- लॉक डाउन में मिलने लगी अंग्रेजी-देसी, लग गई लम्बी लाइन
- खाने का रोना रोने वाले कुछ प्रवासी लग गए ठेके की लाइन में
- मॉडल शॉप खुलने से उत्साह, डिसटेंसिंग की ऐसी-तैसी
राजीव ओझा
रात भर सपने में यह गाना बजा…साकिया आज मुझे नीद नहीं आयेगी…सुना है तेरी महफ़िल में रतजगा है…। और भाईलोग सुबह चार बजे से ही लग गए लाइन में। हालांकि मॉडल शॉप दस बजे खुलीं। सोमवार 4 मई से लॉक डाउन 3.0 शुरू हो गया। लॉक डाउन में सबसे पहले “तबलीगी” व्याकुल थे। अब शांत हो चले हैं। स्पष्ट कर दूं कि यहाँ तबलीगी जमातियों के धर्म और आस्था से कोई चर्चा नहीं होने जा रही। लॉक डाउन में क्वारंटाइन किये “तबलीगियों यदाकदा तब हंगामा मचाया जब उनको खाने में बिरयानी और मटन नहीं मिली, लेकिन क्वारंटाइन सेंटर में अब उनको कोई दिक्कत नहीं। यहाँ तक कि ठीक होने के बाद ये मासूम छोटे पजामे वाले प्लाज्मा देने तक को तैयार हैं और कई तो दे भी चुके हैं।
असली ग़दर तो दूसरे तबके यानी “तलबियों” ने काट रखा था जब तक ठेके खोलने की घोषणा नहीं की गई। इनके लिए लॉक डाउन का एक-एक दिन मुश्किल से कट रहा था, जैसे वो घर में न हो कर काल कोठारी में थे। सब्जी और राशन की सप्लाई तो हो रही थी लेकिन “तलबियों” को खुद का “राशन” नहीं मिल रहा। न गुटखा मिल रहा था और न अंग्रेजी-देशी की खुराक।
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दरअसल मॉडल शॉप और ठेके अभी तक पूरी तरह बंद थे, ग्रीन जोन में भी। लेकिन जब से खबर आई है कि तीसरे फेज में ग्रीन-येलो-रेड जोन में “अंग्रेजी और देशी” के ठेके खुलेंगे। तब से इन “तलबियों” में जश्न का माहौल है।
हालाँकि देशी-विदेशी मिलेगी लेकिन ग्रामीण और शहर के एक क्षेत्र में सिर्फ एक-एक दूकान खोलने की अनुमति है। आसपास कोई दूसरी ठेके की दूकान नहीं खुलेंगी और वो भी दस से सात बजे तक। जैसी की उम्मीद थी “एक अनार सौ बीमार” को चरितार्थ करते हुए लम्बी लाइन लग गई। शुरू के करीब दो सौ मीटर तक तो लोग गोले में खड़े नजर आए। लेकिन उसके बाद सोशल डिसटेंसिंग की ऐसी की तैसी हो गई।
शॉप वालों का कहना था 40 दिन बाद दुकाने खुलीं है इस लिए भीड़ ज्यादा है। एक-दो दिन में भीड़ कम हो जाएगी। यह देखने वाली बात है कि लाइन में वो श्रमिक भी थे। जो भी हो “तलबियों” में उत्साह है। अब इन्हें न आर्थिक मंदी की चिंता है न वेतन कटौती की। इनको तो बस चाहिए मनपसंद ब्रांड।
तैयारी रात से ही शुरू हो गई थी। देशी और अंग्रेजी की दुकानों के सामने सोशल डिसटेंसिंग के लिए बड़े चाव से गोले बनाये गए जितने चाव से रंगोली बनीई जाती है। सोशल मीडिया पर तरह तरह के जोक और वीडियो शेयर किये जा रहे हैं।
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कोई हाथ में बोतल लिए विजयी भाव से केजरीवाल को तहेदिल से धन्य्यवाद दे रहा, कोई केंद्र सरकार को। इनमें से कुछ लाइन देखिये…
एक अपील :
‘जब कोई शराब लेने निकले तो उसका भी ताली बजाकर उत्साहवर्धन करें, क्योंकि वह भी कोरोना जैसी विकट बीमारी से देश की अर्थव्यवस्था में हुए नुकसान की पूर्ति करने के लिए योगदान देने जा रहा है।‘
एक आशंका:
ठेके खोलने से पहले सरकार की मार्मिक अपील-“कृपया पीने के बाद गाड़ी सीधे अपने घर ले जायें। कोई भी चीन से लड़ने नहीं जायेगा।” पूरा दिल्ली रेड ज़ोन है, लेकिन दिल्ली में ठेके से लौटने वालों पर नजर राखी जा रही कि कहीं वो चीन सीमा की ओर तो कूच नहीं कर गए। लोगों को उम्मीद है पीने के बाद भारत को मिलेंगे कोरोना की वैक्सीन बनाने वाले नए-नए साइंटिस्ट।
कोई कह रहा “आज की शाम यादगार होने वाली है। शाम ढलते ही कोरोना का भय खत्म।.सब लोग टेंशन फ्री रहिए। मैं तो कई दिनों से बोल रहा था कि सरकार कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेगी। “सब की बीवियों ने हालाँकि सारा नगद रात में ही चावल या आटा के कंटेनर में छुपा दिया था फिर भी लोगों के पास पैसा कहा से आया, यह सोच पत्नियां परेशान हैं। प्रभु ने चाहा तो आज शाम बहुत लोग अंग्रेजी में कोरोना और चीन को गरियाते मिलेंगे। जो भी हो हर तरफ उत्सव का माहौल है।”
चीन को गरियाते मिलेंगे। जो भी हो हर तरफ उत्सव का माहौल है।”
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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