न्यूज डेस्क
बीमाधारकों के लिए खुशखबरी है। अब तक कई गंभीर बीमारियों और जोखिम भरी गतिविधियों को पॉलिसी में न शामिल करने वाली बीमा कपंनियां अब इसे हेल्थ कवर से बाहर नहीं कर पाएंगी। इस फैसले से लाखों बीमाधारकों को फायदा होगा।
सोमवार को बीमा नियामक ने कहा कि उम्र संबंधी समस्या जैसा कैटरैक्ट सर्जरी, नी-कैप रिप्लेसमेंट, अल्जाइमर और पार्किंसन्स भी अब कवर होगा, जबकि फैक्ट्री कर्मचारी, खतरनाक रसायन के साथ काम करने वाले लोग, जिनके स्वास्थ्य पर इसका दीर्घ अवधि में बुरा असर होता है, उनके सांस और त्वचा संबंधी इलाज से इनकार नहीं किया जा सकेगा।
दरअसल बीमा नियामक इंश्योरंस एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDA) ने बीमारियों को दायरे से बाहर करने का मानकीकरण कर दिया है। अगर बीमा कंपनी एचआईवी या एड्स, एपिलेप्सी, किडनी की गंभीर बीमारी को कवर नहीं करना चाहती है तो इसके लिए खास शब्द इस्तेमाल होंगे और एक खास वेटिंग पीरियड (30 दिन से एक साल) होगा, फिर कवर शुरू होगा।
इरडा ने कहा, ‘अगर एक व्यक्ति को एक कंपनी से दूसरे में ट्रांसफर किया जाता है और अगर उसने वेटिंग पीरियड की जरूरतों का एक हिस्सा पूरा कर लिया है तो नई कंपनी उस पर सिर्फ अनएक्सफायर्ड वेटिंग पीरियड लागू कर सकती है।’
बजाज आलियांज जनरल इश्योरंस के चीफ (रिटेल अंडरराइटिंग) गुरदीप सिंह बत्रा ने इस संबंध में कहा, ‘जैसे-जैसे मेडिकल ट्रीटमेंट का विकास हो रहा है और नए मेथड सामने आ रहे हैं, बीमा कंपनियां उन बीमारियों को भी कवर कर पाएंगी।’
लेकिन टीपीए और ब्रोकर्स आगाह करते हुए कहते हैं कि भले ही यह कदम बीमाधारकों के हित में हैं, लेकिन यह देखना होगा कि यह प्रीमियम को कितना प्रभावित करता है।
बोक्रर्स का कहना है कि यह लाखों लोगों के लिए अच्छी खबर है, जिन्हें अब तक कवर नहीं मिल पाता था। हालांकि, इसमें सतर्क रहने की भी जरूरत है क्योंकि इसमें प्रीमियम में काफी वृद्धि हो सकती है।
मालूम हो कि वर्किंग कमिटी ने नवंबर 2018 में इरडा को रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि बीमा कंपनियां अल्जाइमर, पार्किंसन्स, एचआईवी या एड्स जैसी बीमारी को कवर से बाहर नहीं कर सकतीं। इरडा का फैसला कमिटी के इन्हीं सुझावों पर आधारित है।