न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश में चूहों को पकडऩे के लिए सरकार ने एक मुहिम की शुरुआत की है। सरकार ने कृषि विभाग को खेतों और लोगों की सुरक्षा के लिए वायर मेष जाल खरीदने और चूहों और छछूंदर पकड़ने के लिए कहा है।
फसल व अनाज को नुकसान पहुंचाने वालों में से चूहे भी एक होते हैं। एक चूहा एक दिन में 10-60 ग्राम तक अनाज खा सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चूहे कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जहां कई प्रजातियों के जीव घट रहे हैं, वहीं चूहे लगातार बढ़ रहे हैं, खासतौर पर शहरों में। चूहे दुनिया की सबसे आक्रामक प्रजातियों में से एक हैं। वे देसी वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाते हैं, संपत्ति नष्ट करते हैं, खाने-पीने की चीजों को दूषित करते हैं और बीमारियां फैलाते हैं।
मुंबई में गाड़ियों में लगने वाली आग का मुख्य कारण चूहे हैं। चूहों से सबसे ज्यादा किसी को नुकसान होता है तो वह है रेल विभाग।
एक रिपोर्ट के मुताबिक चूहे सालाना 19 अरब डॉलर का नुकसान करते हैं। यह सभी आक्रामक जीवों की वजह से होने वाले नुकसान (120 अरब डॉलर) का छठा हिस्सा है।
भारत में सरकार चूहों से निपटने के लिए बहुत जागरूक नहीं है लेकिन दुनिया के बाकी देशों में तो इसके लिए बकायदा बजट बनाया जाता है। 2017 में न्यूयॉर्क के मेयर ने चूहों से निपटने के लिए 3.2 करोड़ डॉलर का बजट बनाया था।
न्यूजीलैंड ने तो वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 2050 तक देश को सभी प्रकार के चूहों से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। सरकार की कोशिश है कि न्यूजीलैंड का हर कोना 2050 तक चूहों से मुक्त हो जाए। एक यूनिवर्सिटी का अध्ययन बताता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने में नौ अरब न्यूजीलैंड डॉलर्स का खर्च आएगा।
ऑस्ट्रेलिया के लॉर्ड होवे आइलैंड में 20 साल की बहस के बाद पिछले वर्ष चूहा उन्मूलन शुरू हुआ।
चूहे इंसानों के लिए कितने खतरनाक है उसको 1994 में गुजरात के सूरत में प्लेग की वजह से हुई महामारी से समझा जा सकता है। 1994 के प्लेग ने सूरत और गुजरात ही नहीं, बल्कि देश और दुनिया तक को हिलाकर रख दिया था।
जैसे ही लोगों को इस महामारी के फैलने की खबर हुई, वे भागने लगे। कुछ ही दिनों में सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ कर चली गई। जानकारों के अनुसार आजादी के बाद लोगों का यह दूसरा बड़ा पलायन था। पहले शहर के रईस लोग अपनी-अपनी गाडिय़ों में निकल भागे, फिर निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर और यहां तक कि केमिस्ट भी। कई सरकारी अधिकारियों ने भी किसी न किसी बहाने छुट्टी लेकर शहर छोड़ दिया। ट्रेन, बस जैसे भी संभव था, लोग शहर से निकल गए।
सूरत हीरे और कपड़ा फैक्ट्रियों के लिए जाता है। यहां दूसरे राज्यों महाराष्ट्र , राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों के भारी संख्या में मजदूर काम करते थे। ये लोग भी तनख्वाह मिलते ही पलायन कर गए। उनके जरिए इस महामारी के अन्य राज्यों में भी फैलने की आशंका हो गई। कुल मिलाकर, पूरे देश में प्लेग के 6334 संभावित मामले दर्ज हुए। इनमें 55 लोगों की मौत हुई और विभिन्न जांच केंद्रों में 288 लोगों में इसकी पुष्टि का दावा किया गया।
यह भी पढ़ें : कोरोना वायरस इलाज के लिए पॉलिसी लाए बीमा कंपनी: IRDA
चूहों की वजह से सहमा था पाकिस्तान
मई 2016 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत की राजधानी पेशावर में लोग चूहों के आतंक से सहम गए थे। यहां चूहों ने इंसानों पर हमला शुरु कर दिया था। चूहों के काटने की वजह से प्रतिदिन लोग अस्पताल पहुंच रहे थे। इस महीने में 374 लोग चूहों के काटने से जख्मी हो गए थे।
पेशावर में चूहों के काटने की वजह से डर का माहौल था। उस समय पेशावर जिला प्रशासन ने चूहा मारने के लिए जनता के सहयोग से एक अभियान भी चलाया था और लोगों को प्रत्येक चूहा मारने के बदले तीस रुपए भी दिए जा रहे थे, लेकिन बाद में ये चूहा मार अभियान बंद कर दिया गया था।
यह भी पढ़ें : एमपी में ऑपरेशन कमल के षड्यंत्र की कथा
आदमी के साथ चूहे कब से रहने लगे
अगर जीवाश्म को सबूत मानें तो चूहे और आदमी का साथ तकरीबन 15,000 साल पुराना है। ये समय पहले लगाए जा रहे अनुमानों से कहीं ज़्यादा है।
वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि जंगली चूहे खाने की तलाश में मानव बस्तियों में घुसे होंगे और उन्होंने उस अनाज और बीजों को अपना निशाना बनाया जिन्हें आदमियों ने इक_ा किया था। यही चूहे आज मानव बस्तियों में घरों के आसपास मंडराते हुए देखे जा सकते हैं।
चूहों से कैसे मुक्त हुए ये शहर
अल्बर्टा दुनिया का एक मात्र ऐसा हिस्सा है, जहां शहरी और देहाती आबादी भी है लेकिन यहां चूहों की समस्या नहीं है। अल्बर्टा तेल, राष्ट्रीय उद्यानों और आइस हॉकी के लिए प्रसिद्ध है।
इस प्रांत में कैल्गरी और एडमॉन्टन जैसे शहर हैं जहां चूहे नहीं है। यहां की आबादी करीब 43 लाख है। अल्बर्टा का क्षेत्रफल अमरीका के टेक्सस के बराबर है। उसने यह उपलब्धि कैसे हासिल की, जिसकी दुनिया में दूसरी कोई मिसाल नहीं है। दूसरे देशों को इससे सबक लेनी चाहिए।
यह भी पढ़ें : इजरायल के पीएम ने क्यों दी भारतीय तरीका अपनाने की सलाह
इंसानों की संख्या से 6 गुना अधिक है चूहों की संख्या
चूहों की संख्या मनुष्य की संख्या से 6 गुना अधिक है। कुल उत्पादित खाद्यान्न का लगभग 8 से 10 प्रतिशत चूहे ही बरबाद कर देते हैं। खाने के साथ-साथ अपने मल मूत्र से अनाज को भी दूषित करते हैं और बीमारियां भी फैलाते हैं।
एक साल में एक जोड़ी चूहा 8 से 10 बार बच्चे देते हैं और एक बार में ये 6 से 12 बच्चे दे सकती हैं। एक जोड़ी चूहे एक वर्ष में 1000 से 1200 तक की संख्या तक बढ़ा सकते हैं। चूहों की संख्या जून माह में कम होती है और यही समय चूहा नियंत्रण अभियान के लिए सही है।