कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
इससे 14 माह पुरानी कमलनाथ सरकार का पतन अवश्यभावी प्रतीत होने लगा है, या यूं कहे कि कमलनाथ सरकार अब कुछ दिनों या कुछ घंटों की ही मेहमान है।
राज्य में लगातार 15 सालों तक सत्ता में रहने का कीर्तिमान रचने वाली भाजपा के हाथों में जल्दी ही सत्ता की बागडौर आना तय हो चुका है। इसलिए राज्य की भाजपा सरकार का मुखिया कौन होगा, इस बारे में भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
राज्य में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की बागडोर दी जाएगी अथवा प्रदेश के कोटे से केंद्र सरकार में शामिल वरिष्ठ मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को राज्य की नई भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौपना पसंद करेगी। इस बारे में राजनीतिक पंडित अलग-अलग अनुमान लगा रहे हैं।
यूं तो पूर्ववर्ती शिवराज सरकार के एक कद्दावर मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल है, परंतु उनकी विवादास्पद छवि के कारण पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद की बागडौर सौंपने से परहेज करेगी। शिवराज सिंह के नाम पर भी पार्टी शायद इसलिए विचार ना करें कि वे मुख्यमंत्री के रूप में लंबी पारी खेल चुके हैं।
हालांकि शिवराज के विकास मॉडल को भले ही देश के दूसरे राज्यों की भाजपा सरकारों ने अनुकरणीय माना हो और शिवराज की लोकप्रियता भी निर्विवाद रही है, परंतु उनके कार्यकाल में हुआ व्यापम घोटाला उनके चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की राह में बाधक बन सकता है। ऐसी स्थिति में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की सबसे पहली पसंद केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ही हो सकते हैं।
मोदी सरकार की पहली पारी में नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने कामकाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इतना प्रभावित किया था कि मोदी सरकार के दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें शपथ ग्रहण के लिए पांचवें स्थान पर आमंत्रित किया गया था। नरेंद्र सिंह तोमर ने पहली पारी में केंद्रीय मंत्री के रूप में जो सराहनीय प्रदर्शन किया है, उसने उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की गुड बुक्स में शामिल कर दिया है।
तोमर ने राजनीतिक विवादों से भी हमेशा खुद को दूर रखा है और ऐसी कोई बयानबाजी से सदैव परहेज किया है, जिससे जरा भी विवाद पैदा होने की आशंका हो। नरेंद्र सिंह तोमर के पक्ष में ऐसी कई बातें हैं, जो मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हें सर्वथा उपयुक्त साबित करने में पर्याप्त है।
गौरतलब है कि 2013 राज्य विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर नरेंद्र सिंह तोमर पार्टी को प्रदेश अध्यक्ष पद की बागडोर सौंपी गई थी। 2008 एवं 2013 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी ने भाजपा को शानदार विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, लेकिन तोमर ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी महत्वाकांक्षा कभी प्रदर्शित नहीं की। इसलिए उन्हें पार्टी में विशेष सम्मान की नजरों से देखा जाता है।
यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि भाजपा के नए अध्यक्ष वीडी शर्मा भी उसी क्षेत्र से आते हैं,जो नरेंद्र सिंह तोमर का प्रभाव क्षेत्र है। अगर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व तोमर को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने का फैसला करता है तो मुख्यमंत्री और पार्टी के के बीच वैसा ही तालमेल देखने को मिलेगा, जो कभी शिवराज सिंह चौहान एवं नरेंद्र सिंह तोमर के बीच में हुआ करता था।
जब भी किसी राज्य में मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष के बीच तालमेल बना है, तब न केवल सरकार को बल्कि संगठन को भी जनता से जुड़ाव स्थापित करने में मदद मिली है। जब दोनों किसी राज्य में एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं तो उस राज्य में पार्टी का नई ऊंचाइयों को स्पर्श करने में सफल होना तय माना जाता है। मध्यप्रदेश में तोमर के पास मुख्यमंत्री पद की बागडोर आने के बाद एक बार फिर भाजपा के स्वर्णिम युग की शुरुआत होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
ज्योतिराज सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद उन्हें राज्यसभा के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया है। इसके बाद उनका मोदी सरकार में शामिल होना भी तय माना जा रहा है। यदि सिंधिया को केंद्रीय मंत्री पद से नवाज दिया जाता है तो उस स्थिति में ग्वालियर अंचल से दो मंत्री मोदी सरकार के सदस्य होंगे।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंधिया को अपने मंत्रिमंडल में स्थान देकर नरेंद्र सिंह तोमर को मध्य प्रदेश की भावी भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौपने पर गंभीरता से विचार कर सकते हैं। सिंधिया भी मुख्यमंत्री पद पर तोमर को ही देखना पसंद करेंगे।
गौरतलब है कि नरेंद्र सिंह तोमर ने ज्योतिराज सिंधिया के विरुद्ध किसी भी तरह की टीका टिप्पणी से सदैव ही परहेज किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि तोमर के हाथों में मुख्यमंत्री पद की बागडौर आती है तो सभी वरिष्ठ नेताओं का भरपूर सहयोग भी उन्हें मिलेगा और पार्टी का हर वर्ग भी उनकी कार्यशैली से संतुष्ट होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
ये भी पढ़े: श्रीमंत शाही का मोह भाजपा में भी ज्योतिरादित्य को भारी पड़ेगा
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)