प्रीति सिंह
देश की राजधानी दिल्ली की एक खासियत यह है कि यहां की हर खबर राष्ट्रीय बन जाती है और देश के दूसरे जगहों की बड़ी से बड़ी खबर राज्य तक ही सीमित रह जाती है। शायद इसीलिए अपनी बात दुनिया को बताने के लिए लोग दिल्ली में जाकर अपनी समस्या को रखते हैं। दो दिन पहले जब दिल्ली के आसमान पर डेढ़ माह से देश के राज्यों में उत्पाद मचाने वाले टिड्डी दल छा गए तो किसानों को उम्मीद जगी कि अब यह समस्या राष्ट्रीय एजेंडे में आ जायेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
दरअसल कोरोना महामारी के सामने बाकी समस्याएं गौड़ हो गई है। पता होने के बावजूद कि ये समस्याएं आगे चलकर भारी नुकसान का वायस बनेंगी, इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। देश के आठ-दस बड़े राज्यों में टिड्डी दलों का उत्पात जारी है। इससे किसान चिंतित हैं, संयुक्त राष्ट्र चिंतित है, लेकिन सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है।
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सरकार भले ही इस समस्या पर ध्यान नहीं दे रही है लेकिन यह बहुत बड़ी समस्या है। यह राष्ट्रीय समस्या है। यह समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा दुनिया के कई देशों में मची तबाही देखकर लगाया जा सकता है। कोरोना के चलते दुनिया खाद्य वस्तुओं की कमी और सप्लाई चेन टूटने के कारण पहले से ही खाद्य संकट के मुहाने पर खड़ी है, तब टिड्डियों की समस्या के विकराल रूप धरने की गुंजाइश भला कैसे छोड़ी जा सकती है।
यूएन फूड ऐंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनाइजेशन भी इस समस्या से आगाह कर चुका है कि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो टिड्डी दलों की यह समस्या कई साल तक दुनिया का पीछा करती रह सकती है। उस स्थिति में सबसे अच्छी सूरत में भी 30 से 40 फीसदी खाद्यान्न का नुकसान अवश्यंभावी है। सूरत उतनी अच्छी नहीं रही तो यह 50 से 70 फीसदी तक भी जा सकता है।
पिछले डेढ़ महीने से पाकिस्तान की ओर से राजस्थान के रास्ते टिड्डी दल देश में घुसते चले आ रहे हैं। दिल्ली से पहले इन्होंने राजस्थान, गुजरात और पंजाब के किसानों को संकट में डाला था, लेकिन इस बार के धावे में इन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ही नहीं, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे दूर के राज्यों में भी किसानों का जीना हराम कर रखा है। किसानों की इस समस्या की ओर सरकार ध्यान नहीं दे रही है।
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कोरोना, तालाबंदी और सीमा पर तनाव जैसी चौतरफा चुनौतियों से जूझ रही केंद्र सरकार की नजर इस तरफ नहीं जा रही है, जबकि यह समस्या बहुत बड़ी है। ऐसे समय में जब इससे मिलती-जुलती समस्याएं अभी दुनिया के कई और देशों के सामने भी हैं, जिससे टिड्डी दलों का खतरा बहुत बड़ा हो गया है।
सबसे बुरी स्थिति पूर्वी अफ्रीका के देशों में है, जहां पिछले 70 सालों के सबसे भीषण टिड्डी हमलों ने केन्या, युगांडा, सूडान, साउथ सूडान, इथियोपिया, सोमालिया, इरीट्रिया और जिबूती जैसे देशों में अकाल की नौबत ला दी है। भारत में भी 50 लाख से ज्यादा लोगों के सामनेे भुखमरी का खतरा पैदा हो गया है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में इसको पिछले 25 वर्षों का सबसे घातक हमला बताया जा रहा है। हालांकि किसी को इसकी गंभीरता का अंदाजा नहीं है कि अगर जल्द ही इनका सफाया नहीं किया गया तो इनसे होने वाला नुकसान कहां जाकर थमेगा। ध्यान रहे कि जुलाई-अगस्त के महीने ही भारत में टिड्डियों के हमले के लिए जाने जाते रहे हैं। ऐसे में आशंका यह है कि आने वाले दिनों में टिड्डी दल अफ्रीका से निकलकर भारत का रुख करेंगे।
इसके अलावा गैर रेगिस्तानी इलाकों में यही समय टिड्डियों के अंडे देने का समय भी है। बारिश से गीली और ढीली हुई मिट्टी इन्हें अंडे देने का सुनहरा मौका मुहैया कराती है, लेकिन टिड्डियों की चुनौती सिर्फ भारत के लिए नहीं है। इस समस्या को संयुक्त राष्ट्र को भी अपनी प्राथमिकता में शामिल करना होगा। संयुक्त राष्टï्र को समय-समय पर इससे प्रभावित देशों को इसकी गंभीरता से आगाह करने की जरूरत है।
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