जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले दिनों कर्नाटक में हिजाब पर खूब विवाद हुआ था। कई राज्यों में इसको लेकर प्रदर्शन हुआ था। मामला अदालत तक पहुंच गया।
अब कश्मीर में बुधवार को उस समय विवाद खड़ा हो गया जब बारामूला के एक विद्यालय ने सर्कुलर जारी कर अपने स्टाफ से स्कूल के समय में हिजाब पहनने से परहेज करने के लिए कहा।
डागर परिवार स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा यह सर्कुलर 25 अप्रैल को जारी किया गया था। यह स्कूल सेना की मदद से एक एनजीओ द्वारा संचालित किया जाता है। यह विशेष रूप से विकलांग बच्चों के लिए है।
बुधवार को राजनीतिक दलों ने इस सर्कुलर को लेकर जमकर हंगामा किया। वहीं इस पर स्कूल ने कहा कि सर्कुलर को बदल दिया गया है।
स्कूल ने कहा, स्टाफ के सदस्यों को सिर्फ क्लास के दौरान नकाब (चेहरे को ढंकने) से परहेज करने के लिए कहा जाएगा।
वहीं प्रिंसिपल के साइन से जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है, ” डागर परिवार स्कूल भावनात्मक और नैतिक रूप से सीखने और बढऩे का स्थान है। स्कूल के कर्मचारियों के रूप में मुख्य उद्देश्य प्रत्येक शिक्षार्थी के पूर्ण संभव विकास प्रदान करना है।”
नोटिफिकेशन में आगे कहा गया है- इसके लिए स्टूडेंट्स का भरोसा जीतना आवश्यक है ताकि वे खुद को खुद को सुरक्षित और खुश महसूस कर सकें। स्टाफ को निर्देश दिया जाता है कि वे स्कूल में हिजाब से बचें ताकि छात्र सहज महसूस कर सकें और शिक्षकों और कर्मचारियों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हो सकें।
स्कूल के इस आदेश ने पूरे राज्य में आक्रोश पैदा कर दिया और लोगों ने कहा कि यह हिजाब पर कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेशों की तर्ज पर था।
महबूबा मुफ्ती भी भड़की
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी इस सर्कुलर पर विरोध जताया है। बुधवार को एक ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, ” मैं हिजाब पर फरमान जारी करने वाले इस सर्कुलर की निंदा करती हूं। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का शासन हो सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से किसी अन्य प्रदेश की तरह नहीं है जहां वे अल्पसंख्यकों के घरों को बुलडोज करते हैं और उन्हें अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनने की स्वतंत्रता नहीं देते हैं। हमारी लड़कियां चुनने का अधिकार नहीं छोड़ेगी।”
उमर अब्दुल्ला ने भी किया विरोध
इस सर्कुलर का पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी विरोध किया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, यह केंद्र शासित प्रदेश में नफरत बोने की कोशिश है।
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उन्होंने कहा, ” अगर स्टूडेंट्स की शिक्षा हिजाब से प्रभावित हो रही थी तो कर्नाटक से पहले यहां ऐसा आदेश क्यों नहीं जारी किया गया? उन्होंने कर्नाटक के बाद ऐसा क्यों किया? इससे राजनीति के लिए माहौल बनाया जा रहा है।”
वहीं स्कूल के एक प्रतिनिधि ने कहा, ”हमने सर्कुलर को संशोधित किया है और इसे केवल कक्षा में नकाब (फेस कवरिंग) के लिए प्रतिबंधित किया है न कि हिजाब के लिए।”
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उन्होंने यह भी कहा, “यह उन बच्चों के लिए किया गया जो युवा हैं और विशेष रूप से सक्षम हैं। जो शिक्षक के साथ ठीक से ध्यान केंद्रित करने और बातचीत करने में सक्षम हैं। हम यहां कर्नाटक नहीं बना रहे हैं।”
सेना का भी मिला साथ
इस मामले में आर्मी पीआरओ कर्नल इमरोन मुसावी ने कहा कि यह सर्कुलर उन टीचर के लिए था जो नकाब (चेहरे को ढंकना) पहने हुए थे, जहां स्टूडेंट्स अपने शिक्षकों के होंठों की हरकत नहीं देख पा रहे थे।
उन्होंने कहा, ” ये बच्चे दिव्यांग हैं और यही कारण है कि शिक्षकों का होंठ हिलते हुए देखना उनके लिए महत्वपूर्ण है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। सेना यहां इतने सारे स्कूल चलाती है और कहीं भी ऐसा कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया है।”