जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट बंटवारे का फार्मूला लगभग तय हो गया है। सूत्रों की माने तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल JDU बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकि सीटों को लोक जन शक्ति पार्टी (LJP) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के बीच बांटा जाएगा।
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हालांकि, सीट शेयरिंग से जुड़े एक नेता के अनुसार, शुरुआती दौर की चर्चा के बाद बीजेपी के कैडर का सुझाव है कि जेडीयू और बीजेपी दोनों को 105 से 110 के बीच सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए और बाकी बची सीट को सहयोगियों के बीच विभाजित करना चाहिए। वहीं जदयू कैडर इस बात पर जोर दे रहा है कि पार्टी के पास एक सीट ही सही लेकिन भाजपा से अधिक सीटें होनी चाहिए।
उधर, बीजेपी नेतृत्व ने ये ऐलान कर दिया है पार्टी कार्यकर्ता सभी सहयोगियों के लिए भी चुनाव प्रचार करेंगे और इस चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार चुनाव के दो चेहरे होंगे। पार्टी कैडर के सुझाव के मुताबिक चूंकि इस बार जेडीयू के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है इसलिए बीजेपी को अधिक सीट न मिले तो कम से कम बराबर संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए।
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पार्टी के नेता ने कहा कि लोजपा को इस फार्मूले के लिए सहमत होना होगा क्योंकि गठबंधन के शेष सहयोगियों के लिए भी सीट पर विचार करना है। सीट आवंटन और टिकट वितरण का कार्य करते समय एनडीए में शामिल हम और राजद के कुछ ऐसे नेता जिन्होंने पिछला चुनाव जीता था उन पर भी विचार करना है।
वहीं लोजपा मांग कर रही है कि उसे लोकसभा चुनावों में जितनी सीटें मिली थी, उससे छह गुना सीटें मिलनी चाहिए। लोजपा ने चेतावनी दी है कि अगर उसकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वह तीन चरण में होने वाले चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से 143 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि पार्टी कह रही रही है कि पार्टी सिर्फ जदयू के खिलाफ अपने कैंडिडेट्स को खड़ा करेगी।
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बीजेपी एनडीए को टूट से बचाने और एलजेपी के एनडीए से अलग होकर जदयू से संभावित किसी भी त्रिकोणीय मुकाबले को रोकने के लिए चिराग पासवान से सीट शेयरिंग पर बातचीत कर रही है। आपको बता दें कि चिराग पासवान जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुखर आलोचक रहे हैं और उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि भाजपा को सीटों का एक हिस्सा मिलना चाहिए।
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर चिराग पासवान सीट शेयरिंग फार्मूले से संतुष्ट नहीं होते हैं तो उनका अगला कदम क्या होगा। एनडीए में बीजेपी एलजेपी को 30-32 सीटें देने को तैयार है। हालांकि चिराग पासवान 42 सीटों से कम पर तैयार नहीं दिख रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान सीट को लेकर आज अंतिम निर्णय ले सकते हैं। बीजेपी ने चिराग से कहा है कि बुधवार शाम तक वह अपन स्टैंड क्लियर करें। सूत्रों का कहना है कि अगर एलजेपी आज सीट शेयरिंग पर अपनी अंतिम राय नहीं देती है तो बीजेपी और जेडीयू अपने-अपने हिस्से की सीटों का ऐलान कर देगी।
चिराग पासवान के पास दूसरा विकल्प यह है कि वह एनडीए से अलग हो जाए। उसके बाद वह बिहार में उन सीटों पर प्रत्याशी ना उतारे जहां बीजेपी के उम्मीदवार होंगे। इस लिहाज से एलजेपी के ज्याद सीटों पर प्रत्याशी उतारने का सपना भी पूरा हो जाएगा और केंद्र में बीजेपी के साथ उसका गठबंधन भी बना रहेगा। क्योंकि चिराग पासवान लगातार कहते रहे हैं कि उनका गठबंधन बीजेपी के साथ है ना कि जेडीयू के साथ। जेडीयू के नेता भी इस बात को दोहराते रहे हैं।
चिराग पासवान के सामने तीसरा विकल्प यह दिखता है कि वह उपेंद्र कुशवाहा और मायावती को मिलाकर बने गठबंधन में शामिल हों। महागठबंधन से अलग होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में जाना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बन पाई। इसके बाद उन्होंने मायावती की बीएसपी के साथ गठबंधन किया है। इस गठबंधन में अगर चिराग पासवान आते हैं तो चुनाव परिणाम में कोई बड़ा फेरबदल दिख सकता है।
बिहार में अनुमान के मुताबिक बिहार में दलित और महादलित मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर हैं। वहीं बिहार में कोइरी (कुशवाहा) की कुल आबादी 6 से 7% के आसपास है। इस वोट बैंक का हिसाब लगाएं तो कुल मिलाकर करीब 20-21 फीसदी होता है। इसमें करीब पांच फीसदी पासवान समाज के कोर वोटर रामविलास पासवान और चिराग पासवान का साथ देते रहे हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में आरएलएसपी एनडीए का हिस्सा थी और बीएसपी अकेले दमखम दिखा रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव में आरएलएसपी ने 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें उनके 2 कैंडिडेट जीते थे। इन सीटों पर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 27.50 फीसदी वोट हासिल किए थे। राज्य के कुल वोट के हिसाब से यह 2.56 फीसदी था। कुशवाहा के एक प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई थी।
वहीं बीएसपी ने 228 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें एक को भी जीत नहीं मिली। इन सीटों पर बीएसपी ने 2.21 फीसदी वोट हासिल किए थे। जबकि राज्य स्तर पर यह वोट प्रतिशत 2.7 फीसदी था। गौर करने वाली बात यह है कि बीएसपी के 225 प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाए थे।
वहीं रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें उनके 2 विधायक जीते थे। एलजेपी को इन सीटों पर 28.79 फीसदी वोट मिले थे, जो की राज्य स्तर पर 4.83 फीसदी हैं। इस लिहाज से देखें तो मायावती+उपेंद्र कुशवाहा के साथ अगर चिराग पासवान जुड़ते हैं तो एक नया समीकरण दिख सकता है।
साल 2005 के फरवरी में हुए चुनाव की तरह एलजेपी अकेले मैदान में उतरे। साथ ही बिहार के ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान अकेले चुनाव में उतरे थे, जिसमें उनकी पार्टी को 29 सीटें मिली थी। इस तरह वह सत्ता की चाभी हासिल करने के में सफल रहे थे।
लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान को आखिरी फैसला लेना है कि वह इन चार में से कौन सा विकल्प तलाशते हैं। यह भी देखना होगा कि चिराग इन विकल्पों के अलावा कोई नया गठबंधन तो नहीं बनाते हैं।