न्यूज डेस्क
असम सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी अपडेट कर रही है। अपने कामकाज की वजह से यह काफी दिनों से चर्चा में है।
आए दिन किसी न किसी महत्वपूर्ण हस्ती के परिजनों की शिकायत आ रही है कि उन्हें एनआरसी से बाहर कर दिया गया हैं, जबकि उनके परिजन देश की जानी-मानी शख्सियत रहें हैं। इस बार भी ऐसा ही मामला सामने आया है।
इस बार साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता दुर्गा खाटीवाड़ा और असम आंदोलन की पहली महिला शहीद बजयंती देवी के परिवार के सदस्यों को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के पूर्ण मसौदे से बाहर रखा गया है।
गारेखाओं के एक संगठन ने यह जानकारी देते कहा कि इन लोगों के अलावा स्वतंत्रता सेनानी छबीलाल उपाध्याय की प्रपौत्री मंजू देवी को एनआरसी की ताजा प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
इन लोगों के परिजनों को एनआरसी से बाहर रखे जाने की वजह से लोग अदालत जाने के लिए सोच रहे हैं।
समुदाय का है अपमान
भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय सचिव नंदा किराती देवान ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि तीनों मामले गोरखाओं से जुड़े हुए हैं और एनआरसी प्रक्रिया से उन्हें बाहर रखकर समुदाय का अपमान किया गया है और अगर इस मामले का समाधान नहीं किया गया तो इसे अदालत में ले जाया जाएगा।
देवान ने कहा, ‘स्वतंत्रता सेनानियों और असम आंदोलन के शहीदों के परिजनों को एनआरसी से बाहर रखकर उनका अपमान किया गया है। यह न केवल गोरखाओं का अपमान है बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों का भी अपमान है।’
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें वापस भेजने को लेकर 1979 से छह वर्षों तक असम आंदोलन चलाया था। इसी कारण 15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में असम समझौता हुआ था।
उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता और असम नेपाली साहित्य सभा की अध्यक्ष दुर्गा खाटीवाड़ा का नाम एनआरसी अधिकारियों द्वारा 26 जून को जारी निष्कासन सूची में शामिल है।
गौरतलब है कि असम में अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए 1951 से पहली बार इस सूची को अपडेट किया जा रहा है। असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट की जा रही है और अंतिम सूची 31 जुलाई को जारी होगी।
अतिरिक्त निष्कासन सूची में वे लोग शामिल हैं, जो घोषित विदेशी (डीएफ) अथवा संदिग्ध मतदाता (डीवी) अथवा जिनके मामले विदेशी अधिकरण में लंबित पाये गये हैं(पीएफटी)। इन्हें इस आधार पर अयोग्य ठहराया गया है।
असम के विदेशी न्यायाधिकरणों को और अधिक पारदर्शिता की जरूरत
मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने भी संदिग्ध विदेशी लोगों के भविष्य को निर्धारित करने के दौरान असम में विदेशी न्यायाधिकरणों के कामकाज में अधिक पारदर्शिता लाने की रविवार को मांग की।
उन्होंने कहा ‘हम अभी असम के कुछ जिलों की यात्रा कर रहे हैं और इस दौरान बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आए जिनमें लोगों के पास जरूरी दस्तावेज होने के बाद भी उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि मोरीगांव, नगांव और चिरांग जिलों में अनेक लोग ऐसे हैं जिनके पास जरूरी दस्तावेज थे, फिर भी न्यायाधिकरण ने उन्हें विदेशी घोषित कर दिया।
सीतलवाड़ ने कहा कि एनआरसी सेवा केंद्र और विदेशी न्यायाधिकरण लक्ष्य पूरा करने की जल्दबाजी में हैं तथा इसके परिणामस्वरूप गरीब लोग खामियों का शिकार बन गए हैं। लोगों को राष्ट्रीय नागरिक पंजी में अपना नाम शामिल कराने में मदद करने के लिए सेवा केंद्र बनाए गए हैं।