Monday - 28 October 2024 - 12:01 PM

कोरोना संकट के बीच गली की दुकानों को बचाना होगा

रतन मणि लाल

जहां भारत में कोरोना काल के बाद की परिस्थितियों को लेकर उद्योग जगत की चिंताओं से देश चिंतित है, वहीँ छोटे, या घरों से चलाये जा रहे व्यापारों के बंद होने के संकट से आमान्य अर्थ व्यवस्था के सामने संकट गहराता जा रहा है. देशव्यापी आर्थिक मंदी के बावजूद यदि भारत में अभी भी आर्थिक आपदा से हम कुछ हद तक बचे हुए हों, तो ये हमारी बचत करने की आदत, और छोटे विक्रेताओं या छोटे व्यापारियों की कारण ही संभव हुआ है.

लॉक डाउन से प्रभावित जगहों से यही खबरें आ रही हैं कि भले ही राज्यों की सरकारों ने टेलीफोन या ऑनलाइन बुकिंग द्वारा घरों तक आवश्यक सामान भिजवाने की घोषणाएं की हों, अधिकतर शहरों में घरों में सामान पास की दुकान से, या निकटतम मोहल्ले की गली की दुकान से ही आया है.

इसके साथ, यह भी सच है कि भारत में मासिक या दैनिक मजदूरी करके जीवनयापन करने वाले लोगों के सामने आया हुआ संकट कहीं ज्यादा बड़ा है. इस तरह के लोगों को किसी भी प्रकार के बेरोजगारी भत्ते देने की कोई राष्ट्रीय स्कीम नहीं है, और अधिकतर सीधी मदद की योजनाएं भी या तो महिलाओं के लिए या विधवा, अशक्त, वरिष्ठ नागरिकों तक सीमित है. और उनमे भी मदद के तौर पर दी जाने वाली धनराशि बहुत अधिक नहीं है. ऐसे में, आने वाले दिनों में यदि घरों से चलाये जा रहे, छोटे और मध्यम व्यापार को किसी प्रकार की राहत के बारे में विचार नहीं किया जाता, तो छोटे शहरों, कस्बों और गावों में सामजिक-आर्थिक स्थिति बिगड़ने के आसार हो सकते हैं.

छोटे शहरों का हाल

छोटे शहरों या कस्बों की अर्थव्यवस्था में वहां किसी भी वजह से आने वाले लोगों का बड़ा योगदान होता है. चाहे वह खाने का सामान बेचने वाले हो, स्टेशनरी, हार्डवेयर, कपडे, खिलोने, आदि की दुकाने हों, या फोटोकॉपी, स्टूडियो, ब्यूटी पार्लर आदि हों, इनमे होने वाली आमदनी से उस शहर या कस्बे के काफी परिवार जुड़े होते हैं. अब, चूँकि पर्यटन, उत्पादन, व्यापारिक या व्यावसायिक गतिविधियाँ बंद चल रही हैं, या धार्मिक पर्व, मेला आदि भी नहीं हो रहे हैं, इसलिए इन जगहों में रह रहे लोगों के सामने बड़ा संकट आ रहा है. और ऐसे छोटे घरों से चलाये जाने वाले व्यापार आम तौर पर अपनी ही पूँजी से, या व्यक्तिगत उधार ले कर शुरू किये और चलाये जाते हैं. ऐसे में बैंकों या संस्थागत वित्त के संस्थानों द्वारा वर्तमान व्यवस्था में इनकी मदद किये जाना मुश्किल होगा.

तीर्थस्थानों, मंदिर, मेले या इस प्रकार के आयोजनों के केंद्र रहे स्थानों पर भी वहां के निवासियों के सामने संकट आ गया है. ऐसी जगहों के निवासी आम तौर पर प्रसाद, खाने के सामान, चढ़ावे की सामग्री, मेले आदि के सामान, टेंट, कुर्सी, बिजली का सामान, यातायात सुविधा आदि से जुड़ कर अपनी जीविका चलाते थे. लेकिन अब ऐसी गतिविधियाँ बंद होने से वहां भी समस्याएं बढ़ रही हैं.

आने वाले लम्बे समय तक यात्राएं सामान्य हो पाना मुश्किल लग रहा है. तीर्थ स्थानों या धार्मिक कारणों से की जाने वाली यात्राएं भी जल्दी शुरू होने की आशा कम है. सामान्य पर्यटन को पटरी पर आने में तो न जाने कितना समय लगेगा, यह कोई विशेषज्ञ भी नहीं बता पा रहे हैं.

