नदीम एस अख्तर
कहते हैं जो जैसा करता है, इसी दुनिया में भर कर जाता है। लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा के ज़रिए देशभर में जो नफरत फैलाई और उससे मासूमों का जो खून बहा, आज क़ुदरत वही चीज़ उनके घर में लेकर आ गयी। आडवाणी अपनी पार्टी में ही नफरत के शिकार हो गए। यहां तक कि राजनीति में सक्रिय रहने की उनकी इच्छा के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उनका टिकट गांधीनगर से काट दिया।
आडवाणी ने आज तक कोई बयान नहीं दिया कि उनकी उम्र हो गयी है, वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते। टिकट कटने के बाद भी। यानी जो हुआ, उनकी इच्छा के विपरीत हुआ। ये क़ुदरत का न्याय है। जो नफरत अपने दुनिया में फैलाई, हिन्दू-मुसलमान को लड़ाया, और ये नफरत आपने जिस पार्टी को ऊपर उठाने के लिए फैलाई, वही पार्टी अब आपसे नफरत करती है। इतना कि अब ये भी नहीं चाहती कि आप मार्गदर्शक बनकर संसद की अगली सीट पे बैठें। एक चक्र पूरा हुआ। क़ुदरत का ये वो न्याय है जो दुनिया को दिख रहा है और जो नहीं दिख रहा, वो तो आडवाणी जी ही जानते होंगे। उनका दिल जानता होगा।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जैसी करनी, वैसी भरनी। कहावत है कि बोओगे अगर बबूल तो फिर आम कहाँ से खाओगे? गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपई तब के गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को हटाना चाहते थे। पर आडवाणी अड़ गए कि मोदी नहीं हटेंगे। दंगों में सरकारी मिलीभगत का आरोप था, सो अटल जी चाहते थे कि दंगों के दाग से पार्टी को मुक्त किया जाए, मोदी की जगह किसी और को लाया जाए। पर आडवाणी ने ये नहीं होने दिया। उस वक़्त वे सत्ता के शीर्ष पे थे। आज जो लोग मोदी-मोदी कर रहे हैं, तब आडवाणी-आडवाणी कर रहे थे। अटल जी के हाथ बंध गए। पार्टी में लगातार हो रही इस उठापटक से तंग आकर ही उन्होंने कह डाला था कि जब सब आडवाणी को ही करना है, तो मुझे काहे पीएम बनाए हो भाई?
सो ना टायर्ड और ना रिटायर्ड, आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय पथ की ओर प्रस्थान! पर विजय पथ क्या मिलेगा, अगले चुनाव में बीजेपी हार गई। यानी नफरत की राजनीति नहीं चली। POTA क़ानून भी नहीं चला। कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद इसे खत्म किया। POTA के तहत जो मुस्लिम युवक पुलिस ने पकड़े थे, उनको एक-एक कर कोर्ट छोड़ती चली गयी। यानी राजनीतिक खेल में पुलिस भी शामिल रही।
ठीक वैसे ही, जैसे नोएडा में बीजेपी के राज का प्रशासन ये सर्कुलर जारी करता है कि प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों को पार्कों या सार्वजनिक जगहों पे नमाज़ पढ़ने से रोकें। लेकिन यही प्रशासन ये सर्कुलर जारी नहीं करता कि माता की चौकी या जगराता या सरस्वती पूजा या RSS की शाखा पार्कों या सार्वजनिक जगहों पे नहीं लगेगी। यानी टारगेट सिर्फ एक धर्म है। मकसद है नफरत फैलाओ और वोट पाओ। समाज में इस नफरत को बोन के लिए किराए के टट्टू भी मंगाए जाते हैं।
