रतन मणि लाल
अयोध्या में विवादित भूमि के मालिकाना हक़ के मुकदमे पर 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद पूरे देश में और ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश में न केवल शांति बरक़रार रही, बल्कि इस मौके को हिन्दू व मुस्लिम संप्रदाय के बीच पारम्परिक सौहार्द्र के एक उदाहरण के तौर पर लिया गया।
तमाम अख़बारों और टीवी पर दोनों समुदायों के लोगों को गले मिलते, एक दूसरे को मिठाई खिलाते और आम तौर पर सहज मुद्रा में दिखाया गया। अयोध्या में निर्णय सुनाये जाने के एक दिन बाद से ही माहौल सामान्य होने लगा और स्थानीय लोगों, व तीर्थयात्रियों का आवागमन शुरू हुआ।
कहा जा सकता है कि स्थितियां सामान्य होने के पीछे एक कारण था प्रदेश पुलिस की तैनाती और उनको दिए गए आदेश, जिनकी वजह से किसी भी तरह का विजय उत्सव और विरोध प्रदर्शन नहीं होने दिया गया। और अब, निर्णय सुनाये जाने के दस दिन बाद, यह स्पष्ट है कि मुस्लिम पक्ष के अधिकतर पक्षकार इस निर्णय की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं। यही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के ऊपर भी सवाल उठाये जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि यह निर्णय तथाकथित ‘बहुसंख्यकवाद’ से प्रेरित है।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एमपीएलबी), जो कि स्वयं इस मुकदमे में पक्षकार नहीं है, ने लखनऊ में एक बैठक के बाद साफ़ किया कि वे मुस्लिम पक्षकारों को पुनर्विचार याचिका (रिव्यु पेटीशन) दाखिल करने के लिए तैयार करना चाहेंगे। और अब यह सामने आ चुका है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, शिया वक्फ बोर्ड और मूल व मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी के अलावा सात अन्य पक्षकार पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को तैयार हैं।
इस खबर के बाद परिस्थितियां न केवल बदली हैं, बल्कि निर्णय सुनाये जाने के बाद उठे वे स्वर, जिनमे कहा गया था कि इस मामले में ‘न कोई जीता, न कोई हारा’ अब बेमानी लगने लगे हैं. इसका यह भी अर्थ है कि प्रदेश में अभी भी इस मामले को लेकर चूँकि समुदायों के बीच आम राय नहीं है, इसलिए इस पर कोई टकराव की आशंका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
प्रदेश पुलिस ने पिछले दिनों पूरे राज्य में शान्ति बनाये रखने में सकारात्मक भूमिका निभाई थी, इसलिए अब भी पुलिस और प्रदेश सरकार के तमाम विभागों को सतर्कता बनाये रखना होगा। निर्णय सुनाये जाने के बाद सोशल मीडिया पर पुलिस व अन्य एजेंसियों ने नजर बनाये रखी थी और किसी भी भड़काऊ पोस्ट पर तुरंत कार्यवाई भी की।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने, स्थानीय समुदाय व संगठनों की भूमिका और अन्य सम्बंधित मामलों पर भले ही काम शुरू होने जा रहा हो, लेकिन चूँकि निर्णय पर पुनर्विचार याचिका की पूरी सम्भावना है, इसलिए कोई पहल अभी अधिकारिक रूप से शायद न की जाए. ऐसे में अयोध्या में शांति बनाये रखने की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
सबसे ज्यादा जिम्मेदारी दोनों समुदायों के धार्मिक व सामाजिक नेताओं की है, जिन्हें समाज में इस विषय पर असंतोष फैलाने वाले तत्वों पर रोक लगानी होगी। ‘न कोई जीता, न कोई हारा’ केवल एक नारा नहीं है, बल्कि इस मुद्दे पर दीर्घकालीन शांति और सौहार्द्र बनाये रखने का मन्त्र है। पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट का निर्णय कुछ भी हो, कम से कम तब तक समाज में शांति बनी रहे यह सबका दायित्व है।
समाज के सभी वर्गों ने जिस तरह से 27 साल एक फैसले का इन्तजार करने में निकाल दिए, वैसे ही कुछ समय और सही। ऐसी उम्मीद की जाती है कि पुनर्विचार याचिका पर सुनाये जाने वाला निर्णय सर्वमान्य होगा और इस विवाद का पटाक्षेप होगा।