जुबिली न्यूज डेस्क
पोलियो जैसी बीमारी के अब आसानी से पहचाना जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने बच्चों में एक ऐसे एंटीबॉडी ढूंढ़ निकाला है, जिसकी मदद से अब बीमारी को पहचाना जा सकेगा।
यह खोज वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, पर्ड्यू विश्वविद्यालय और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है।
वैज्ञानिकों ने मानव मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को अलग कर दिया है जो एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक पोलियो जैसी बीमारी को रोक सकता है। यह बच्चों में श्वसन संक्रमण से जुड़ा हुआ है।
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एक्यूट फ्लेसीस मायलिटिस (एएफएम) नामक बीमारी, इसमें बुखार या सांस की बीमारी के बाद हाथ और पैर में अचानक कमजोरी आ जाती है।
अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने 2014 में इस बीमारी पर नजर रखना शुरू किया। इस दौरान 600 से अधिक मामलों की पहचान की गई।
यह स्टडी साइंस इम्यूनोलॉजी नामक पत्रिका प्रकाशित हुआ है।
एक्यूट फ्लेसीस मायलिटिस (एएफएम) का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। यह गर्मियों के शुरुआती दौर में प्रहार करता है और इसके कारण काफी मौतों भी हुई हैं। हालांकि, बीमारी को हाल ही में श्वसन वायरस के एक समूह से जोड़ा गया है, जिसे एंटरोवायरस डी-68 (ईवी-डी 68) कहा जाता है।
वेंडरबिल्ट वैक्सीन सेंटर के निदेशक डॉ. जेम्स क्रो ने कहा कि हम इस भयानक पोलियो जैसे वायरस को रोकने वाले शक्तिशाली मानव एंटीबॉडी को अलग करने के लिए उत्साहित थे। यह अध्ययन परीक्षणों को आगे ले जाने में मदद करेगा।
डॉ. जेम्स क्रो वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल रोग और पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर भी हैं।
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उल्लेखनीय है कि हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन समर्थित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (आईएचआर) के तहत पोलियो वायरस के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार पर आपातकालीन समिति की पच्चीसवीं बैठक हुई। बैठक में बताया गया कि अफ्रीका में पोलियो वायरस बड़ी तेजी से फैल रहा है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने कहा अफ्रीका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पोलियो वायरस के संचरण को समाप्त करने के लिए अभी और बहुत काम करना बाकी है। कोविड-19 महामारी का पोलियो उन्मूलन सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है।
दुनिया भर में 2019 से 2020 में पोलियो वायरस डब्ल्यूपीवी1 के मामलों की बढ़ती संख्या काफी चिंताजनक है। इस वर्ष 16 जून 2020 तक पोलियो वायरस डब्ल्यूपीवी1 के 70 मामले सामने आए हैं, जबकि 2019 में इसी अवधि में केवल 57 मामले थे, अर्थात पोलियो के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।