अभी होली के दिन गुरुग्राम में कुछ गुंडे आये और घर के बगल में क्रिकेट खेल रहे एक मुस्लिम परिवार से उलझ गए। कहने लगे तुम पाकिस्तान जाओ। मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर क्यों पाकिस्तान चले जाए? तुम हिन्दू राष्ट्र नेपाल काहे नहीं चले जाते? इन किराए के गुंडों की हिम्मत ये थी कि सब के सब लाठी-डंडा लेकर मुस्लिम परिवार के घर का दरवाजा तोड़कर अंदर घुस गए। मर्दों को लहूलुहान करके पीटते रहे। एक बच्चे को छत से नीचे फेंक दिया। परिवार की औरतें चीखती रहीं। बहुत ही हृदय विदारक वीडियो है। लेकिन बात-बात में ट्वीट करने वाले हमारे पीएम मोदी का इस मसले पे या देश के मुसलमानों में विश्वास जगाने का कोई ट्वीट नहीं आया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर का भी कोई बयान मैंने नहीं देखा। कोई ट्वीट उनका भी नहीं आया। बीजेपी ने भी इस घटना की निंदा या भर्त्सना नहीं की। और तो और, कड़ी निंदा के लिए मशहूर पूरे देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले की कोई कड़ी निंदा नहीं की।
न्यूज़ीलैंड में मस्ज़िद पे हमला हुआ तो न्यूज़ीलैंड की पीएम से लेकर ब्रिटेन और कनाडा के पीएम तक मुस्लिमों के साथ खड़े हो रहे हैं। बयान दे रहे हैं। पुलिस की मस्जिदों में ट्रेनिंग कराई जा रही है। वे कह रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय हमसे अलग नहीं है। हम उनके साथ हैं। यानी सत्ता धर्म के नाम पे भेदभाव नहीं कर रही। पर भारत में सत्ता धर्म के नाम पे भेद कर रही है।
यूपी में सरकारी खर्चे से योगी आदित्यनाथ की सरकार दीवाली पे करोड़ों उड़ा कर देती है। पर ईद या रमज़ान या क्रिसमस या प्रकाश पर्व या महावीर जयंती के लिए यूपी सरकार ऐसा कोई आयोजन नहीं करती। क्यों?? क्या यूपी की सरकार सिर्फ हिन्दू मजहब के मानने वालों की सरकार है?? मुस्लिम, ईसाई, सिख या जैन धर्म के मानने वालों की सरकार नहीं??!! योगी जी तो संविधान की शपथ लेकर सीएम की कुर्सी पे बैठे हैं, फिर सिर्फ एक मजहब के लिए सत्ता कैसे काम कर रही है।
हद तो तब हो गयी जब यूपी के एक बड़े पुलिस अफसर वर्दी में कांवड़ियों पे हेलीकॉप्टर से फूल बरसा रहे थे। तब तो उनको ईद के नमाज़ियों पे भी फूल बरसाने चाहिए और जैन मुनियों पे भी, पर वे ऐसा नहीं करेंगे। मतलब साफ है। समाज को धर्म के नाम पे बांटो और वोट बटोरकर राज करो। यानी divide and rule. अंग्रेजों की नीति बीजेपी ने अपना ली है। देश को बांटकर ये देश पे राज करना चाह रहे हैं। इसके लिए जहां-जहां भी बीजेपी की सत्ता है, वहां सत्ता का अचार-व्यवहार और विचार ऐसा बनाया गया है कि समाज में नफरत फैले। लोग धर्म के नाम पे बंट जाएं। और फिर इसकी फसल बीजेपी काटे।
