सीटें पीछे रह गई थी। तब दुष्यंत के नेतृत्व वाली जेजेपी ने बीजेपी को समर्थन दिया था और राज्य में खट्टर सरकार की वापसी हुई थी।
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फिलहाल 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में सत्ताधारी बीजेपी 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी है। कांग्रेस के पास 31 सीटें हैं। वहीं जेजेपी 10 सीटों पर विजयी रही थी। इसके अलावा हरियाणा लोकहित पार्टी 1, आईएनएलडी 1 और 7 सीटें अन्य के खाते में गई थीं।
नतीजों के बाद कांग्रेस ने भी जेजेपी और अन्य का साथ लेकर गठबंधन की सरकार बनाने का प्रयास किया था। लेकिन दुष्यंत ने बीजेपी को सपॉर्ट कर खट्टर की सरकार बनवा दी। अब बदली परिस्थितियों में कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा फिर से सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है।
अब जेजेपी के बीजेपी से समर्थन वापस लेने की स्थिति में बीजेपी के पास 40 विधायक ही रहेंगे। सत्ता के लिए जरूरी 45 की संख्या पूरी करने के लिए बीजेपी अन्य निर्दलीय विधायकों में संभावना तलाश सकती है। वहीं कांग्रेस भी जेजेपी को अपने खेमे में मिलाकर अन्य विधायकों के साथ पिछले साल के अधूरे प्रयास को पूरा करने के लिए दांवपेच का इस्तेमाल करेगी।