मल्लिका दूबे
गोरखपुर। साल भर पहले लोकसभा के उपचुनाव में यूपी के सीएम सिटी में ऐतिहासिक परिवर्तन का कारक बना मांझी अब खुद मंझधार में फंस गया है। मांझी यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुलता वाला निषाद वोट बैंक। अपनी बिरादरी के कद्दावर नेताओं की दिन ब दिन बदलती चुनावी चाल में जो मांझी कल तक चुनावी नैया का सफल पतवार नजर आ रहा था, अब अलग-अलग नेताओं की नाव पर बिखरा सा नजर आ रहा है।
निषादों पर सबकी टकटकी
गोरखपुर लोकसभा के उप चुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में निषाद पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद की जीत से पूर्वी उत्तर प्रदेश की सियासत में निषादों पर सबकी टकटकी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में निषाद बिरादरी के लोग बहुतायत में हैं।
गोरक्षपीठ की आस्था के बूते लगातार पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को भी 1999 में पहली बार नाक तक टक्कर इसी बिरादरी के नेता जमुना निषाद ने दी थी। योगी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर पहली बार जीत भी इसी बिरादरी को मिली।
उपचुनाव में एकमंच पर थे प्रमुख निषाद नेता
गोरखपुर लोकसभा के उप चुनाव में प्रमुख निषाद नेता एक मंच पर थे। निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद के पुत्र प्रवीण को सपा ने प्रत्याशी ही बनाया था तो उनके मंच पर पूर्व मंत्री जमुना निषाद के बेटे अमरेंद्र निषाद और पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद भी निषाद एकता का दम भरते थे।
एकजुटता की तस्वीर में अब कई टुकड़े
उप चुनाव में जीत की इबारत इस बिरादरी की एकजुटता की देन थी। पर, अब एकजुटता की तस्वीर में कई टुकड़े हो गये हैं। निषाद बिरादरी के नेताओं में अपनी बैठ बनाए रखने की छटपटाहट से मांझी के मंझधार में फंसने की नौबत आन पड़ी है। इसका असर उप चुनाव जीतने वाली सपा के मंसूबों पर पड़ रहा है।
निषादों के नाम पर बनी निषाद पार्टी के ही लाइमलाइट में रहने से सबसे पहले अमरेंद्र निषाद और राजमति निषाद ने सपा छोड़ बीजेपी का साथ कर लिया। अमरेंद्र निषादों के बड़े नेता रहे पूर्व मंत्री जमुना निषाद के पुत्र हैं जबकि जमुना की पत्नी राजमति पिपराइच से दो बार विधायक रह चुकी हैं। दोनों जमुना की बनाई जमीन पर अपने समाज में अच्छी पकड़ रखते हैं। अपने पाले में कर बीजेपी ने कुछ हद तक निषाद बिरादरी के वोटों में बिखराव किया।
निषाद को ही टिकट दे सपा ने सिखाया निषाद पार्टी को सबक
सप्ताहभर में निषाद पार्टी के स्टैंड में आये परिवर्तन से भी निषादों की एकजुटता पर असर आया है। पिछले मंगलवार सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ साझा पत्रकार वार्ता कर सपा- बसपा गठबंधन के सहयोगी बने निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने शुक्रवार को नयी चुनावी चाल चल दी।
मनमाफिक सीटों को लेकर सपा से नाराजगी जताते हुए संजय फिलहाल बीजेपी से गलबहियां करते दिख रहे हैं। निषाद पार्टी को बीजेपी गोरखपुर की सीट देगी या नहीं यह तो तय नहीं हो सका है लेकिन निषादों के दम पर खम ठोंकने वाले संजय निषाद को सबक देते हुए सपा ने फौरन निषादों के एक अन्य प्रमुख नेता रामभुआल निषाद को गोरखपुर का टिकट थमा दिया है।
बिखराव का कई सीटों पर होगा असर
अब अगर निषाद पार्टी या बीजेपी से यहां कोई अन्य निषाद प्रत्याशी आता है तो बिरादरी के मतों में बिखराव होना तय है। इस बिखराव का असर सिर्फ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र ही अन्य कई सीटों पर पड़ेगा। एक बार बिरादरी के मतों में बिखराव हुआ तो 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इसका प्रभाव पड़ेगा।