न्यूज डेस्क
यदि आप नॉनवेज खाने के शौकीन हैं तो सावधान हो जाइये। आप के खाने के रूटीन में मांस-मछली शामिल है तो इससे दूरी बनाए। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं। दरअसल जानवरों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ रहा है और इसका सेवन करने वालों पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हो रहा।
अभी तक भारत में इंसान एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने के लिए जाने जाते थे और अब जानवर भी इसी श्रेणी में आ गए है। इंसान अपने फायदे के लिए जानवरों को एंटीबायोटिक दे रहा है। अब जानवरों में भी एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बनता जा रहा है।
भारत के अलावा पाकिस्तान, चीन, वियतनाम, तुर्की, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी जानवरों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के हॉटस्पॉट हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और दिल्ली बेस्ड सेंटर फॉर डिजीज डायनैमिक्स, इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी ने साथ मिलकर एक रिव्यू स्टडी की है जिसे साइंस नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
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इस रिपोर्ट मेें बताया गया है कि निम्र और मध्यम इनकम वाले देशों में ऐनिमल प्रोटीन की बढ़ती मांग को देखते हुए उत्पादन बढ़ाने के मकसद से जानवरों को एंटीबायोटिक दिया जाता है ताकि वे ज्यादा स्वस्थ बन सकें।
प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक निम्र और मध्यम इनकम वाले देशों में मीट की मांग तेजी से बढ़ रही है। जितनी तेजी से मांग बढ़ी है उसी तेजी से जानवरों से बनने वाले भोजन में एंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या भी।
हालांकि इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दिनों इंसानों की तुलना में जानवर 3 गुना ज्यादा एंटीबायोटिक का सेवन कर रहे हैं। स्टडी के मेन ऑथर रमनन लक्ष्मीनारायण ने कहा, स्टडी में पाया गया कि साल 2000 से 2018 के बीच फूड ऐनिमल्स में पाए जाने वाले ऐंटीमाइक्रोबियल कंपाउड में ऐंटीबायॉटिक प्रतिरोध की मात्रा 50 प्रतिशत से अधिक थी।
यह इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि जानवरों में बढ़ रहा एंटीबायोटिक प्रतिरोध इंफेक्शन आखिरकार इंसानों को ही नुकसान पहुंचाएगा।
मई 2019 में मुंबई में हुई एक लोकल स्टडी में भी यह बात सामने आयी थी कि चिकन के लिवर वाले मीट और मुंबई के 12 अलग-अलग पोल्ट्री शॉप से इकट्ठा किए गए अंडों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध पाया गया।
इस शोध में बैक्टीरिया सैल्मोनेला के सैंपल्स को टेस्ट किया गया जो दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाले ज्यादातर ऐंटीबायॉटिक के प्रति रेजिस्टेंट हो गया है। इसमें शामिल कॉमन एंटीबायोटिक amoxicillin, azithromycin, ciprofloxacin, ceftriaxone, chloramphenicol, erythromycin, gentamicin, levofloxacin, nitrofurantoin और tetracycline शामिल है।
भारतीय एंटीवायोटिक दवाओं का सेवन करने में सावधानी नहीं बरतते। ऐसा कई रिपोर्ट्स में खुलासा हो चुका है। ऐंटीबायोटिक दवाएं हमारे शरीर को बैक्टीरिया के हमलों से बचाता है, लेकिन इसके अपने कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं।
अगर हम जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं तो आने वाले समय में हमें इसके नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाए तो शरीर इसकी तरफ प्रतिरोध यानी रेजिस्टेंस विकसित कर लेता है। यानी फिर किसी भी तरह की बीमारी में कोई भी दवा शरीर पर असर नहीं करती।
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भारतीयों द्वारा एंटीबायोटिक के ज्यादा प्रयोग को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चिंता जता चुका है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा भारतीय दवाओं के नकारात्मक असर की चिंता नहीं करते और डॉक्टर से पूछे बिना एंटीबायोटिक दवाएं इस्तेमाल करते हैं।
एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की वजह से टीबी की बीमारी के मामले भयावह रूप से भारत में बढ़े हैं। साल 2010 में भारत में टीबी के 4 लाख 40 हजार नये मामले देखने में आये थे। लोगों में एंटीबायोटिक का कोई असर नहीं हो रहा था और इसी वजह से देश में 1.5 लाख लोगों की मौत भी हो गयी थी।
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