न्यूज डेस्क
लोकसभा में बहुमत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और भारतीज जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की नजर राज्यसभा में संख्यबल बढ़ाने पर लगी है। अगर उच्च सदन में एनडीए के सांसद बढ़ते हैं तो तीन तलाक जैसे कई विदेयकों को पारित कराने में मोदी-शाह की जोड़ी सफल हो जाएंगी।
गौरतलब है कि तेलुगू देशम पार्टी के चार सांसदों और इंडियन नैशनल लोक दल के एक सांसद के बीजेपी से जुड़ने से एनडीए को राज्यसभा में बड़ी बढ़त मिली है। चार और सांसद 5 जुलाई तक एनडीए का हिस्सा बनने वाले हैं, ऐसा होता है तो सत्ताधारी गठबंधन बहुमत के काफी करीब होगा। यह एनडीए के लिए महत्वपूर्ण होगा, जिसे पिछले कार्यकाल में कई अहम विधेयकों को उच्च सदन से पारित कराने में असफलता हाथ लगी थी।
राम विलास पासवान निर्विरोध चुने गए
दरअसल, राज्यसभा की 6 सीटों पर 5 जुलाई को चुनाव होना है। इनमें से एक पर बीजेपी की सहयोगी एलजेपी के मुखिया राम विलास पासवान निर्विरोध चुने जा चुके हैं। इसके अलावा गुजरात की दो सीटें बीजेपी के खाते में जाती दिख रही हैं। ओडिशा में भी तीन सीटों पर इलेक्शन हैं, इनमें से एक बीजेपी और दो बीजेडी के हिस्से जा सकती हैं।
तमिलनाडु की 6 सीटों पर चुनाव होना
इसके अलावा 5 जुलाई के बाद 18 तारीख को तमिलनाडु की 6 सीटों पर चुनाव होना है। इन सीटों पर सांसदों का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। फिलहाल एआईएडीएमके के पास इनमें से 4 सीटें हैं, जबकि डीएमके और सीपीआई के पास एक-एक सीट है। इस बार डीएमके के खाते में तीन और एआईएडीएमके के खाते में तीन सीटें जाने की उम्मीद है। हालांकि तमिलनाडु की सीटें राज्यसभा के गणित पर कोई बड़ा असर नहीं डालेंगी।
एनडीए के 111 राज्यसभा सांसद हैं
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 235 सदस्यों वाले उच्च सदन में एनडीए के 111 राज्यसभा सांसद हैं। फिलहाल 10 सीटें खाली हैं, जिनमें से चार सांसद 5 जुलाई तक एनडीए के चुनकर आने की संभावना है। इसके साथ ही यह आंकड़ा 115 हो जाएगा।
क्या कहते हैं आंकड़े
कुल 241 सदस्यों की संख्या में 115 सांसदों का आंकड़े का अर्थ है कि एनडीए के पास बहुमत से महज 6 सांसद कम रहेंगे। यदि राज्यसभा में कुल 245 मेंबर हो जाते हैं तो फिर एनडीए को अपने दम पर 123 सांसदों की जरूरत होगी।
कई गैर यूपीए पार्टियां भी हैं साथ
हालांकि उच्च सदन में किसी विधेयक को पारित कराने में एनडीए को समस्या नहीं आएगी यदि टीआरएस, बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसी गैर-यूपीए पार्टियां उसे समर्थन करती हैं। सदन में बीजेपी के फ्लोर मैनेजर्स को भरोसा है कि किसी भी विधेयक को पारित कराने में सदस्यों की कमी आड़े नहीं आएगी।
इस बात की कम ही संभावना है कि विपक्ष किसी विधेयक को रुकवा पाए या फिर उसे एक बार फिर संशोधन के लिए भेजना पड़े। जैसे 2014-2019 में राष्ट्रपति के अभिभाषण को भी संशोधन के लिए भेजना पड़ा था। हालांकि अब भी तीन तलाक जैसे विवादित विधेयकों को पारित कराना चुनौती है। बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू इस मुद्दे पर साथ नहीं है, इसके अलावा बीजेडी और वाईएसआर के भी अपने तर्क हैं।