भारत का दलाल बन चुका ज्यादातर टीवी मीडिया भी इसमें बीजेपी सरकारों के साथ आ खड़ा हुआ है। उदाहरण देखिये। बीजेपी ने मन बनाया कि 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए राम मंदिर मुद्दे को गरमाया जाए। फिर देखिए क्या हुआ? दलाल टीवी मीडिया एजेंडा सेट करने में लग गया। दिन-रात टीवी पर बहस होने लगी कि कब बनेगा राम मंदिर? कांग्रेस नहीं बनने दे रही राम मंदिर! राम मंदिर के बनने में सबसे बड़ा रोड़ा देश का विपक्ष! कब तक टेंट में रहेंगे राम लला? बीजेपी आएगी तभी बनेगा राम मंदिर! यूपी की जनता अयोध्या में बनाएगी राम मंदिर। मतलब जितने कोण आप ढूंढ सकते हैं, ज्यादातर बिक चुके टीवी मीडिया ने सारे कोण ढूंढ निकाले कि क्यों नहीं बन रहा राम मंदिर। पर दलाल टीवी मीडिया देश को ये नहीं बता रहा था कि बीजेपी जब instant triple talaque पे क़ानून बना सकती है और उसे लागू कर सकती है तो अपने चुनावी वादे के मुताबिक बीजेपी ने क़ानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर क्यों नहीं बनवा दिया। क्यों पीछे हट गई बीजेपी, लोकसभा में बीजेपी का बहुमत है, यूपी में उसकी सरकार है, इससे बड़ा सुनहरा मौका कब मिलेगा। फिर भी राम मंदिर नहीं बनने देने के लिए विपक्ष ज़िम्मेदार है, तो क्या बीजेपी को अब पूरी धरती पे सरकार बनानी है, जिसके बाद ही वो राम मन्दिर बनाएगी।
क्या मज़ाक है तलाक़ पे आप कानून बना सकते हैं, राम मंदिर पे नहीं। यानी आपकी नीयत में खोट है। आप मन्दिर-वन्दिर कुछ नहीं बनाना चाहते। बस मुद्दे को ज़िंदा रखकर नफरत की राजनीति करना चाहते हैं और सत्ता पाना चाहते हैं। बस। पर ऐसा है कि देश की जनता बहुत समझदार है। बीजेपी केंद्र की सत्ता में मोदी जी के विकास के वादे पे आयी। पर सत्ता में आते ही ये हिन्दू-मुसलमान करने लगे। लव जिहाद और घर वापसी में लग गए। अब पाँच साल पूरे होने को हैं पर विकास कहीं दिख नहीं रहा।
सरकारी आंकड़े ही बता रहे हैं कि देश में बेरोज़गारी बढ़ गयी। महंगाई बढ़ गयी। 2014 से पहले 400 रुपये में आने वाला गैस सिलिंडर अब 800 रुपये के पार जा पहुंचा है। ट्रेन का किराया भी लगभग दो गुना हो चुका है। देश की जीडीपी का ग्रोथ घट गया है। नोटबन्दी ने आम आदमी की कमर तोड़ दी और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पे इसकी सबसे बड़ी मार पड़ी। किसानों को उनकी फसल का दाम नहीं मिल रहा, वो लगातार आत्महत्याएं कर रहा है। यूपी में ही किसान मुख्यमंत्री योगी जी के घर के बाहर आलू फेंक कर चले गए। ये वो आलू थे, जिसे उन्होंने मेहनत से उपजाया था पर इसका दाम उनको नहीं मिल रहा था। कर्ज के बोझ तले दबे ऐसे ही दुखी किसान घर जाकर आत्महत्या कर लेते हैं। पर केंद्र सरकार को इसकी सुधि नहीं। देश का कृषि मंत्री कौन है, कृषि प्रधान देश की जनता आज तक जान ही नहीं पाई। वो क्या कर रहे हैं, किसी को पता नहीं। ना मीडिया में दिखते हैं और ना जनता के बीच।
