महेंद्र प्रताप सिंह
उरई. यूपी के प्राइमरी स्कूल में बच्चों को खाने बना कर खिलाने वाले रसाईये खुद भूखे रहने पर मजबूर हैं। इन रसाईयों के बैंक खाते तो खुलवाए गए, लेकिन कई खातों में अभी तक मानदेय की राशि नहीं पहुंची है।
यूपी के स्कूलों में करीब 3,97,829 रसोइये काम कर रहे हैं। ये रसोईये मिड डे मील योजना के तहत सरकारी स्कूलों में खाना बनाते हैं। इन रसोइर्दयों को 1000 रुपये महीना मानदेय दिया जाता है। इन रसोइयों से 11 माह काम लिया जाता है और 10 माह का मानदेय दिया जाता है। इन्हें न कोई ग्लव्स,न एप्रिन अभी तक उपलब्ध कराए गए है।
इस मंहगाई के दौर में 1000 रूपए में जीवनयापन कर पाना बहुत मुश्किल काम है, जिसके लिए रसोईये पिछले 10 साल से मानदेय बढ़ाने की मांग रहे हैं। इस अबधि मे रसोइयों द्वारा सैकड़ो बार मानदेय बृद्धि के लिए धरना प्रदर्शन किए गए। लेकिन हर इन्हें आश्वासन ही मिला।
ऐसी परिस्थितियों में इन्हें और इनके आश्रितों को दो जून की रोटी भी नसीब नही हो पाती है। ये रसोइया गैस पर काम करती है कोई भी दुर्घटना हो सकती है इन्हें किसी प्रकार का कोई दुर्घटना बीमा भी नही दिया जाता है।
ज्यादातर रसोइया उम्रदराज होने के कारण अभी हाल मे लागू की गई प्रधान मंत्री श्रम योगी मानधन योजना के लाभ से भी बंचित रहेंगी। मुख्यमंत्री योगी आदिज्यनाथ द्वारा इनके मानदेय में 500 रुपये बृद्धि का एलान किया गया है जो नाकाफी है काम से कम इन्हें न्यूनतम मजदूरी तो मिलनी ही चाहिए।
क्या है योजना
सरकारी स्कूलों में नामांकन वृद्धि, नियमित उपस्थिति, पौष्टिक भोजन और भाई चारे की भावना विकसित करने के लिए भारत सरकार ने 15 अगस्त 1995 को मध्यान्ह भोजन योजना की शुरुआत की। 2008-09 से इस योजना को देश के सभी सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में लागू कर दिया गया।
25 की छात्र संख्या पर 1 रसोईया को नियुक्त किया गया। 26 से 100 बच्चों पर 2 रसोइया और आगे प्रत्येक 100 पर 1 अतिरिक्त रसोइया की नियुक्ति का प्रावधान किया गया। रसोइया मानदेय में केंद्र और राज्य का अंश क्रमशः 75:25 का है। भोजन के अलावा विद्यालय की साफ सफाई का जिम्मा भी यही उठाती है।
उत्तर प्रदेश में इन रसोइयों का मानदेय 1000 रुपये मासिक है, जबकि तमिलनाडु में न्यूनतम मजदूरी के तहत 5000 रुपये से ज्यादा एवं हरियाणा में 3500 और भी कई प्रदेशों में 3000 रुपये तक है।