उत्कर्ष सिन्हा
“अपने ही घर से बेघर कश्मीरी पंडितों की बदहाली की वजह है धारा 370 , इसके हटते ही घाटी में कश्मीरी पंडित फिर वापस लौटेंगे।“
बीते30 सालों में ये बात हम सबने इतनी बार सुनी कि हमे यकीन होने लगा था। अब तो अनुच्छेद 370 इतिहास हो चुका है लेकिन क्या कश्मीरी पंडितों के हालात वाकई बदले ?
कश्मीर में फिर हालात बिगड़ रहे हैं । तीन दिन पहले 40 साल के अजय पंडिता की आंतकवादियों ने अनंतनाग जिले में उनके गांव में हत्या कर दी गई । इस हत्या ने एक बार फिर कश्मीरी पंडितों की बदहाली का मामला सतह पर ला दिया है।
सेना एक के बाद एक दक्षिण कश्मीर में आतंकियों को ठिकाने लगा रही है, सरकार की नीति भी सख्ती से कुचलने की है, मगर हालात हैं कि सुधर नहीं रहे।
कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी फिलहाल सत्ता में होने वाली भाजपा के मुख्य चुनावी एजेंडे में रहा है, बीते साल संसद ने इसे खत्म भी कर दिया। इसका राजनीतिक लाभ भी भाजपा और नरेंद्र मोदी को खूब मिला , लेकिन कश्मीरी पंडितों के हालात नहीं बदले।
अजय पंडिता बेखौफ इंसान थे , उनकी जान को खतरा भी था , उन्होंने सरकार से सुरक्षा भी मांगी थी मगर वो नहीं मिली । अजय के पिता उनसे कहते थे वापस लौट आओ मगर अजय का कहना था कि वे अपने घर ही रहेंगे।
इस हत्या ने कश्मीरी पंडी सरपंचों को खौफ़जदा कर दिया है। उनका कहना है कि अगर सरकार ने उन्हें सुरक्षा नहीं दी तो वे अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। ऑल जम्मू एंड कश्मीर पंचायती कॉन्फ्रेस के अध्यक्ष अनिल शर्मा सरकार से सुरक्षा की अपील कर रहे हैं और सरपंच विजय रैना ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मदद मांगी है। रैना सरपंच होने के साथ ही भाजपा के प्रवक्ता भी हैं।
विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री और जगमोहन के राज्यपाल रहने के वक्त घाटी में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ। ये वक्त घाटी में विदेशी आतंकियों के वर्चस्व का रहा था। सदियों से कश्मीर घाटी में मुसलमान और पंडित साथ रहे मगर 1990 में पाकिस्तान समर्थित आतंक ने पंडितों का कत्लेआम किया और उन्हे घाटी छोड़ने का फरमान सुन दिया था।
राष्ट्रपति शासन वाले तत्कालीन प्रशासन ने भी पंडितों को रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि उन्हे घाटी से निकलने के लिए सुविधाएं मुहैया कराई गई और जम्मू और दिल्ली के श्रणार्थी कैंप में इन पंडितों की जिंदगी घुटने लगी।
जिन हिंदुओं नें 1990 में घर नहीं छोड़ने का फैसला किया था उन्हे 1997, 1998 और 2003 में फिर नरसंहार का सामना करना पड़ा।
बीते 30 सालों में पंडितों के नाम पर सियासत और पैकेज के खूब खेल चले। नरेंद्र मोदी के चुनावी अभियानों में ये बड़ा मुद्दा रहा तो आरएसएस ने भी उत्तर भारत में इसका खूब प्रचार किया।
मोदी सरकार बनने के बाद 2000 करोड़ के एक राहत पैकेज का ऐलान भी किया गया और कहा गया था कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए एक नई कालोनी बसाई जाएगी। केंद्र सरकार ने कहा कि वह 2 से 3 लाख परिवारों को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।
लेकिन कश्मीरी पंडितों के समूह केंद्र की इस पहल को नकार रहे हैं । वे एक अलग शहर नहीं बसाना चाहते, उनका कहना है कि हर वक्त सुरक्षा के साये में नहीं रहा जा सकता, उन्हे स्थानीय मुसलमानों से कोई दिक्कत पहले भी नहीं थी और अब भी नहीं है, लेकिन सरकार घाटी में शांति तो बहाल करे।
जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी कैंप अभी भी बदहाल है और अनुच्छेद 370 और 35-A को हटा देने के बाद राज्य के तीन टुकड़े भी हो चुके हैं। साथ ही नया डोमिसाईल एक्ट भी लागू किया जा चुका है जिसके विरोध में कश्मीरी पंडितों ने भी अपना एतराज जताया है।
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अजय पंडिता की शहादत ने एक बार फिर घाटी में पंडितों की वापसी का मुद्दा गरम कर दिया है । इस बार सरकार भाजपा की है जिसके एजेंडे में कश्मीर हमेशा रहा लेकिन बीते 6 सालों में केंद्र और राज्य की सत्ता में रही भाजपा अभी भी इस मुद्दे का हल नहीं खोज सकी है।