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नये डीजीपी के तेवरों से याद आया जेएन चतुर्वेदी का जमाना

केपी सिंह

उत्तर प्रदेश पुलिस की कमान मुकम्मल तौर पर संभालने के बाद डीजीपी हितेश चन्द्र अवस्थी ने विधिवत पारी खेलने की शुरूआत कर दी है। अपने तबादले के लिए राजनीतिक दबाव डलवा रहे एक पुलिस उपाधीक्षक को निलंबित करके उन्होंने कड़ा संदेश दे डाला। उनकी कार्यप्रणाली में वीर बहादुर सिंह के समय ईमानदारी और धाकड़पन के लिए मशहूर रहे प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी जेएन दीक्षित की झलक देखने को मिली।

गत 31 जनवरी को पूर्व डीजीपी ओपी सिंह के रिटायर होने के बाद डीजी विजिलेंस हितेश चन्द्र अवस्थी को अंतरिम तौर पर उनका कार्यभार सौंपा गया था। उसी समय कहा गया था कि अंततोगत्वा हितेश चन्द्र अवस्थी ही स्थाई डीजीपी बनाये जायेंगे। फिर भी एक माह से अधिक समय तक मामला लटका रहा।

कार्यवाहक हैसियत में अधिकारी खुलकर नहीं खेल पाता इसलिए अभी तक वे भी रूटीन तरीके से काम निपटा रहे थे। संघ लोक सेवा आयोग से उनकी नियुक्ति पर मुहर लगते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनके नाम को हरी झंडी दे डाली और अब अवस्थी क्रीज पर डट गये हैं।

दो तीन दिन उन्होंने सहयोगियों के साथ मंत्रणा में गुजारे ताकि विभाग के हालचाल की अद्यतन स्थिति से अवगत हो सकें। इसी बीच सीओ विनीत सिंह का मामला सामने आया। विनीत सिंह को एसपी रायबरेली के डीओ लैटर पर पिछले दिनों कन्नौज स्थानांतरित किया गया था लेकिन उन्होंने कन्नौज में योगदान आख्या देने की बजाय रायबरेली में ही डटे रहने के लिए राजनैतिक सोर्स सिफारिश लगवानी शुरू कर दी जिसका पता चलते ही नये डीजीपी ने उनको न केवल निलंबित कर दिया बल्कि उनके खिलाफ लखनऊ के संयुक्त पुलिस आयुक्त नवीन अरोड़ा को जांच भी सौंप दी। डीजीपी की इस कार्रवाई से पूरे महकमें में हड़कंप मच गया।

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इस संदर्भ में 1986 के दौर का स्मरण हो आया। उत्तर प्रदेश के डीजीपी उस समय जेएन चतुर्वेदी थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के पूर्व युवराज होने और इसी क्षेत्र से जीतकर विधानसभा में आने के कारण डा संजय सिंह का उस समय के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के मंत्रिमंडल में अलग की रूतबा था। उन्हें सुपर मिनिस्टर का खिताब दिया जाता था। कोई अधिकारी संजय सिंह की बात काटने का साहस नहीं कर पाता था।

संजय सिंह ने एक दिन एक दरोगा का नाम लेकर उसे अच्छी तैनाती देने की सिफारिश जे एन चतुर्वेदी से कर डाली। जेएन चतुर्वेदी ने उस दरोगा को बुलवा लिया और उससे कहा कि इतने बड़े कैबिनेट मंत्री ने नाम से तुम्हारी सिफारिश की है तो जरूर तुम बड़े तीरंदाज होगे। इसलिए तुम्हें पहाड़ पर तैनाती दिये देता हूं क्योंकि पुलिस के लिए वहां चुनौतियां ज्यादा हैं। उन्होंने दरोगा का तबादला पहाड़ पर कर दिया। उन दिनों उत्तराखंड बना नहीं था और पहाड़ की पोस्टिंग काला पानी भेजने के बराबर मानी जाती थी। फिर किसी राजनीतिक की हिम्मत नहीं हुई कि तबादला व पोस्टिंग के लिए जे एन चतुर्वेदी से कोई सिफारिश करे।

जे एन चतुर्वेदी मंत्री तो मंत्री मुख्यमंत्री तक का हस्तक्षेप नहीं मानते थे। लोगों में उनकी साख इस कदर मजबूत थी कि मुख्यमंत्री उन्हें आसानी से हटा भी नहीं सकते थे।

