Tuesday - 5 November 2024 - 3:04 AM

डरावने हैं नवजात शिशुओं के मौत के ये आँकड़े

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क 

यूपी में शिशु की मृत्यु दर कम करने के तमाम प्रयासों के बीच हकीकत यह है कि इसके एक इलाके में अभी भी लगभग सात प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है। बच्चों में मृत्यु दर का यह आंकड़ा हैरत में डालता है। लेकिन सच ये है कि प्रदेश के कुछ जिलों में एक से पांच साल उम्र के 1000 बच्चों में 54 बच्चे दम तोड़ देते हैं।

इतना ही नहीं चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राइ) के नवजात स्वास्थ्य को लेकर किए अध्ययन से पता चला है कि 10 में आठ नवजात शिशुओं की मृत्यु जन्म के 7 दिनों के भीतर ही हो गई। यानी 82 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत, जन्म के एक सप्ताह के भीतर दर्ज की गई।

क्राइ के अध्ययन से यह भी पता चला कि सबसे ज्यादा 58 प्रतिशत नवजातों की मौतें घर पर हुई। वहीं निजी अस्पताल में 20 प्रतिशत और सरकारी अस्पताल में 18 प्रतिशत की मौत हुई। निमोनिया और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम यानी सांस लेने में तकलीफ इन दो प्रमुख वजहों से सबसे ज्यादा बच्चों की जान गई। निमोनिया से 27 प्रतिशत और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम से 24 प्रतिशत नवजात की जान चली गई।

गौरतलब है कि जब सिस्टम पहले ही कोविड-19 महामारी द्वारा लाई गई बाधाओं के कारण संघर्ष कर रहा है। इस महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है और गरीब और कमजोर बच्चों तक पहुचाए जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को सीमित कर दिया है।

अध्ययन के अनुसार 78 फीसदी प्रसव संस्थागत थे लेकिन प्रसव के एक ही दिन में 69 प्रतिशत महिलाओं को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। 28 प्रतिशत माताओं ने बताया कि उनके बच्चे को जन्म के बाद पहले सप्ताह में प्रसवोत्तर जांच हुई। जिन महिलाओं का संस्थागत प्रसव हुआ था, उनमें हर दस प्रसव में केवल एक में डॉक्टर द्वारा सहायता प्रदान की गई थी। यानी केवल 14 फीसदी प्रसव डॉक्टरों द्वारा करवाए गए, जबकि 86 प्रतिशत प्रसव एएनएम ने ही किए।

कौशाम्बी में तो स्थिति और खराब है, यहां एएनएम ने 88 प्रतिशत और केवल 12 प्रतिशत डॉक्टर द्वारा प्रसव करवाए गए। 17 प्रतिशत प्रसव ही किसी कुशल या प्रशिक्षित स्वस्थ्य कार्यकर्ता की मदद से किए गए। क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है। गरीब और कमजोर बच्चों तक पहुंचायी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को सीमित कर दिया है।

सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ (जेएनयू) की प्राध्यापक और क्राइ की बोर्ड ऑफ ट्रस्टीस की सदस्य प्रोफेसर ऋतु प्रिया ने बताया कि भारत का विश्व में होने वाले जीवित जन्म में 1/5 और नवजात शिशु मृत्यु में 1/4 से अधिक का योगदान है। भारत में 2018 में नवजात शिशु मृत्यु दर 1000 जीवित जन्मों पर 23 था (एस आर एस 2018)। कुल शिशु मृत्यु का 72 प्रतिशत और आधे से ज्यादा 5 साल तक के बच्चों की मृत्यु नवजात काल में आती है, पहले हफ्ते में होने वाली मृत्यु में कुल शिशु मृत्यु का अकेले 55 प्रतिशत हिस्सा है।

अध्ययन में निकला निष्कर्ष

पहला, महिलाओं में खून की कमी और गरीबी से उत्पन्न मातृ स्वास्थ्य की स्थिति की वजह से 30% से ज्यादा कम वजन के बच्चों (लो बर्थ वेट) की मृत्यु श्वसन संबंधी रोग की वजह से हो जाती है।

दूसरा- सीमित सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं जिसके चलते सेवा प्रदाताओं और समुदाय के सदस्यों के बीच अविश्वास पैदा होता है, जो नवजात स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पर्याप्त बुनियादी ढांचे और सही तरह से प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता में कमी और रोगियों के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत की कमी भी बड़ी समस्या बनकर सामने उभरी है।

इन चुनौतियों में अधिकांश कोविड महामारी के कारण स्पष्ट हो गई हैं और इसलिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि मातृ और बाल स्वास्थ्य सेवाएं इस अवधि के दौरान अधिक सतर्कता के साथ कार्य करना जारी रखें।

Baby and newborn sleep routines: a guide | Raising Children Network

अध्ययन में यह भी पता चला कि अधिकतर महिलाओं का सामान्य प्रसव (89 प्रतिशत) था। उनमें लगभग आधी महिलाओं (44 प्रतिशत) में खून की कम वजन आदि के चलते उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था थी। इन उच्च जोखिम वाले गर्भधारण में 29 प्रतिशत मामलों में प्रसव घर पर होने की सूचना दी गई।

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गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण संबंधी आवश्यकताओं से संबंधित निष्कर्षों को अगर देखा जाए तो यह पता चलता है कि 93 प्रतिशत महिलाओं ने टेक-होम-राशन (टीएचआर) प्राप्त करने की सूचना दी है, लेकिन 22 प्रतिशत ने इसका उपयोग अपनी स्वयं की आहार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नहीं किया।

रिपोर्ट जारी करते हुए क्राइ की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने कहा,”शिशुओं को समग्र देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से क्राइ कौशाम्बी के 60 गांवों, वाराणसी के 50 गांवों (ग्रामीण) और सोनभद्र के 28 गांवों में काम कर रहा है। संस्थान को इस शोध के जरिये नवजात मृत्यु के पीछे के कारणो और इसे रोकने के लिए सिस्टम, समुदाय और व्यक्तिगत स्तर पर किए जा सकने वाली आवश्यक कार्रवाई को गहराई से तब्दील करने की आवश्यकता महसूस हुई”।

उन्होने कहा “यह अध्ययन एक महत्वपूर्ण समय पर आ रही है, जब सिस्टम पहले ही कोविड-19 महामारी द्वारा लाई गई बाधाओं के कारण संघर्ष कर रहा है।इस महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है और गरीब और कमजोर बच्चों तक पहुचाए जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को सीमित कर दिया है।

 

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