राजीव ओझा
उत्तर प्रदेश में एनआरसी की तर्ज़ पर व्यवस्था लागू करने की बात से ही माहौल में गर्मी आ गई है। एनआरसी आखिर है क्या? क्या इसका अल्पसंख्यक या धर्म विशेष से कोई नाता है? बिलकुल नहीं। इसके उलट यह देश के नागरिकों को अधिकार और सम्मान दिलाने की कवायद है। फिर क्यों कुछ लोगों को इसमें राजनीति की बू आती है। हाँ, तुष्टिकरण और वर्ग विशेष की राजनीति करने वालों को इससे ऐतराज हो सकता है।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्ट्रेशन यानी एनआरसी से पूरे देश में समान नागरिकता क़ानून स्थापित करने में मदद मिलेगी। गृहमंत्री अमित शाह 1 अक्टूबर को कोलकाता में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) और नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पर एक सेमिनार में स्पष्ट किया कि हिन्दू , सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों देश छोड़ने को बिलकुल नहीं कहा जायेगा। अफवाहों पर ध्यान न दें। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्ट्रेशन से नागरिकता (संशोधन) विधेयक पास करने में मदद मिलेगी और वो देश के सम्मानित नागरिक बनेंगे। संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार नागरिक संशोाधन बिल पास कराना चाहती है।
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यूपी में क्यों जरूरी है एनआरसी
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। यूपी में एक बड़े अभियान की शुरुआत हो रही है। अभियान महत्वपूर्ण होने के साथ ही संवेदनशील भी है। यूपी में भी एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्ट्रेशन) लागू होगा और इस पर काम शुरू हो गया है। यूपी में बड़ी संख्या में नाम बदल कर बांगलादेशी रह रहे हैं। बीच बीच में इनमें से कुछ पकड़े भी जाते रहे हैं। इनमें से कुछ के तार आतंकियों से भी जुड़े हैं। इन्हें कुछ स्थानीय लोगों का संरक्षण प्राप्त है क्योंकि वो इनके लिए बड़े काम के हैं। इनके पालकों के लिए देश की सुरक्षा से बढ़ कर सस्ता लेबर और मुनाफा है। इनमें बहुतों के पास अधार कार्ड और बैंकों में खाता भी है। निचले स्टार के कुछ भ्रष्टाचारी इनकी मदद करते हैं। एनआरसी के तहत दोनों तरह के लोगों की पहचान कर कार्रवाई होगी। यूपी में इसी लिए एनआरसी की जरूरत है।
भ्रष्टाचार बड़ी समस्या
उत्तर प्रदेश एटीएस ने पिछले दिनों देवबंद व कई जगहों से अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया था। इनमें से कुछ के तार बांग्लादेश के आतंकी संगठन से भी जुड़े थे। इसी वर्ष मथुरा और देवबंद में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया गया था। ऐसा नहीं है कि देवबंद में यह पहली बार हुआ है, इस तरह अवैध बांग्लादेशी शहर में पहले भी कई बार गिरफ्तार हो चुके हैं।
एक जानकारी के अनुसार सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही कई लाख बांग्लादेशियों के अपनी पहचान बदलकर रहने की सूचना है। इनमें सिर्फ लखनऊ में ही करीब 90 हजार बांग्लादेशियों के अवैध रूप से रहने की सूचना है। दोनों के पास से अवैध रूप से जुटाए पासपोर्ट, आधार कार्ड और एक मोबाइल हैंडसेट भी मिला था। उन्होंने 300 रुपए में आधार कार्ड 2000 रुपए में बैंक में खाता खुलवाया और पासपोर्ट हासिल कर भारत में अवैध रूप से बसने के फिराक में थे। इसी लिए एनआरसी की राह में एक बड़ी समस्या भ्रष्टाचार भी है।
योगी सरकार बांग्लादेशियों के फर्जी दस्तावेज बनाने में मदद करने वाले लोगों को पहचान करने में जुटी है। खासकर बिचौलियों और विभागीय कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी हैं।
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ममता बनर्जी क्यों कर रही हैं विरोध?
आपको याद होगा कि एनआरसी को लेकर असम में बड़ा विवाद हुआ था। विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया था। असम देश का अकेला राज्य है, जहां सिटीजन रजिस्टर लागू है। राज्य में पहली बार नेशनल सिटीजन रजिस्टर साल 1951 में बना था। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी लिस्ट पर काम 2015 से शुरू हुआ। पता नहीं क्यों बंगाल में ममता बनर्जी भी एनआरसी को लेकर विरोध कर रहीं हैं? उनको भी एनआरसी में राजनीति नजर आ रही है। अगर इसे वोटबैंक की राजनीति मान भी लिया जाये तो यह उन पर लागू होता है।
मदद करने वाले भी नहीं बचेंगे
यूपी में डीजीपी मुख्यालय अभी एनआरसी का ड्राफ्ट जारी करने में जुट गया है। सूत्रों के मुताबिक एनआरसी के लिए जो मसौदा तैयार किया गया है उसमें सभी जिलों झोपड़ पट्टी और नई बस्तियों की पहचान की जाएगी जहां बांग्लादेशी व अन्य विदेशी नागरिक अवैध रूप से शरण लेते हैं। जांच में बांग्लादेशियों को फर्जी अभिलेख मुहैया कराने वाले भी नपेंगे। आंतरिक सुरक्षा को प्रभावी बनाने के लिए इस अभियान को त्यौहारों से पहले शुरू करने की जरूरत बताई गई है। मसौदे में यह भी कहा गया है कि इस सूची में कई ऐसे व्यक्ति भी हो सकते हैं जो किसी जिले के फरार अपराधी हों। उनकी पहचान त्रिनेत्र ऐप से कराई जाएगी। प्रदेश में यह अभियान कितना सफल होता है यह तो समय बताएगा। लेकिन इतना तय है की अगर पारदर्शी तरीके से इनआरसी लागू किया गया तो प्रदेश को बड़ी राहत मिलेगी और काफी हद तक आतंकवाद से निपटने में भी मदद मिलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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