डा. रवीन्द्र अरजरिया
पराविज्ञान की मान्यताओं का परचम आज भी फहरा रहा है। ज्योतिषीय गणनायें ही अंतरिक्ष विज्ञान की आधार मानी जाने लगी हैं। खगोल शास्त्र तो कब से वैदिक ज्ञान को सर्वोपरि मान बैठा है परन्तु तर्क, वितर्क और कुतर्क के मायाजाल में फंसे लोगों का एक अलग ही वर्ग है, जो परा शक्ति जैसे कारकों को निरंतर अदृष्टिगत करता रहा है। इन लोगों के पास भी आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं के रहस्यों का विश्लेषण नहीं होता। वे अनजाने ज्ञान को ही इसके लिए उत्तरदायी मानते हैं। ऐसे मुट्ठी भर लोगों को हाशिये पर छोडकर पूरे समाज की बात करें तो सभी आस्था, विश्वास और श्रध्दा जैसी तरंगों को ही आने वाले समय की घटनाओं के लिए उत्तरदायी मानते हैं।
कुछ लोग चांद की कलाओं के साथ गणनायें शुरू करते हैं तो कुछ लोग सूर्य की स्थिरता को आधार बनाते हैं। अन्य ग्रहों की स्थितियों को भी परिणामात्क मानने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसे ही नक्षत्रीय प्रभाव और ग्रहों की स्थितियों का समुच्चय नवरात्रि पर्व के दौरान होता है। सकारात्मक विचार, सहयोगात्मक वातावरण और आत्मबल में विस्तार का दौर प्रारम्भ हो जाता है। उपवास से काया कल्प, मौन से अन्त:शक्ति का संचय, अनुशासन के निरंतरता, जाप से तरंगीय सम्पर्कों का सघनीकरण, संकल्प से लक्ष्य भेदन की शक्ति जैसे तत्वों में विस्तार होता है।
चिन्तन चल ही रहा था कि तभी फोन की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया। फोन पर जानेमाने विचारक संजय राय की आवाज उभरी। अचानक तेज आवाज में संबोधन और फिर खामोशी। लम्बे अंतराल के बाद आने वाले उनके फोन ने हमें असहज कर दिया। हमने तत्काल फोन लगाया। अपनी शंका का समाधान चाहा, तो पता चला कि यह सब मोबाइल के नेटवर्क का कमाल था। उनकी आवाज का गूंज कर आना और फिर फोन का वन वे हो जाना। सब कुछ तकनीकी विकास का परिणाम था। कुशलक्षेम पूछने बताने के बाद उन्होंने मिलने की इच्छा जाहिर करते हुए बताया कि वे राजधानी में किसी जरूरी काम से आये हुए हैं। समय और स्थान निर्धारित हुआ। आमने-सामने पहुंचते ही अपनत्व भरा अभिवादन, मूक शब्दों से भावनाओं का संचार और चिर परिचित मुस्कुराहटों से अनकहे वाक्यों का विनिमय हुआ।
अतीत को कुरेदने के बाद हमने उन्हें अपने मन में चल रहे विचारों से अवगत कराया। वैदिक ज्ञान को विश्व की सर्वोच्च उपलब्ध संपदा निरूपित करते हुए उन्होंने कहा कि आत्म शोधन और शक्ति संचय का महापर्व है नवरात्रि। संकल्प से प्रारम्भ हुई साधना में एकान्तवास, जलाहार, निरंतर जाप, एकाग्रता, एकासन, पृथ्वीशयन, प्रकृतिवास जैसे कारकों का समावेश होने से अन्त:ऊर्जा का गुणात्मक विस्तार होता है। यह विस्तार नौ रातों में ही प्रत्यक्षीकरण तक पहुंच जाता है।
नीरव शांति में जब जाप की तरंगे उठतीं है तो वे सीधी पराशक्ति से जुड जातीं हैं। लोहे के छोटे टुकडे में रगड-रगड कर चुम्बकीय गुण पैदा करना पडते हैं। चुम्बक बनते ही वो बडे चुम्बक के संपर्क में आते ही समान प्रकृति होने पर उस ओर तेजी से बढता है और विपरीत प्रकृति होने पर दूर भागता है। यहां समानता का अर्थ विपरीत गुणों से लेना पडेगा यानी खाली वर्तन में ही पानी भर सकेगा। भरे हुए वर्तन में पानी का भरने का प्रयास करना मूर्खता ही होगी। उनका व्याख्यान ज्यादा लम्बा होते देखकर हमने बीच में ही टोकते हुए नवरात्रि की प्राकृतिक विवेचना का अनुरोध किया।
मौसम के संधिकाल की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि बरसात से शीतकाल में वातावरण का प्रवेश होता है। नई फसलों की आमद होती है। बसुन्धरा हरा परिधान पहन चुकी होती है। नदियां कलकल करके बहने लगतीं हैं। अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों को चुम्बकी प्रभाव पृथ्वी की दिशा में धनात्मक होता है। पोषक किरणों का बाहुल्य होता है। इन सब के संकलन हेतु हमें मानसिक रूप से एकाग्र होना पड़ता है। तभी सकारात्मक परिमाणों की आशा की जा सकती है।
एकाग्रता ही वह गुण है जो प्रकृति में बिखरे पडे शक्ति पुंजों को व्यक्ति के ऊर्जा चक्र से जोड़ देते हैं। विवेचना गहराती जा रही थी। हमने उसे हल्का बनाने की गरज से उपासना से जुडे कर्मकाण्ड की समीक्षा के लिए कहा तो उन्होंने दीपक को प्रकाश, घी को द्रव और सुगंध को वायु के साथ जोडते हुए पृथ्वी को ठोस के रूप में परिभाषित करना शुरू कर दिया। परमाणु के इलैक्ट्रान, न्यूट्रन और प्रोटान के विश्लेषण को भी शक्ति उपासना के गूढ रहस्यों के साथ जोड़ा।
गम्भीरता से किनारा करने के प्रयास में वे गहराई में ही उतरते चले जा रहे थे। चर्चा चल ही रही थी कि तभी वेटर ने दिये गये आर्डर को सर्व करने की अनुमति मांगी। बातचीत को विराम देना पड़ा। इस मध्य हमें अपने विचारों को आगे बढाने हेतु बहुआयामी दिशा मिल चुकी थी। सो आर्डर सर्व करने में सहमति व्यक्त कर दी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिन्द।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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