जुबिली न्यूज डेस्क
भारत के किसान तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए दो माह से आंदोलन कर रहे हैं। आज इसी कड़ी में किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकाल कर अपना विरोध दर्ज कराने की कोशिश की है।
आज पूरी दुनिया की निगाहे भारत के किसानों के टैक्ट्रर परेड पर लगी हुई है। यह पहला मौका नहीं है। भारत ही नही बल्कि दुनिया के कई मुल्कों में कृषि संबंधी मुद्दों पर विरोध दर्ज कराने के लिए किसानों ने ट्रैक्टरो का सहारा लिया है।
आज गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में जो तस्वीर दिख रही है वैसी तस्वीरें हाल के कुछ सालों में दुनिया के कई मुल्कों से गाहे-बगाहे नजर आती रही है।
बीते पांच सालों के दौरान लग्जमबर्ग से लेकर लंदन और बर्लिन से लेकर डबलिन तक यूरोप के कई शहरों और जगहों पर ट्रैक्टरों के सिटी मार्च की तस्वीरें आती रही हैं।
इन सभी स्थानों पर किसानों और कृषि संबंधी मुद्दों पर शिकायतें दर्ज कराने के लिए ऐसे ट्रैक्टर मार्च का इस्तेमाल किया गया। फ्रांस में 2015 के सितम्बर के दौरान खाद्यान के गिरते दामों और सस्ते आयात के खिलाफ विरोध जताने के लिए ‘1000 ट्रैक्टर सेट मोई’ प्रदर्शन का आयोजन किया गया था जिसमें बड़ी संख्या में किसान अपने ट्रैक्टरों के साथ पेरिस के भीतर दाखिल हुए थे।
पेरिस ऐसा अकेला शहर नहीं था जिसने ट्रैक्टर पर सवार किसानों का विरोध प्रदर्शन देखा हो, बल्कि लगभग इसी दौरान लग्जमबर्ग में भी दूध और कृषि उत्पादों के दामों में कमी और सरकार से मदद की मांग को लेकर किसानों ने ट्रैक्टरों से मुख्य मार्गों की नाकेबंदी की थी।
वहीं ब्रसल्स में भी योरोपीय संघ मुख्यालय के बाहर ट्रैक्टर पर सवार होकर आए किसानों और पुलिस के बीच झड़पें हुई थी।
अक्टूबर 2019 में नीदरलैंड्स में ट्रैक्टर मार्च का मंजर देखा जब बड़ी संख्या में किसानों ने सरकार की नीतियों का विरोध जताने के लिए ट्रैक्टरों का सहारा लिया था।
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नाइट्रोजन उत्सर्जन कम करने के लिए मुर्गियों और सुअरों की संख्या कम करने सम्बन्धी नियमों का विरोध कर रहे किसान बड़ी ी संख्या में नीदरलैंड्स की राजधानी हेग शहर इन पहुँच गए थे.।
ट्रैक्टरों से की गई थी डबलिन शहर की घेराबंदी
आयरलैंड में ट्रैक्टर प्रदर्शन का नजारा नवम्बर 2019 से जनवरी 2020 के बीच देखा गया। नवम्बर 2019 में डबलिन शहर की घेराबंदी ट्रैक्टरों से की गई थी। वहीं नवम्बर 2019 में जर्मनी के बर्लिन शहर में भी हजारों की संख्या में ट्रैक्टर सवार किसान पहुंचे थे।
ब्रिटिश कृषि कानूनों पर चिंता जताते हुए ब्रिटेन के सैकड़ों किसान ट्रैक्टरों को लेकर अक्टूबर 2020 में लंदन पहुंचे थे। किसानों की मांग BREXIT के बाद ब्रिटेन के भावी वाणिज्य समझौतों में किसानों के हितों के संरक्षण की मांग की कर रहे थे।
विरोध की यह स्क्रिप्ट यूरोपीय मुल्कों में ही दिखाई दिया हो ऐसा नहीं है। बल्कि जापान से लेकर न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका समेत कई मुल्कों में ट्रैक्टर मार्च होते रहे हैं।
भारत में भी किसान आंदोलनों के दौरान शक्ति प्रदर्शन के प्रयोग होते रहे हैं। अस्सी के दशक में राजीव गांधी सरकार के समय राजधानी दिल्ली में राजपथ के करीब सैकड़ों किसानों ने अपनी बैलगाडिय़ों के साथ बोट क्लब इलाके में कई दिनों तक धरना दिया था।
विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने भी विश्व व्यापार संगठन के पूर्ववर्ती गेट प्रस्तावों पर भारत के शामिल होने का विरोध करते हुए किसानों के आंदोलनों की अगुवाई की थी।
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