Saturday - 2 November 2024 - 12:57 PM

अर्थव्यवस्था सुधारने का नोबेल ज्ञान

सुरेन्द्र दुबे 

हम सबको मालूम है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था इस समय पटरी से उतर सी गई है। उसी को कुछ अर्थशास्त्री आर्थिक मंदी कह रहे हैं तो कुछ अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवन देेने का ज्ञान दे रहे हैं। हमारे जैसे सामान्य लोग जिसे आम आदमी कहते हैं को ये समझ नहीं आ रहा है कि वर्तमान आर्थिक स्थिति में हम अपने परिवार का पेट भरने के लिए कैसे हाथ-पाव चलाएं। आर्थिक मंदी के कारण रोजगार लगातार घटते जा रहे हैं और वो इस कदर घट गए हैं कि हमारी परचेजिंग पावर लगातार घटती जा रही है। जिससे बाजार में खपत लगातार कम होती जा रही है। यानी की हमारी जेब में इतने पैसे नहीं हैं कि हम बाजार जाकर जरूरत की चीजें खरीद सकें। जब हम खरीदने की ही हालत में नहीं हैं तो कोई हमें बेचेगा कैसे? संकट दो तरफा है और गंभीर भी है।

देखना यह होगा कि क्या हमारे हुक्मरान भी इस भयावह स्थिति से वाकिफ हैं। अगर वाकिफ हैं तो क्या कर रहे हैं। कब तक हम अपने भाग्यविधाताओं की ओर आशा भरी नजरों से टकटकी लगाए देखते रहेंगे। कल मुझे एक चैनल पर डिवेट के दौरान ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ। वहां बहस नागरिकता संसोधन बिल को लेकर चल रही थी, जहां बैठे भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस देश में आए घुसपैठियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। जैसे ही इन घुसपैठियों को निकाल बाहर किया जायेगा अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी। एक हिंदू समर्थक गेस्ट स्पीकर ने तुरंत इसका समर्थन किया और बोले-पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैरहिंदू शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल दिया जायेगा तो अर्थव्यवस्था चुस्त-दुरूस्त हो जायेगी। कल पहली बार हमें यह नोबेल ज्ञान प्राप्त हुआ कि हमारे देश में आर्थिक मंदी शरणार्थियों की देन है। ये ज्ञान अगर छह साल पहले ही सरकार को प्राप्त हो गया होता तो आज हमारी जीडीपी चाढ़े चार प्रतिशत नहीं होती।

ज्ञान धीरे-धीरे ही प्राप्त होता है। इसलिए दो दिन पूर्व जो ज्ञान हमें एक चैनल पर डिबेट के दौरान प्राप्त हुआ उसकी भी चर्चा कर लेना लाजिमी है। दो दिन पूर्व जब न्यूज चैनल पर नागरिकता संसोधन बिल पर चर्चा चल रही थी तो पता नहीं कहां से प्याज महाराज टपक लिए। भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा कि जब डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो पर भी जनता प्याज खरीद रही है तो इसका सीधा-साधा मतलब है कि लोगों की परचेजिंग पावर बढ़ी है। अब अगर परचेजिंग पावर बढ़ी है तो जाहिर है लोग ज्यादा कमा रहे हैं और जब लोग ज्यादा कमा रहे हैं तो सरकारी एजेंसी एनएसएसओ का यह आंकड़ा तो झूठा ही है कि देश में चालीस साल की सर्वाधिक बेरोजगारी है। अब सरकारी एंजेसी ही झूठ बोल रही है तो हम क्या कर सकते हैं। लगता है सरकारी एजेंसिया खुद सरकार का बैंड बजाने में लगी हैं। वर्ना इस देश के लोगों को कैसे पता चल रहा है कि बेरोजगार हो रहे हैं। ऑटो सेक्टर में लगातार उत्पाद गिर रहा है और तो और एफएमसीजी यानी की नून-तेल-लकड़ी से संबंधित उद्योग धंधे भी माइनस प्रोडक्शन पर चल रहे हैं।

रिजर्व बैंक कह रहा है कि गिरती जीडीपी चिंता का कारण है। बैंक लगातार एनपीए बढऩे तथा कर्ज वसूली न होने के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। तमाम आंकड़े बताते हैं कि एनपीए बढ़ जाने की वजह से बैंकों ने कर्ज देना बंद कर दिया है। हमें बड़ा तरस आ रहा है कि जब सत्ता पक्ष के लोग प्याज की बढ़ती कीमतों में देश की फलती-फूलती आर्थिक सेहत का मंजर देख रहे हैं तो बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही है। प्याज की बात पर हमें देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बहुत याद आ रही है। उन्होंने बीतें दिनों संसद में कहा था कि उनके परिवार में लहसुन-प्याज कोई नहीं खाता, इसलिए उन्हें प्याज के रेट के बारे में नहीं मालूम है। अब हम सोच रहे हैं कि अगर देश में कभी ऐसा कोई वित्त मंत्री पदासीन हो गया जो पूर्णत: फलाहारी हुआ और दाल-आटा के दाम बढ़ गए तब तो वो जनाब कह देंगे कि उन्हें आटा-दाल का भाव मालूम ही नहीं है। और तब इस देश के लोगों को आटा-दाल का भाव सही मायने में पता चल जायेगा।

चलिए, जब विद्वान भाजपाइयों की बात कर रहे हैं तो केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की भी बात कर लेते हैं, जिन्होंने कहा था कि वह शाकाहारी हैं। इसलिए उन्हें प्याज का भाव क्या मालूम। लगता है कि अब देश में ऐसे ही लोगों को मंत्री बनाने की परंपरा शुरु करनी पड़ेगी जो शाकाहारी होने के साथ ही साथ मांसाहारी भी हो ताकि कम से कम उन्हें प्याज का भाव तो पता रहे। यानी हमारा पूरा एक पखवारा प्याज और नागरिकता संसोधन बिल के जरिए यह नोबेल ज्ञान प्राप्त करने में बीत गया कि इस देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था का असली कारण क्या है। यह बात अन्य कोई नहीं समझ पाया इसलिए हमें इस नोबेल ज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

ये भी पढे़: आखिर भगवान राम अपनी जमीन का मुकदमा जीत गए

ये भी पढ़े: रस्‍सी जल गई पर ऐठन नहीं गई

ये भी पढ़े: नेहरू के नाम पर कब तक कश्‍मीरियों को भरमाएंगे

ये भी पढ़े: ये तकिया बड़े काम की चीज है 

ये भी पढ़े: अब चीन की भी मध्यस्थ बनने के लिए लार टपकी

ये भी पढ़े: कर्नाटक में स्‍पीकर के मास्‍टर स्‍ट्रोक से भाजपा सकते में

ये भी पढ़े: बच्चे बुजुर्गों की लाठी कब बनेंगे!

ये भी पढ़े: ये तो सीधे-सीधे मोदी पर तंज है

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com