शबाहत हुसैन विजेता
सुपर पॉवर अमेरिका में ट्रम्प युग का अंत हो गया है. ट्रम्प को यकीन था वो फिर लौटेंगे, मगर बाइडन जानते थे कि उनका सूरज डूब चुका है. ट्रम्प आखीर तक अपनी कुर्सी को कसकर पकड़े रहे. अब भी पकड़े हैं. उन्हें यकीन है कि 20 जनवरी से पहले कोई न कोई चमत्कार हो जायेगा लेकिन जानकारों को मालूम है कि यह चमत्कार सिर्फ एक कोरी कल्पना है.
ट्रम्प इसी साल फरवरी में भारत के दौरे पर आये थे. वह कोरोना का शुरुआती दौर था. गुजरात और दिल्ली में उनके कार्यक्रमों में भीड़ उमड़ी थी. तब मास्क नहीं था, सैनेटाइज़र के बारे में कोई नहीं सोचता था. फिजीकल डिस्टेंसिंग के बारे में नहीं बताया गया था. ट्रम्प जहाँ-जहाँ जा रहे थे, भीड़ उन्हें देखने को उमड़ रही थी. कोरोना भी बाहें पसारे लोगों से घुला-मिला जा रहा था.
भारत के आम आदमी को तब यह अहसास भी नहीं था कि ऐसे वक्त में भीड़ कितना नुक्सान पहुंचाने वाली है. भीड़ को यह भी पता नहीं था कि दुनिया में सुपर पॉवर के नाम से पहचाना जाने वाला यह शख्स तीन महीने के बाद अपनी जान बचाने के लिए बंकर में घुस जाने को मजबूर हो जाएगा. लोग सिर्फ मंत्रमुग्ध थे मगर कोई ताकत थी जिसने भारतीयों से फरवरी में ही कहलवा दिया था नमस्ते ट्रम्प. नमस्ते ट्रम्प वेदवाक्य साबित हुआ.
ट्रम्प राष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते. मगर छोड़नी पड़ेगी. यह कुर्सी उनसे क्यों छिन रही है इस पर वह अपने रिटायरमेंट के बाद सोचें तो शायद उनके लिए भी बेहतर हो.
ट्रम्प राष्ट्रपति बने थे तो उन्हें लगा था कि वह अमेरिका की चौधराहट में और भी इजाफा कर लेंगे लेकिन हकीकत यह है कि अमेरिका की वैल्यू को उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल में सबसे ज्यादा गिराया.
ट्रम्प ने ईरानी सेना के सर्वोच्च कमांडर कासिम सुलेमानी को आतंकवादी बताकर मार डाला. सुलेमानी की मौत के बाद ईरान ने इराक में अमरीकी सैनिकों के एयरबेस पर 22 बैलेस्टिक मिसाइलें दागकर अमेरिका को यह बता दिया कि मुकाबला करोगे तो अंजाम भुगतना होगा.
ईरान के हमले के बाद अमेरिका ने ज़ाहिरी तौर पर तो यह बताया कि वह ईरान से बदला लेगा लेकिन हकीकत उसके खुद के बयानों से ज़ाहिर हो गई कि खुद को सुपर पॉवर कहने वाला अमेरिका भी डरता है.
ट्रम्प के दौर में अमेरिका में पहली बार ऐसा हुआ कि दुनिया ने यह जाना कि डर अमेरिका को भी लगता है.
इसी साल मई में अमेरिका में अश्वेत नागरिक फ्लायड की हत्या के बाद जिस तरह से अमेरिका श्वेत और अश्वेत के बीच बंट गया किसी ने सोचा भी नहीं होगा. फ्लायड को इन्साफ दिलाने के लिए सड़कों पर जनसमुद्र उमड़ पड़ा.
