जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ शहर के निजी पैथोलॉजी संचालक कोरोना की जांच में मनमानी कर रहे हैं। सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए आरटीपीसीआर जांच का शुल्क घटाया तो कुछ पैथोलॉजी संचालकों ने यह जांच ही बंद कर ट्रूनेट जांच शुरू कर दी। इसके लिए भी वे तय दर से ज्यादा ले रहे हैं।
वहीं जहां आरटीपीसीआर जांच हो भी रही है वहां तय अधिकतम शुल्क से ज्यादा वसूला जा रहा है। लैब के कर्मचारी ट्रूनेट जांच को आरटीपीसीआर से बेहतर भी बता रहे हैं। शहर की विभिन्न पैथोलॉजी में पड़ताल की तो कई चौकाने वाली हकीकत सामने आई।
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आपको बता दें कि आरटीपीसीआर जांच के लिए शासन ने सबसे पहले 2500 रुपये शुल्क तय किया था। 10 सितंबर को इसे 1600 रुपये किया गया। एक दिसंबर को फिर से शासन ने आरटीपीसीआर जांच की दरें घटाईं। इस बार लैब में जाकर सैंपल देने पर 700 रुपये तो घर से नमूना लिए जाने पर 900 रुपये तय किया गया। यही दर लागू है।
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वहीं ट्रूनेट की जांच 10 सितंबर को 1600 रुपये तय की गई। 1 दिसंबर को आरटीपीसीआर जांच की दरें तो घटाई गईं लेकिन ट्रूनेट जांच की दर यथावत रही।
आरटीपीसीआर जांच सस्ती होने के बाद अधिकांश निजी लैब संचालकों ने आरटीपीसीआर जांच बंद कर ट्रूनेट जांच शुरू कर दी। वजह- साफ है इसमें उन्हें ज्यादा फायदा मिल रहा है। जो ऐसा नहीं कर सके उन्होंने आरटीपीसीआर की अपने हिसाब से दर तय कर ली।
वर्तमान समय में निजी लैब संचालक मनमर्जी दाम वसूल करके जांच करवाने वालो को जबरन परेशान किया जा रहा है। हाल तो इतना खराब है कि जांच के बगैर निजी अस्पताल मरीजों इलाज नहीं कर रहे है, इसका पूरा फायदा निजी लैब संचालक उठा रहे है।
इस मामले पर स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी का कहना है कि निजी लैब मनमानी कर रही हैं तो यह जिम्मेदारी संबंधित जिले के सीएमओ की है कि वह सभी लैब पर जांच कराकर सरकार के आदेश का सख्ती से पालन कराएं। सीएमओ को इसको लेकर अवगत कराया जाएगा।
पैथोलॉजी में हो रही मनमानी पर सीएमओ डॉ. संजय भटनागर का कहना है कि सभी निजी लैब को पत्र भेजकर तय दर पर जांच करने के निर्देश दिए गए हैं। यदि कोई लैब अधिक शुल्क ले रही है तो लोग मुकदमा दर्ज कराएं। मामले की शिकायत मिलने पर जांच करवाई जाएगी।
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