जुबिली न्यूज डेस्क
अब 18 साल ‘लक्ष्मण रेखा’ माना जाएगा। नाबालिग पत्नी से सहमति बिना सेक्स को अपराध माना जाएगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में रेप से संबंधित कानूनों का जिक्र है। हालांकि इसमें एक अपवाद भी शामिल है जिसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है और पति अपनी पत्नी से संबंध बनाता है तो वह रेप नहीं कहा जाएगा। अब इसमें बदलाव किया जा रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को लोकसभा में जो बिल रखे हैं उसमें ऊपर वाले नियम में बदलाव किया गया है, ‘पत्नी की उम्र अब 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए।
बता दे कि पति अगर अपनी पत्नी से संबंध बनाता है तो उसकी उम्र कम से कम 18 साल अवश्य होनी चाहिए। इस तरह से देखिए तो नए प्रावधान को पॉक्सो एक्ट के बराबरी में लाया गया है।
अब 18 साल से पहले सेक्स नहीं
यह भी समझना जरूरी है कि बाल विवाह पर रोक संबधी कानून, 2006 के तहत शादी की न्यूनतम आयु 18 साल निर्धारित की गई है जबकि क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट 2013 में सहमति से सेक्सुअल संबंध बनाने की उम्र बढ़ाकर 18 साल कर दी गई है।
इस प्रस्तावित बदलाव से सरकार 2017 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को कानूनी जामा पहनाने जा रही है, जिसमें कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 का जिक्र करते हुए नाबालिग पत्नी की सहमति के बगैर सेक्स को रेप करार दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि पत्नी पुलिस से शिकायत कर सकती है। हालांकि तब यह तर्क रखा गया था कि आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में अब भी बाल विवाह के मामले सामने आते रहते हैं।
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नए बिल क्या होगा बदलाव
हालांकि नए बिल में बालिग पत्नी के साथ बिना सहमति सेक्स को अपराध नहीं कहा गया है। भारतीय न्याय संहिता के मुताबिक, ‘जो कोई भी किसी बच्चे को खरीदता, हायर करता है या किसी भी तरह से बच्चे को वेश्यावृत्ति या अवैध रूप से संबंध बनाने के लिए हासिल करता है, उसे कम से कम सात साल की सजा होगी जो 14 साल तक बढ़ाई जा सकती है और उसे जुर्माना भी देना होगा।’
इसमें यह भी कहा गया है कि अगर कोई मां-बाप या केयरटेकर 12 साल से कम उम्र के बच्चे को जानबूझकर छोड़ते हैं तो सात साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है।
नाबालिग से रेप केस में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने, पदोन्नति और रोजगार के झूठे वादे की आड़ में यौन संबंध बनाने पर 10 साल तक की कैद हो सकती है।
गृह मंत्री अमित शाह ने 1860 की भारतीय दंड संहिता को बदलने के लिए लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता विधेयक पेश किया। इसमें महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधानों पर विशेष ध्यान दिया गया है।