आक्रोशित भीड़ को रोकने के लिए नेशनल सेक्योरिटी गार्ड को सड़क पर उतरना पड़ा. भीड़ ने व्हाइट हाउस को घेर लिया. व्हाइट हाउस के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति को सुरक्षा के लिहाज़ से बंकर में घुसकर जान बचानी पड़ी.
ट्रम्प के कार्यकाल पर नज़र दौड़ाएं तो ट्रम्प दूसरे राष्ट्रपतियों से अलग नज़र आते हैं. इनसे पहले के राष्ट्रपति हथियारों की सप्लाई पर भी नज़र रखते थे और इस बात का भी ध्यान रखते थे कि उसकी चौधराहट में कमी न होने पाए लेकिन ट्रम्प देशों को भड़काते तो रहे लेकिन कभी खुलकर सामने नहीं आये.
ट्रम्प ने कोरोना को लेकर चीन को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की लेकिन चीन से टकराने के बारे में सोच भी नहीं पाए. चीन से टकराना तो दूर वह तो भारत और चीन के बीच मध्यस्थ बनने की कोशिश में भी लगे रहे.
अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ सिर्फ भड़काने का काम करता रहा. वह दिखावे के लिए भारत के साथ होने के दावे भी करता रहा लेकिन उसके क्रियाकलापों ने कई बार यह साबित किया कि जंग लड़ना ट्रम्प के बस की बात नहीं है.
ईरान से छेड़खानी, अश्वेत नागरिक की हत्या के बाद हालात को काबू में न कर पाना और चीन पर इलज़ाम लगाने के बावजूद कौई कदम न उठाने की वजह से ट्रम्प के नम्बर अमेरिका में लगातार कम होते गए.
ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को भी दूसरे देशों की तरह से कमज़ोर देश बना डाला. ट्रम्प के कार्यकाल में पूरा देश श्वेत और अश्वेत में बंट गया. कोरोना की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हो गए और महामारी को आबू में करना तो दूर ट्रम्प ने तो अपने देश में लॉकडाउन करना तक ज़रूरी नहीं समझा.
कोरोना बढ़ता गया. लोग मरते गए और ट्रम्प चीन के खिलाफ बयानबाजी से आगे कुछ सोच ही नहीं पाए.
अश्वेत नागरिक की हत्या के बाद अमेरिका में जो हालात बने थे उसकी वजह से ट्रम्प को लेकर लोगों में पहली बार गुस्सा नज़र आया, लेकिन कोरोना वह सबसे बड़ा कारण था जिसने लोगों के दिलों से ट्रम्प को निकाल फेंका. ट्रम्प के हालात दिनों दिन खराब होते गए.
सुलेमानी को कत्ल करवाने के बाद ट्रम्प जब भारत आये थे और भारत ने नमस्ते ट्रम्प कहा था तब ट्रम्प उस नमस्ते का मतलब समझ नहीं पाए थे. बाइडन ने भी जब यह समझाने की कोशिश की थी कि ट्रम्प को अमेरिका भी नमस्ते कह चुका है तब भी ट्रम्प समझ नहीं पाए.
बाइडन को हालात पर नज़र रखनी होगी. वह आठ साल उप राष्ट्रपति रहे हैं. वह राष्ट्रपति के दायित्वों को अच्छी तरह से समझते हैं. बराक ओबामा के कार्यकाल में उन्होंने कामकाज के तरीके को करीब से समझा है.
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उन्हें श्वेत और अश्वेत की जंग को सबसे पहले खत्म करना होगा. ईरान समेत दुनिया के तमाम देशों को यकीन दिलाना होगा कि युद्ध के हालात के खिलाफ वह खड़े रहेंगे. अमेरिका भी यह बात अच्छी तरह से समझ चुका है कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं है. दूसरे की ज़मीन पर युद्ध करते-करते जब दूसरे देश में अपने सैनिक पर मिसाइलें गिरती हैं तो सिर्फ उस सैनिक का नहीं हुकूमत का अंत भी शुरू हो जाता है.