आखिरकार राजनीति के मंजे खिलाड़ी में शुमार रहे वीर बहादुर सिंह ने ऐसा तरीका निकाला ताकि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। उन्होंने जेएन दीक्षित से परेशान होकर उन्हें रास्ते से हटाने के लिए राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बना दिया। इसके पहले कभी कोई आईपीएस लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष नहीं बनाया गया था।

जब ईमानदार डीजीपी को हटाने की चर्चा छिड़ी तो वीर बहादुर सिंह ने जबाव दिया कि चूंकि जेएन दीक्षित चौबीस कैरेट के ईमानदार आईपीएस हैं इसीलिए उन्हें पहली बार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के सम्मान से नवाजा गया है। तब से जे एन चतुर्वेदी के कैलिबर का कोई अधिकारी डीजीपी की कुर्सी पर नहीं बैठा। प्रकाश सिंह उनकी बराबरी करना चाहते थे लेकिन वे काम उतना नहीं करते थे जितना सुर्खियों में बने रहने का हुनर उन्होंने हासिल कर रखा था।

हितेश चन्द्र अवस्थी की गिनती जे एन चतुर्वेदी जितने ही डैड ओनेस्ट अफसर के बतौर रही है। यह गुण वीर बहादुर के समय भी अवगुण की तरह देखा जाता था और आज तो यह और ज्यादा अवगुण समझा जाता है। शायद इसी वजह से पहली बार योगी सरकार में हितेश चन्द्र अवस्थी ओपी सिंह के मुकाबले पिछड़ गये थे। ओपी सिंह डायलॉग डिलेवरी के लिए याद किये जाने वाले डीजीपी रहे हैं। पर ठोस पुलिसिंग को लेकर उनका खोखलापन उजागर हो गया था इसलिए उन्होंने बहुत पापड़ बेले पर उनको सेवा विस्तार नहीं मिल सका।

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हितेश चन्द्र अवस्थी के नाम पर ओपी सिंह के बाद भी कई अड़चने रही हैं। योगी आदित्यनाथ में और कुछ कमियां भले रहें पर वे ईमानदारी की व्यवस्था चाहते हैं इस पर शक नहीं किया जा सकता। इसलिए जब हितेश चन्द्र अवस्थी की ख्याति से वे परिचित हो गये तो ओपी सिंह के उत्तराधिकारी के बतौर उनकी निगाह में सबसे ऊपर श्री अवस्थी का नाम चढ़ गया।

दूसरी ओर वे इस बात से हिचकिचा भी रहे थे कि मुख्य सचिव ब्राह्यण हैं, अपर मुख्य सचिव ब्राह्यण हैं तो डीजीपी की कुर्सी पर भी ब्राह्यण अधिकारी का चयन करने से अनर्थ न हो जाये। हालांकि आखिर में उन्होंने प्रशासन के लिए जातिगत समीकरण की पत्तेबाजी झटक कर मैरिट को सर्वोच्च वरीयता देने का साहस दिखाया।

हितेश चन्द्र अवस्थी के साथ काम कर चुके अधिकारी उनकी तमाम खूबियां गिनाते है। ईमानदारी के मामले में तो आज के समय उन जैसे अफसर दुर्लभ हैं। इसके अलावा उन्हें जातिवाद भी कहीं नहीं छू गया है। ओपी सिंह के समय बेदाग और कार्यकुशल अफसरों को भी ओबीसी या दलित होने की वजह से अच्छी पोस्टिंग से वंचित रहना पड़ा था पर अब शायद ऐसा नहीं हो पायेगा।

एक अफसर ने बताया कि हितेश चन्द्र अवस्थी की कानूनी और प्रोफेशनल समझ भी गजब की है। ऐसे समय जब भ्रष्टाचार के आरोप में कई आईपीएस अफसर बेनकाब हो चुके हों और पुलिस के अंदर की संड़ाध चरम सीमा पर पहुंच चुकी हो क्या हितेश चन्द्र अवस्थी के नेतृत्व के कारण इस तंत्र में सचमुच ताजगी भरी खुशनुमा बयार का एहसास जल्द ही लोगों को होगा।

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(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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