कृष्ण मोहन झा
मध्यप्रदेश की 16वीं विधानसभा के अध्यक्ष की आसंदी पर निर्विरोध निर्वाचित नरेंद्र सिंह तोमर ने सदन के अंदर अपने हर फैसले से यह संदेश दिया है कि राज्य विधानसभा में नये युग की शुरुआत करने के दृढ़ संकल्प के साथ ही वे अध्यक्ष की आसंदी पर आसीन हुए हैं।
अपने पहले संबोधन में ही उन्होंने सदन के अंदर स्पष्ट घोषणा कर दी थी कि वे अपने दायित्वों के निर्वहन में हमेशा पूरी तरह निष्पक्ष रहेंगे और सदन के अंदर पुराने सदस्यों की अपेक्षा नये सदस्यों को अपनी बात रखने के अधिक अवसर प्रदान करेंगे।
राज्य विधानसभा के पिछले और वर्तमान सत्र में कार्यवाही का संचालन करते हुए अध्यक्ष की आसानी से दी गई हर व्यवस्था से यह सिद्ध हो चुका है कि विधानसभा के अध्यक्ष सदन में पहली बार चुनकर आए विधायकों को प्रोत्साहित करने का अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं। उनका हमेशा यह प्रयास रहा है कि सदन में जनहित से जुड़े हर मुद्दे पर न केवल सार्थक बहस हो बल्कि हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार की ओर से दिए गए गए बयानों से विपक्ष पूरी तरह संतुष्ट भी हों । विधानसभाध्यक्ष तोमर ने सदन की पुरानी गौरवशाली परम्पराओं को कायम रखते हुए नयी परंपराओं की शुरुआत की जो पहल की है वह निश्चित रूप से स्वागत है।
नरेंद्र सिंह तोमर ने अपना पदभार संभालने के पश्चात प्रबोधन कार्यक्रम में यह घोषणा की थी कि 16 वीं विधानसभा में शून्यकाल की सूचनाओं में उन विधायकों की सूचनाओं को प्राथमिकता क्रम में सबसे ऊपर रखा जाएगा जो सदन में पहली बार चुनकर आए हैं।
इसी क्रम में गत सप्ताह उन्होंने पहली बार निर्वाचित तीन सदस्यों की सूचनाओं को उसी दिन स्वीकार किये जाने की ऐतिहासिक व्यवस्था दी जिस दिन वे प्राप्त हुई थीं। इसे 16 वीं विधानसभा में एक नयी परिपाटी के शुभारंभ के रूप में देखना ग़लत नहीं होगा जिसका लाभ हर राजनीतिक दल अथवा निर्दलीय विधायक को भी मिलेगा। विधानसभा के लिए पहली बार निर्वाचित सदस्यों को अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की यह पहल निश्चित रूप से प्रोत्साहित करेगी।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने वर्तमान सत्र में एक और व्यवस्था दी है जिसके तहत प्रश्न पूछने वाले सदस्यों को विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद भी अपने प्रश्न का उत्तर मिल सकेगा।
मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में पहली बार सदन के अध्यक्ष ने पहली बार इस तरह की व्यवस्था दी है जो सरकार को और भी अधिक जिम्मेदार बनाएगी। यह व्यवस्था विधायकों के मन में भी यह विश्वास जगाया कि उनके कोई भी कभी अनुत्तरित नहीं रहेंगे। अध्यक्ष की व्यवस्था के अनुसार ” अब विधानसभा के विघटन के पूर्व सत्र तक लंबित प्रश्नों के अपूर्ण उत्तरों के उत्तर व्यपगत नहीं होंगे। इसके संबंध में परीक्षण कर प्रश्न एवं संदर्भ समिति द्वारा कार्यवाही की जाएगी तथा समिति द्वारा अनुशंसा सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाएगा।
” उल्लेखनीय है कि राज्य की चतुर्दशी एवं पंचदश विधानसभा में इस तरह के प्रकरणों की संख्या क्रमशः 391 एवं 225 थी जो कि पूर्व नियमों के अनुसार स्वत: व्यपगत हो गये थे। विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बात पर भी जोर दिया है कि सदन के अंदर किसी भी मुद्दे पर बोलते समय विधायकों के पास यदि संबंधित विषय की पर्याप्त जानकारी होगी तो सदन में इस विषय पर सार्थक विमर्श हो सकेगा। इतना ही नहीं,विधानसभाध्यक्ष की सरकार से भी कुछ अपेक्षाएं हैं जो निश्चित रूप से सरकार को भी सदन के प्रति उसके और अधिक उत्तरदायी बनने के लिए प्रेरित करेंगी।
