डा. रवीन्द्र अरजरिया
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले देश के तेरह हजार करोड रुपये का घोटाला करने वाले नीरव मोदी की लंदन में मौजूदगी का प्रमाण मिलते ही आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है।
कांग्रेस ने भाजपा पर आरोपों की झडी लगाते हुए आरोपी के साथ सत्ताधारी पार्टी की मिली भगत की परिभाषा से परिभाषित किया तो वहीं भाजपा ने कांग्रेस के अतीत को कुरेद कर दागों का हिसाब मांगना शुरू कर दिया।
वर्तमान चुनावी मंथन से उपजे परिणामों से हटकर देखने पर नीरव मोदी से पहले विजय माल्या, दाउद जैसे अनेक आरोपियों का लंदन प्रेम ही सामने आया।
भारत के भगोडों की सुरक्षित शरणस्थली इंग्लैण्ड
भारत के भगोडों की सुरक्षित शरणस्थली के रूप में इंग्लैण्ड का नाम लम्बे समय से रेखांकित किया जाता रहा है। स्वाधीनता के लिए आंदोलन छेडने वाले सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल, मंगल पाण्डे जैसे इतिहास पुरुषों की नीतियों-रीतियों से भयभीत होकर ही इंग्लैण्ड ने अपने देश में पढने वाले जवाहर लाल नेहरू, भीमराव अम्बेडकर सहित अनेक लोगों को देश में सक्रिय करके आजाद हिन्द फौज के समानान्तर विकल्प पैदा कर दिया था और अंत में उन्हीं के हाथों में देश को सौंपकर लंदन में ही इस आजाद देश का संविधान तक तैयार करवाया।
भारत, हिन्दुस्तान और इण्डिया
भारत, हिन्दुस्तान और इण्डिया जैसे तीन-तीन नामों में विभक्त देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी होने के बाद भी संविधान को अंग्रेजी भाषा में लिखवाया गया ताकि आम आवाम को यह चालबाजियां समझ में न आ सकें। आज देश के सर्वोच्च न्यायालय में भी हिन्दी में लिखे प्रार्थना पत्र स्वीकार नहीं किये जाते हैं। कुल मिलाकर पर्दे के पीछे से इंग्लैण्ड की भारत विरोधी नीतियां राष्ट्रवादी विकास पर निरंतर कुठाराघात करती रहीं है जिनका क्रम आज भी जारी है।
विचार चल ही रहा था कि फोन की घंटी ने अवरोध उत्पन्न कर दिया। दूसरी ओर से जानमाने विधि विशेषज्ञ कुंवर योगेन्द्र प्रताप सिंह की आवाज सुनाई पडी। उनका उल्लासपूर्ण संबोधन और अपनत्वपूर्ण आमंत्रण मिला। निर्धारित समय और स्थान पर हम आमने सामने थे। इंग्लैण्ड को लेकर चल रहे विचारों की श्रंखला को आगे बढाते हुए हमने उनके विचारों को टटोलना शुरू कर दिया।
स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास पुरुष चन्द्रशेखर आजाद के साथ जुडी स्मृतियों को ताजा करते हुए उन्होंने कहा कि इंग्लैण्ड की कथनी और करनी में हमेशा से ही अंतर रहा है। मातृभूमि के लिए स्वाधीनता की बलवेदी पर प्राण निछावर करने वाले मतवालों पर गोरी सरकार ने हमेशा ही दमनकारी नीतियां अपनायी और इंग्लैण्ड से पढकर आये चन्द लोगों को ही महात्व देकर सारी आवाम का ठेकेदार बना दिया था। हमने बीच में ही टोकते हुए उनसे वर्तमान परिस्थितियों की विवेचना करने का आग्रह किया।
विजय माल्या के प्रत्यार्पण के लटके मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इंग्लैण्ड ने लम्बे समय तक हमारे देश पर शासन किया है। उसी ने अपने आंगन में बैठाकर हमारे देश के संविधान की रचना करवायी। वो हमें और हमारे देश के संविधान को हम से बेहतर जानता है। इन्हीं सबका लाभ उठाकर वह हमेशा से ही अपने वर्चस्व को सर्वोच्च मानता रहा है। देश की अनेक आंतरिक समस्यायें इसी लचीले संविधान की मनमानी विवेचनाओं का परिणाम है।
चुनावी वातावरण, सीमापार की चुनौतियां और अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों की स्थिरता जैसे अत्याधिक संवेदनशील समय पर नीरव मोदी का प्रगट होना, लंदन के एक अखबारनवीस से मुलाकात होना, नो कमेन्ट्स जैसे प्रत्योत्तर देना, किसी संयोग से अधिक एक सोची समझी योजना की व्यवहारिक परिणति प्रतीत होती है। इंग्लैण्ड की चाल हो सकती है चुनावी माहौल में नीरव का प्रगटीकरण।
चर्चा चल ही रही थी कि नौकर ने चाय और स्वल्पाहार की प्लेटें सेन्टर टेबिल पर सजाना शुरू कर दीं। तब तक हमें अपने चल रहे विचारों की धनात्मक दिशा का बोध हो चुका था। सो विचार विमर्थ को अल्पविराम देकर हमने सेन्टर टेबिल का रुख किया। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
(ये लेखक के निजी विचार हैं )