कृष्णमोहन झा
मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने का जो ऐतिहासिक फैसला किया है ,वह एक ऐसा साहसिक फैसला भी है, जिसकी अपेक्षा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही की जा सकती थी।
मोदी सरकार के इस फैसले का जम्मू कश्मीर के क्षेत्रीय दलों नेशनल कांफ्रेंस और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को तो विरोध करना ही था, परंतु कांग्रेस ने सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले का विरोध करने का जो आत्मघाती कदम उठाया है ,वह समझ से परे है। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि जम्मू कश्मीर की विशिष्ट संस्कृति के कारण उसे इस अनुच्छेद के द्वारा जो अलग पहचान मिली थी ,उस पहचान को छीनकर सरकार ने उसके साथ विश्वासघात किया है, परंतु गुलाम नबी आजाद को इस सवाल का भी जवाब देना चाहिए कि क्या पूर्वांचल के राज्य ,दक्षिण के राज्यों ,पश्चिम बंगाल ,पंजाब आदि राज्यों की विशिष्ट संस्कृति है और क्या यह राज्य भारत संघ का हिस्सा बनकर अपनी उस विशिष्ट संस्कृति की रक्षा करने में असफल रहे हैं।
मोदी सरकार ने अगर जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया है तो इस फैसले के पीछे यह भावना कतई नहीं है कि जम्मू कश्मीर के संस्कृतिक गौरव को नुकसान पहुंचाया जाए। दरअसल मोदी सरकार इस फैसले के माध्यम से जम्मू कश्मीर को न केवल आतंकवाद की दशकों पुरानी समस्या से मुक्ति दिलाना चाहती है, बल्कि जम्मू कश्मीर में विकास के नए युग का आरंभ भी करना चाहती है।
पीडीपी की सुप्रीमो महबूबा मुफ़्ती को तो भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठा कर ऐसा स्वर्णिम अवसर उपलब्ध कराया था, जिसका सदुपयोग करके अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत कर सकती थी ,परंतु उनका तो एजेंडा ही अलग था। वह अलगाववादियों एवं पाकिस्तान से बातचीत करने के लिए दबाव बनाने में जुटी रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी की धमाकेदार शुरुआत करके यह संदेश दे दिया है कि अपनी दूसरी पारी में देश हित में ऐसे साहसिक फैसले लेने में आगे भी संकोच नहीं करेंगे।
कांग्रेस भले ही यहां आरोप लगाए कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला वोट की खातिर किया है, परंतु सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी खुद भी सरकार के इस फैसले का विरोध केवल अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही नहीं कर रही है। कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की असली चिंता तो यही है कि जम्मू एंड कश्मीर का पुनर्गठन होने के बाद वहा भारतीय जनता पार्टी के जनाधार का विस्तार हो जाएगा और वह सत्ता में भी आ जाएगी।
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का जो फैसला किया है, वह बहुउद्देशीय है। अनुच्छेद 370 हटाने से राज्य के युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी ,पर्यटन उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा। बड़ी औद्योगिक कंपनिया जम्मू कश्मीर में अपनी इकाइयां स्थापित करने में दिलचस्पी दिखाएगी ,वही कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का रास्ता निकलेगा। इससे अलगाववाद और आतंकवाद पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
लोकसभा में जब जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर बहस हो रही थी, तब इस बिल का विरोध करने के लिए लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी कुछ इस अंदाज में कह गए कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी असहज हो गई। अधीर रंजन तो यह तक कह गए कि संयुक्त राष्ट्र जब जम्मू कश्मीर मामले की मॉनिटरिंग कर रहा है तो मोदी सरकार ने यह फैसला कैसे ले लिया। रंजन कि इस घोर आपत्तिजनक टिप्पणी पर संसद में जो हंगामा हुआ, वह तो स्वाभाविक ही था ,परंतु अधीर रंजन चौधरी की इस टिप्पणी ने सदन के अंदर समूची कांग्रेस पार्टी को ही स्तब्ध कर दिया।
अधीर रंजन चौधरी की इस आपत्तिजनक टिप्पणी ने तो समूची कांग्रेस पार्टी को ही कटघरे में खड़े करने का मनचाहा अवसर मोदी सरकार को उपलब्ध करा दिया। कांग्रेस ने इस फैसले का विरोध करने का जो आत्मघाती निर्णय किया है, उसकी उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
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इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी सरकार ने जो अभूतपूर्व साहसिक कदम उठाया है उसके रास्ते में कई कठिन चुनौतियां भी आएगी ,परंतु मोदी उन प्रधानमंत्रियों में से नहीं है, जिन्हें गठबंधन धर्म निभाने की मजबूरी साहसिक फैसले लेने से रोक सके।
अब कश्मीर में नए युग की शुरुआत की शुभ घड़ी आ चुकी है। अब देश के सारे राज्यों को सरकार ने एक ही श्रेणी में ला दिया है। जम्मू कश्मीर को देश के अन्य राज्यों की श्रेणी में ला दिया गया है। यहां देश के अन्य राज्यों के समान विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्षों का ही होगा। जम्मू कश्मीर और लद्दाख दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश होंगे।
लद्दाख और जम्मू कश्मीर दोनों के ही केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से अब दोनों प्रदेशों का समान विकास होगा। अब तक मुख्यमंत्रियों ने लद्दाख के साथ जो भेदभाव किया है ,वह भी उनके पतन का एक कारण बना है। फारुक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को अब इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए कि वे अब जम्मू कश्मीर के ही नहीं बल्कि भारत के आम नागरिक है और देश का संविधान उन पर भी लागू होगा।
जम्मू कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्री जितनी जल्दी इस सच्चाई को समझेंगे उतनी ही जल्दी सारा देश भी उन्हें अपनाने के लिए तैयार होगा। गृह मंत्री अमित शाह ने जब संसद में यह आश्वासन दे ही दिया है कि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला अंतिम नहीं है। अमित शाह ने कहा कि सरकार भविष्य में जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए हमेशा तैयार है, लेकिन इसके लिए जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदलने की जरूरत है।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)
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