विगत दिनों अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान में आयोजित लीडरशिप समिट के मंच से अपने सारगर्भित संबोधन में विधानसभा अध्यक्ष तोमर ने इस बात को रेखांकित किया था कि मंत्रीगण को अपने विभाग की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं को पूरी तरह समझना चाहिए।मंत्रिपद के दायित्व का बेहतर तरीके से निर्वहन में नवाचार को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन के बीच हमेशा समन्वय होना चाहिए।
अगर मंत्रियों के पास अपने विभाग की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं की पर्याप्त जानकारी होगी तो नीति निर्माण, क्रियान्वयन और उसकी समीक्षा का कार्य बेहतर तरीके से किया जा सकेगा। सरकार और प्रशासन को एक दूसरे का पूरक बताते हुए विधानसभाध्यक्ष तोमर ने कहा कि समय समय पर समीक्षा के द्वारा ही समय की मांग के अनुसार प्रशासनिक सुधार सुनिश्चित किया जा सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष ने अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान में अपने सारगर्भित व्याख्या में जिस समन्वय , प्रशिक्षण और नवाचार पर विशेष जोर दिया वही आग्रह और अपेक्षा उनकी विधानसभा के अंदर भी नवनिर्वाचित विधायकों रही है और इस दिशा में उन्होंने जो पहल की है उसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं।मध्यप्रदेश की 16 वीं विधानसभा का कार्यकाल प्रारंभ हुए अभी तीन माह भी पूरे नहीं हुए हैं। इतने कम समय में सदन की कार्यवाही में नवाचार और समन्वय के माध्यम से नये युग की शुरुआत के जो सुखद संकेत मिलने लगे हैं उसके लिए विधानसभाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर साधुवाद के हकदार बन गए हैं।
राज्य विधानसभा के वर्तमान सत्र में यद्यपि जनहित से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखे आरोप प्रत्यारोप के आदान प्रदान की स्थिति अवश्य बनी परंतु अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर उसे अपनी चिर-परिचित सूझबूझ के माध्यम से नियंत्रित करने में सफल रहे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सदन में एक लंबे अरसे के बाद ऐसा अनुशासन और संयम दिखाई दिया है जिसे सुनिश्चित करने में विधानसभा अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
विधानसभा अध्यक्ष ने जहां एक ओर पहली बार चुनकर आए सदस्यों को प्रोत्साहित करने का अपनी ओर से पूरा प्रयास किया वहीं दूसरी ओर उन्होंने सभी सदस्यों को आगाह किया कि जब सदन में दोनों पक्षों के नेता, उपनेता सहित वरिष्ठ सदस्य अपने विचार व्यक्त कर रहे हों तब किसी भी तरह की टोका-टाकी या व्यवधान पैदा नहीं किया जाना चाहिए।
वर्तमान सत्र में सदन की कार्यवाही समाप्त होने तक इस बार वरिष्ठ और कनिष्ठ सदस्यों ने जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई उसमें भी विधानसभाध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। नवनिर्वाचित विधायकों के लिए गत माह आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष ने इसकी उपयोगिता के बारे में फीडबैक लेने का सुझाव दिया था।
वर्तमान सत्र की समाप्ति के पश्चात् सभी विधायकों से इस सत्र के बारे में उनके अनुभवों की जानकारी और सुझाव आमंत्रित कर आगामी सत्रों को और बेहतर बनाया जा सकता है।
(लेखक राजनैतिक विश्लेषक और विधानसभा की पत्रिका विधायनी के पूर्व संपादक मंडल सदस्य है)