बड़े उद्योग शुरू हुए

बड़े शहरों में आम तौर पर बड़े उद्योगों, बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस या बहुराष्ट्रीय कार्यालयों की वजह से आर्थिक गतिविधियाँ जल्दी शुरू हो सकती हैं. मोटर वाहन बनाने वाली कुछ बहुराष्ट्रीय कारखानों में तो काम शुरू भी हो गया है. वैसे भी बड़े उद्योगों में आर्थिक मंदी से निबटने के लिए उपायों पर पिछले कई महीनों से विचार हो रहा था, और उनके सामने नए रास्ते अपनाना, कर्मचारियों की छंटनी करना, उनकी तनखाहें कम कर देना, कुछ ऑफिस बंद कर देना, कई प्रकार के भत्ते व कमीशन बंद कर देना, जैसे कई विकल्प मौजूद हैं. कई भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है.

लेकिन घरों से चलने वाले, छोटे व्यापारों के सामने ऐसे कोई विकल्प नहीं होते. हो सकता है एक घर के चार सदस्यों में दो या तीन उस घर की दूकान या व्यापार से जुड़े हों, और उनके लिए छंटनी करना या वेतन/भत्ते काट देना कोई मायने नहीं रखता.

इसी के साथ, ऐसी ही वे तमाम दुकाने हैं जो संकट में आस पास रहने वालों के काम आती हैं. अब जरूरत है कि इनको भी व्यापक आर्थिक नीति में शामिल किया जाए. भले ही भारत में आर्थिक पैकेज का मतलब है उद्योग समूहों को मदद देना, लेकिन अमेरिका जैसे बड़े औद्योगिक देश से मिल रही ख़बरों के अनुसार, वहां भी छोटे व्यापार के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है.

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अमेरिका में भी चिंता

अमेरिका के तमाम बड़े व छोटे शहरों में छोटे, घरों से चलाये जा रहे लाखों कारोबारों के बंद होने की आशंका है. न्यू यॉर्क जैसे बड़े शहर में भी सड़क के किनारे चल रहे कैफ़े, यूटिलिटी स्टोर, स्टूडियो आदि बंद तो हैं ही, और अब उनके दोबारा खुलने के कोई आसार नहीं दिख रहे. अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रशासन ने अभी तक इस आपदा से निबटने के लिए मार्च में 2 लाख करोड़ डॉलर के ऐतिहासिक पैकेज का ऐलान किया था, जिसके अंतर्गत ज्यादातर अमेरिकी नागरिकों को डायरेक्ट पेमेंट के तहत नगद भुगतान किया जा रहा है. लेकिन इस सहायता को दो महीने से दिए जाने के बावजूद, वहां बेरोजगारी भत्ते के लिए भी 2.6 करोड़ से ज्यादा अमेरिकी आवेदन कर चुके हैं, जो बढ़कर चार करोड़ हो सकते हैं, और ऐसे में ट्रंप ने चरणबद्ध ढंग से देश की अर्थव्यवस्था को खोलने का समर्थन किया है.

अमेरिका में ताजे आंकड़ों के अनुसार, देश भर में चल रहे कुल छोटे व्यापार के एक-तिहाई तक इस महामारी काल में स्थाई रूप से बंद हो चुके हैं. यह जानकारी ऐसे व्यापारों के द्वारा किये जाने वाले आर्थिक लेनदेन के आंकड़ों पर आधारित है, और इससे सामने आया है कि ट्रेवल एजेंसी के काम में 98 प्रतिशत गिरावट आई है, फोटो स्टूडियो के काम में 88 प्रतिशत, और एडवरटाइजिंग एजेंसी के काम में 60 प्रतिशत गिरावट आई है. अन्य प्रकार के छोटे व्यापार में भी गिरावट का स्तर 50 प्रतिशत के आसपास है. भले ही इस गहराते आर्थिक संकट का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी संसद ने करीब 484 अरब डॉलर के पैकेज को भी मंजूरी दे दी है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा केवल बड़े उद्योग समूहों या कॉर्पोरेट घरानों को जा रहा है.

वहां बैंक भी बड़े उद्योगों को मदद देने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के नीति-निर्देशक भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि गली-मोहल्लों की दुकानों को सीधी मदद कैसे दी जाए, और उन्हें बंद होने से कैसे बचाया जाए, क्योंकि अर्थ-व्यवस्था का यह भाग, ख़ास तौर पर वहां के पर्यटन आकर्षण वाली जगहों में, अमेरिका के आम नागरिक के लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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