दीपक जोशी
लखनऊ: 160 साल पुराने अंग्रेजों का बनाया हुआ कानून अब बदल जाएगा. देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों के बनाए हुए कानूनों के अनुसार कार्य करती रही है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब पुराने तीन कानून बदल जाएंगे और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव होगा.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को विवादास्पद राजद्रोह कानून को निरस्त करने सहित “औपनिवेशिक युग” के आपराधिक कानूनों में बदलाव के लिए तीन विधेयक लोकसभा में पेश किए. भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले ये तीन विधेयक क्रमशः भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक हैं.
इन कानूनों में होगा बदलाव
IPC: भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 जगह लेगी. ये नया बिल आईपीसी के 22 प्रावधानों को निरस्त करेगा. साथ ही नए बिल में आईपीसी के 175 मौजूदा प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है. नए विधेयक में नौ नई धाराएं भी जोड़ी गई हैं भारतीय न्याय संहिता, 2023 में कुल 356 धाराएं हैं.
CRPC: आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023′ लेगी. इसके जरिए सीआरपीसी के नौ प्रावधानों को निरस्त किया जाएगा. इसके अलावा विधेयक में सीआरपीसी के 107 प्रावधानों में बदलाव और नौ नए प्रावधान पेशशक की गई है. विधेयक में कुल 533 धाराएं हैं.
Indian Evidence Act: इसकी जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 लेगा. नया विधेयक में साक्ष्य अधिनियम के पांच मौजूदा प्रावधानों को निरस्त किया जाएगा. बिल में 23 प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है और एक नया प्रावधान पेश किया गया है. इसमें कुल 170 धाराएं हैं.
गृह मंत्री शाह ने क्या कहा
बता दें गृह मंत्री शाह ने शुक्रवार को लोकसभा में ये बिल पेश करते हुए कहा कि मैं आज जो तीन विधेयक पेश कर रहा हूं उनमें आपराधिक न्याय प्रणाली का सिद्धांत कानून भी शामिल है. उन्होंने कहा कि इसमें एक है भारतीय दंड संहिता जो 1860 में बनी थी. दूसरी है आपराधिक प्रक्रिया संहिता जो 1898 में बनी थी और तीसरी है भारतीय साक्ष्य अधिनियम है जो 1872 में बनी थी. उन्होंने कहा कि अब राजद्रोह कानून पूरी तरह से निरस्त कर दिया जाएगा. गृह मंत्री शाह ने कहा कि 1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार कार्य करती रही. तीन कानूनों को बदल दिया जाएगा और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में एक बड़ा बदलाव आएगा.
क्या-क्या बदलाव होंगे?
भारतीय न्याय संहिता बिल, 2023′ को पेश करने की वजह क़ानून व्यवस्था को मज़बूत बनाना और कानूनी प्रक्रिया का सरलीकरण बताया गया है.
इंडियन एविडेंस एक्ट को हटाकर ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ लाने वाले बिल में लिखा है कि मौजूदा क़ानून पिछले कुछ दशकों में देश में हुई टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तरक्की से मेल नहीं खाता इसलिए इसे बदलने की ज़रूरत है.
सीआरपीसी को हटाकर ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ नामक विधेयक संसद में पेश हुआ है. इसका उद्देश्य न्याय प्रक्रिया में देरी को रोकना बताया गया है.कहा गया है कि नये कानून में केस के निपटारे की टाइमलाइन होगी और इसमें फ़ॉरेंसिक साइंस के इस्तेमाल का भी प्रावधान होगा.
इन तीनों विधेयकों में मौजूदा तीनों क़ानून में कई परिवर्तन करने के प्रावधान हैं. इसके तहत राजद्रोह को अब अपराध नहीं माना जाएगा.मई, 2022 में राजद्रोह के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. तब अदालत ने कहा था कि सरकारों को इस क़ानून के तहत कोई कठोर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.
हालांकि नए क़ानून के सेक्शन 150 के तहत एक नया अपराध जोड़ा गया है. इसके तहत भारत से अलग होने, पृथकावादी भावना रखने या भारत की एकता एवं संप्रभुता को ख़तरा पहुंचाने को अपराध बताया गया है. इसके लिए उम्र कैद या सात वर्ष की सज़ा के प्रावधान का प्रस्ताव है.
मौजूदा राजद्रोह क़ानून में उम्र कैद या तीन साल की सज़ा का प्रावधान है.कई अपराधों को जेंडर-न्यूट्रल बना दिया गया है. साथ ही कुछ नए अपराध भी जोड़े गए हैं. इसमें सिंडिकेट क्राइम भी शामिल किया गया है.
इसके अलावा बम बनाने को भी अपराध बनाया गया है. हत्या की परिभाणा में पांच या उससे अधिक लोगों द्वारा जाति या धर्म के आधार पर मॉब लिंचिग को शामिल किया गया है.
इसके अलावा पहली बार कम्यूनिटी सर्विस को बतौर सज़ा के शामिल किया जा रहा है. अमित शाह ने कहा कि अब भी कम्यूनिटी सर्विस की सज़ा दी जाती है लेकिन इसका क़ानून में प्रावधान नहीं है. नए क़ानून में इसका प्रावधान होगा.कई अपराधों की सज़ा में भी बढ़ोतरी की गई है.
गैंग रेप के मामले में फ़िलहाल कम से कम दस वर्ष की सज़ा का प्रावधान है. अब इसे बढ़ाकर बीस वर्ष किया जा रहा है. साक्ष्य क़ानून में अब इलेक्ट्रॉनिक इंफ़ोर्मेशन को शामिल किया गया है. साथ ही गवाह, पीड़ित और आरोपी अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके सभी अदालत में पेश हो सकेंगे.
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अमित शाह ने कहा कि परिवर्तनों के साथ चार्जशीट दाख़िल करने से लेकर ज़िरह तक ऑनलाइन ही मुमकिन होगी. नए विधेयक में फ़ॉरेंसिक के इस्तेमाल और मुकदमे की सुनवाई की टाइमलाइन भी तय कर दी गई है. मिसाल के तौर पर सेशन कोर्ट में किसी केस में ज़िरह पूरी होने के बाद, तीस दिन के भीतर जजमेंट देना होगा. इस डेडलाइन को 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है. फ़िलहाल इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है. इसके अलावा अब अदालतों को 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने होंगे. नए बिल में सर्च के दौरान वीडियोग्राफ़ी का भी प्रावधान है.
क्या होगा असर
एक बार अंतिम प्रारूप सामने आए तभी पता चलेगा कि इन परिवर्तनों का मौजूद मुकदमों पर क्या असर पड़ेगा.संविधान के अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी व्यक्ति को केवल उस चीज़ के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जो घटना के समय अपराध थी. इसलिए जो भी बदलेगा वो भविष्य में होने वाले अपराधों के लिए ही बदलेगा.कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी लाने के संबंध में, अमित शाह ने कहा कि उनका लक्ष्य अधिकांश मुकदमों को तीन साल के भीतर खत्म करने का है. ताकि बैकलॉग कम हो सके.