Monday - 28 October 2024 - 10:35 AM

70 साल के सबसे बुरे दौर में इकोनॉमी, नोटबंदी-GST से कैश संकट बढ़ा

न्‍यूज डेस्‍क

‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे से जनता का भरोसा जीतने के बाद दोबार सत्‍ता में आई बीजेपी सरकार आर्थिक मंदी के जिन्‍न से अपना पीछा नहीं छोड़ा पा रही है। जम्‍मू-कश्‍मीर से धारा 370 समाप्‍त करने के बाद भले ही मोदी सरकार ने जमकर वाहवाही लूटी हो, लेकिन ये बात भी उतनी सच है कि देश में मंदी का माहौल है।

ऑटो, इंफ्रास्ट्रक्चर, कताई जैसे सेक्‍टर में कंपनियां मंदी की मार झेल रही हैं और लगातार अपने कर्मचारियों की छटनी कर रही हैं। तो छोटे उद्योगपति अभी भी नोटबंदी के घाव को भर नहीं पाए हैं। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने सरकार से निजी कंपनियों को भरोसे में लेने की सलाह दी है।

राजीव कुमार ने कहा कि किसी ने भी पिछले 70 साल में ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जब पूरी वित्तीय प्रणाली जोखिम में है। राजीव कुमार के मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी के बाद कैश संकट बढ़ा है।

राजीव कुमार ने आगे कहा कि आज कोई किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है। प्राइवेट सेक्टर के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नगदी दबाकर बैठा है। इसके साथ ही राजीव कुमार ने सरकार को लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की सलाह दी।

राजीव कुमार के मुताबिक नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद हालात बदल गए हैं। पहले करीब 35 फीसदी कैश उपलब्ध होती थी, वो अब काफी कम हो गया है। इन सभी कारणों से स्थिति काफी जटिल हो गई है।

गौरतलब है कि राजीव कुमार ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम ने प्राइवेट सेक्‍टर की कंपनियों को माइंडसेट बदलने की नसीहत दी है। सुब्रमण्यम ने प्राइवेट कंपनियों को कहा कि एक बालिग व्यक्ति लगातार अपने पिता से मदद नहीं मांग सकता। आपको इस सोच को बदलना होगा। आप यह सोच नहीं रख सकते कि मुनाफा तो खुद लपक लूं और घाटा हो तो सब पर उसका बोझ डाल दूं।

अर्थव्यवस्था में सुस्‍ती को लेकर राजीव कुमार ने कहा कि यह 2009-14 के दौरान बिना सोचे-समझे दिये गये कर्ज का नतीजा है। इससे 2014 के बाद नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बढ़ी है। इस वजह से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है। इस कमी की भरपाई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की। इनके कर्ज में 25 फीसदी की वृद्धि हुई। हालांकि उन्‍होंने ये भी कहा कि वित्तीय क्षेत्र में दबाव से निपटने और आर्थिक वृद्धि को गति के लिए केंद्रीय बजट में कुछ कदमों की घोषणा की जा चुकी है।

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