न्यूज़ डेस्क
योगी सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। वैभव कृष्णा प्रकरण में आरोपों के दायरे में आए सभी पांच आईपीएस अधिकारियों को एसआईटी जांच में भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गये हैं और किसी भी अधिकारी को अभी तक क्लीनचिट नहीं मिली हैं।
गौरतलब है कि योगी सरकार ने पांचों आईपीएस अफसरों को पद से हटाते हुए मामले की जांच तीन सदस्यीय एसआईटी कमिटी को सौंपी थी। एसआईटी प्रमुख की जिम्मेदारी वरिष्ठ आईपीएस अफसर और सूबे के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी को दी गई थी। इसके दो सदस्य आईजी एसटीएफ अमिताभ यश और एमडी जल निगम विकास गोठलवाल को बनाया गया था।
एसआईटी की जांच रिपोर्ट सुबूत और सिफारिश के साथ शासन को सौंप दी हैं। इसमें फंसे सभी अफसरो के खिलाफ की कार्रवाई की संस्तुति की गयी। एनसीआर के जिलों में तैनात दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। इसके अलावा दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ डिजिटल और मोबाइल डिटेल के पुख्ता सुबूत मिले।
यही नहीं तीन आईपीएस अफसरो के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश देने के साथ ही उनपर सिफारिशी बातचीत के भी सुबूत पाए गये हैं।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण के तीन कथित अश्लील वीडियो वायरल हुए। एसएसपी ने इन वीडियो को अपने खिलाफ साजिश बताते हुए गौतमबुद्ध नगर सेक्टर 20 थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इसकी जांच एसपी हापुड़ संजीव सुमन को सौंपी गई।
इसके बाद एसएसपी की ओर से शासन को लिखा गया एक पत्र भी वायरल हो गया जिसमें पांच आईपीएस अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठा गए थे।
सूत्रों की मानें तो साइबर इमर्जेंसी रिस्पांस टीम की रिपोर्ट को आधार बनाकर ये आरोप लगाए गए थे। एसएसपी ने पांच आईपीएस अफसरों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत तमाम संगीन आरोप लगाए थे जिससे यूपी की आईपीएस लॉबी में हड़कंप मचा दिया था।
जिन अधिकारियों पर आरोप लगे थे उनमें आईपीएस- अजयपाल शर्मा, पुलिस अधीक्षक रामपुर, आईपीएस-2 सुधीर सिंह (एसएसपी गाजियाबाद), आईपीएस-3 गणेश साहा (पुलिस अधीक्षक बांदा), आईपीएस-4 राजीव नारायण मिश्र (तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कुशीनगर), आईपीएस-5 हिमांशु (पुलिस अधीक्षक सुल्तानपुर) शामिल थे। हालांकि किसी भी अधिकारी ने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया था।