यानी 2014 वाले मोदी जी के शब्दों में कहें तो पूरा policy paralysis है। कुएं में ही भांग पड़ी है। विकास गायब है, नफरत आगे है। यानी बीजेपी जब भी सत्ता में आती है तो वो जनता की भलाई के काम करने की बजाय ज्यादा से ज्यादा नफरत की आग सुलगाती है ताकि समाज को बांटकर वोट बटोरे जा सकें और सत्ता का मज़ा मिलता रहे। गुडगाँव यानी गुरुग्राम में होली के दिन जिस तरह एक मुस्लिम परिवार को पीटा गया, उनको पाकिस्तान जाने को कहा गया और जिस तरह इस पे सत्तारूढ़ बीजेपी, खट्टर की सरकार, पीएम मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने चुप्पी साधी है, उससे ये धारणा और प्रबल होती है।
और देखिये हमारे पीएम मोदी जी क्या कर रहे हैं। कभी वे चाय वाला बन जाते हैं तो कभी झोला उठाकर चल देने वाले फकीर। ताज़ा-ताज़ा वो चौकीदार बने हैं। ये राहुल गांधी के उस नारे का जवाब है, जिसमें वे कहते हैं कि चौकीदार ही चोर है। मोदी जी ने ट्विटर पे लिख दिया-चौकीदार नरेंद्र मोदी। चमचई में बीजेपी के कई नेताओं और मंत्रियों ने भी अपने नाम के आगे चौकीदार जोड़ लिया। ये देश की जनता के साथ भद्दा मजाक नहीं तो और क्या है?? पीएम से लेकर सीएम और जनप्रतिनिधि तक, यहां कोई चौकीदार-थानेदार-पाटीदार और हवालदार नहीं है। आप राजा नहीं हो। आप देश की जनता के सेवक हो। कभी पीएम मोदी ने ही कहा था कि वो प्रधानमंत्री नहीं, प्रधानसेवक हैं।
आज वो खुद को चौकीदार कह रहे हैं। ये कैसे हो सकता है?! या तो आप प्रधानसेवक हैं या चौकीदार। सेवक की एंट्री घर के अंदर तक होती है और चौकीदार की सरहद घर के बाहर ही खत्म हो जाती है। वह गेट पे ही रहता है। सिर्फ आने-जाने वालों पे ही नज़र रखता है। घर के अंदर क्या हुआ और क्या हो रहा है, इसकी उसे कोई खबर नहीं रहती। तो अगर पीएम मोदी चौकीदार हैं तो उनको ये खबर नहीं होगी कि देश के अंदर क्या हो रहा है। ये देश कैसे चल रहा है। वो सिर्फ भारत आने-जाने वाले विदेशी मेहमानों पे नज़र रखते होंगे और इस पे कि वे क्या लाए और क्या लेकर गए।
फिर तो देश में पीएम का जो काम है, उसे वो कर ही नहीं पाते होंगे। तभी समझ आया कि देश का बुरा हाल क्यों है। क्योंकि पीएम तो चौकीदार बना बैठा है। घर के दरवाजे के बाहर! उसे पता ही नहीं कि देश में क्या हो रहा है और उनकी चौकीदारी भी सवालों के घेरे में है। वो भी फेल हो गयी। तो मोदी जी को देश को ये बताना चाहिए कि उनके चौकीदार रहे विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोग देश का हज़ारों करोड़ रुपया लेकर विदेश कैसे भाग गए। प्रधान चौकीदार क्या कर रहा था और इतने सारे मंत्री चौकीदार क्या कर रहे थे। तो क्या सचमुच चौकीदार चोर है। ये फैसला देश की जनता को करना है। और ये भी इस देश का दुर्भाग्य है कि लोकतंत्र में जिस पीएम को खुद को देश का सेवक कहना चाहिए था, वो खुद को चौकीदार कह रहा है।
यानी जब मोदी जी को चौकीदारी करने के लिए घर यानी देश के बाहर ही बैठना है, घर यानी देश से कोई लेना देना ही नहीं है तो फिर काहे पीएम की कुर्सी पे बैठे हैं, चौकीदारी करें और देश की सेवा का मौका किसी और को मिले। वैसे उनकी चौकीदारी पे भी दाग है क्योंकि नीरव मोदी और विजय मल्या देश का पैसा लेकर भाग गए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)